प्रवासी भारतीय दिवस पर निबंध। Essay on Pravasi Bharatiya Divas in Hindi : प्रवास की संकल्पना, प्राचीन सभ्यताओं के समय से ही अस्तित्व में है। वैदिक सभ्याता से लेकर 18वीं शताब्दी तक इसका स्वरूप भारत में प्राय: ज्ञानार्जन के लिए, लोक कल्याण के लिए और धार्मिक अभिप्रायों से किए जाने वाले प्रवास का रहा है। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद सम्राट अशोक ने ईसा-पूर्व तीसरी शताब्दी में अपने पुत्र एवं पुत्री को धार्मिक अभिप्राय से प्रवास पर भेजा था। दक्षिण भारत के राजेन्द्र चोल जैसे शक्तिशाली सम्राटों ने सुदूर पूर्व के देशों (वर्तमान मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया आदि) तक अपनी नौसेनाओं को भेजकर राजनैतिक-आर्थिक संबंध स्थापित किए जो अभी तक विद्यमान हैं।
प्रवासी भारतीय दिवस पर निबंध। Essay on Pravasi Bharatiya Divas in Hindi
प्रवास की संकल्पना - प्रवास की संकल्पना, प्राचीन सभ्यताओं के समय से ही अस्तित्व में है। वैदिक सभ्याता से लेकर 18वीं शताब्दी तक इसका स्वरूप भारत में प्राय: ज्ञानार्जन के लिए, लोक कल्याण के लिए और धार्मिक अभिप्रायों से किए जाने वाले प्रवास का रहा है। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद सम्राट अशोक ने ईसा-पूर्व तीसरी शताब्दी में अपने पुत्र एवं पुत्री को धार्मिक अभिप्राय से प्रवास पर भेजा था। दक्षिण भारत के राजेन्द्र चोल जैसे शक्तिशाली सम्राटों ने सुदूर पूर्व के देशों (वर्तमान मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया आदि) तक अपनी नौसेनाओं को भेजकर राजनैतिक-आर्थिक संबंध स्थापित किए जो अभी तक विद्यमान हैं। अलबरूनी, मेगस्थनीज, मार्को पोलो, ह्यवेन सांग, इब्नैिबतूता आदि ने अरब एवं यूरोपीय देशों से आकर भारत में प्रवास किया था। मध्य एशिया के देशों से आए तुर्क, हूण, पठान, उज्बेक आदि का भारत में आगमन तो आक्रमणकारियों के रूप में हुआ था लेकिन वे बाद में यहीं के होकर रह गए और इस प्रकार वे भी भारत में अन्य देशों के प्रवासी ही माने जांएगे। हजारों वर्ष तक भारतीय सभ्यता का अरब देशों एवं चीन, इंडोनेशिया, बर्मा, कम्बोडिया आदि देशों के साथ प्रत्यक्ष और युरोपीय देशों के साथ अप्रत्यवक्ष सम्पंर्क रहा है।
वर्तमान प्रवासी भारतीय दिवस - व्यापारिक उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर प्रवजन एव प्रवास की शुरूआत 16वीं शताब्दी में हुई। वास्कोडिगामा, कोलम्बस, पेड्रो अलवरेज कबराल आदि जैसे महान नाविकों ने भारत, अमेरिका, ब्राजील जैसे देशों का समु्द्री सम्पर्क यूरोपीय दशों से जोड़कर प्रवास के नए रास्ते खोल दिए। भारत के तटवर्ती प्रदशों से व्यापारियों ने अफ्रीका महाद्वीप के देशों के साथ संबंध बनाना शुरू किया । गुजराती व्या्पारियों ने वर्तमान केन्या, उगांडा, जिम्बाबवे, जाम्बिंया, दक्षिण अफ्रीका में अठाराहवीं शताब्दी में अपने कदम रखे। इन्हीं में से एक व्यापारी दादा अब्दुल्ला सेठ के कानूनी प्रतिनिधी के रूप में महात्मा गांधी ने मई, 1893 में नटाल प्रान्त में पदार्पण किया। रंगभेद नीति के साथ उनका संघर्ष और प्रवासी भारतीय समुदाय से वे जन-जन के मानस में प्रतिष्ठित हो गए। वर्ष 1915 की 09 जनवरी को वे भारत वापस लौटे और 22 वर्ष के प्रवास के बाद लौटे इस महान आत्मा से प्रेरणा लेकर इस दिवस को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दरअसल, प्रवासी भारतीयों के साथ भारत का औपचारिक संबंध तो था लेकिन एक निकटवर्ती, घनिष्ठ और आमिट जुड़ाव की आवश्यकता बहुत समय से महसूस की जा रही थी। नवम्बर, 1977 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि दूर-दराज के देशों में बसे भारतवंशियों के साथ हमें अपना संबंध और प्रगाढ़ करना होगा और भारत, उन प्रवासियों की सेवाओं, त्याग और संघर्ष को किसी प्रकार नहीं भूल सकता। प्रवासी भारतीयों के साथ अपने जुड़ाव को प्रगाढ़ करने के लिए किस प्रकार की नीतियां बनाई जाएं, कौन से साधन अपनाए जांए और किस प्रकार का तंत्र तैयार किया जाए, इस पर चर्चा होती रही और फलस्वकरूप 18 अगस्त, 2000 को विधिवेत्ताक, संस्कृतिकर्मी, राजनयिक एवं राजनेता डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन विदेश मंत्रालय ने किया। इस समिति में पूर्व विदेश राज्यमंत्री श्री आर.एल.भाटिया, पूर्व राजनयिक श्री जे. आर. हिरेमठ, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्री बालेश्वनयर अग्रवाल और राजनयिक श्री जे.सी शर्मा शर्मा शामिल थे। समिति ने 20 से अधिक देशों का प्रत्यक्ष दौरा करके, विश्व भर के यथासंभव अधिकतम प्रवासी भारतीय संगठनों से, पूर्व राजनयिकों से बातचीत करके और अपने संचित ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर 19 दिसम्बर, 2001 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी जिसमें, अन्य बातों के साथ-साथ प्रवासी भारतीय दिवस 09 जनवरी को मनाए जाने और प्रति वर्ष प्रवासी भारतीय सम्मान दिए जाने की सिफारिशें भी शामिल थीं।
समिति ने पाया कि 19वीं शताब्दी में भारत में अंग्रजी शासन के चलते, नए अवसरों की तलाश में और आर्थिक कारणों से बड़े पैमाने पर लोग दूसरे देशों में प्रवास पर गए। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ब्रिटेन की संसद ने जब वर्ष 1833-34 में गुलामी प्रथा को समाप्त कर दिया और दुनियाभर में फैले उनके साम्राज्यों को मजदूरों का अभाव सताने लगा तो गुलामी की एक नई तरकीब निकाली गई जिसे शर्तबंदी (अंग्रेजी में एग्रीमंट- जिसका अपभ्रंश रूप गिरमिट पड़ गया) कहा गया। इसमें अधिकतम पांच वर्ष के एग्रीमेंट पर कामगारों को त्रिनिदाद, गुयाना, सूरीनाम, मारीशस और फीजी जैसे देशों में ले जाया गया। इन गिरमिटिया मजदूरों का जीवन, गुलामों से किसी प्रकार बेहतर नहीं था प्रवासियों की दूसरी खेप, भारत की आजादी के बाद, पेशेवर कार्मिकों के रूप में अमेरिका, ब्रिटेन तथा कनाडा जैसे विकसित देशों में और इसके समानांतर एक धारा, तेल-समृद्ध खाड़ी देशों में कुशल और अर्ध-कुशल कामगारों के रूप में गई। वर्ष 1970 के बाद, उच्च्, कुशल एवं पेशेवर लोग, आगे की पढ़ाई के लिए या वैज्ञानिक एवं तकनीकी पदों पर काम करने के लिए गए। इस प्रकार, भारत के प्रवासी समुदाय में आज की स्थिति में लगभग 250 लाख लोग शामिल हैं और दुनिया में चीन ही संभवत: एकमात्र ऐसा देश है जिसका प्रवासी समुदाय, भारत जैसा विविध और विशाल है।
चीन की आर्थिक प्रगति में प्रवासी चीनियों के भारी योगदान के देखते हुए, प्रवासी भारतीयों के भारत से आत्मिक/अध्यामत्मिीक/सामाजिक जुड़ाव को देखते हुए और पश्चिम के देशों में अपनी कड़ी मेहनत के बल पर आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर लेने पर अपनी मातृभूमि के प्रति कुछ करने की आकांक्षा से साक्षात्काकर करते हुए समिति ने पुरजोर सिफारिश की कि इस विशाल भारतीय समुदाय से लाभ उठाने से पहले हमें उनकी समस्याओं एवं चिंताओं का समाधान करना होगा जैसे कि-
1- खाड़ी देशों में जाने वाले श्रमिकों के साथ भारत में भर्ती कंपनियों धोखाधड़ी करती हैं।
2-काम के दौरान मालिकों द्वारा उनके पासपोर्ट अपन कब्जेि में ले लिए जाते हैं, उन्हेंक पूरी मजदूरी नही दी जाती है, उनसे जानवरों की तरह काम लिया जाता है, उनका दैहिक शोषण किया जाता है।
3- भारतीय दूतावासों से उन्हें पर्याप्त मदद नहीं मिलती है। भारत में उनके परिजनों की सुरक्षा नहीं की जाती है।
4- भारत वापस लौटने पर उन्हें कस्टम अधिकारियों द्वारा परेशान किया जाता है।
5- अन्य देशों की नागरिकता गृहण कर चुके भारतीय मूल के व्यक्तियों को भारत आगमन के लिए विदेशियों की तरह वीजा़ लेना पड़ता है।
6- प्रवासियों की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक चिंताओं के समाधान के लिए भारत में उन्हें बहुत भटकना पड़ता है।
7- पूर्वी अफ्रीकी देशों में, फीजी में तथा अन्य देशों में भी भारतीय मूल के व्यलक्तियों के सामने राजनैतिक/सामाजिक/जातीय आधार पर सकट आने की स्थिति में उनकी सहायता के लिए भारत को आगे आना चाहिए, अनिवासी भारतीयों को भारत में मताधिकार होना चाहिए, आदि ।
भारत सरकार ने इन समस्यादओं के लिए इन 10 वर्षों में कई उल्लेयखीनय कदम उठाए हैं-
1-खाड़ी देशों में या अन्यंत्र भी , अपत्ति में आए साधनहीन प्रवासियों की सहायता के लिए 43 देशों में भारतीय समुदाय कल्याण कोष की स्था पना की गई है। इसमें अन्य व्य वस्थाीओं के साथ-साथ, मुसीबतजदा मजदूरों/घरेलू नौकर/ नौकररानियों को रहने-खाने की व्यसवस्थाओ, सरकारी खर्च पर उन्हेंज भारत पहुंचाने की सुविधा और दुर्भाग्यरवश मौत हो जाने पर पार्थिव शरीर को भारत लाया जाना शामिल है।
2-भारतीय मूल के व्यक्तियों के भारत की यात्रा के लिए अवधि का एकमुश्त वीसा एव रहने की अवधि में छूट प्रदान करने वाला पीआईओ कार्ड दिया गया। बाद में इसका नीवकृत रूप ओसीआई कार्ड दिया जा रहा है। इससे भारतीय मुल के व्यक्ति लंबी अवधि तक बिना वीजा के भारत आ-जा सकते हैं। यह योजना वर्ष 2005 से लागू है और अब तक 8 लाख से अधिक ओसीआई कार्ड जारी किए जा चुके हैं।
3-सैकड़ो वर्ष पूर्व गए प्रवासियों की चौथी-पांचवीं पीढ़ी अपने पैतृक स्था्न की खोज में बहुत पोशानियों का सामना करती थी। इसके लिए वर्ष 2008 से ट्रेसिंग द रूट्स नाम की योजना चलाई जा रही है।
4-प्रवासी भारतीय की युवा पीढ़ी को आधुनिक भारत का साक्षात्कार कराने के लिए 'भारत को जानों' (know India program) चलाया जा रहा है। अलग-अलग राज्यों के सहयोग से चलाई जाने वाली योजना में 18 से 26 वर्ष के युवाओं को भारत की प्रायोजित यात्रा कराई जाती है। अब तक 17 यात्रा-कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं जिनमें पांच सौ से अधिक युवा हिस्साा ले चुके हैं।
5-युवा पीढ़ी को भारत में उपलब्धे उच्च स्तहरीय शिक्षा की सुविधा देने के लिए, उच्च1 शिक्षा संस्थाउनों में उके लिए स्था़न आरक्षित किए गए हैं और प्रति वर्ष 100 विद्यार्थियों को 5000 अमेरिकी डालर प्रति विद्यार्थी की दर से छात्रावृत्तिष दी जाती है। अलग से पीआईओ विश्वश विद्यालय स्थाकपित किए जा रहा है।
6-ओवरसीज इंडियन यूथ क्ल्ब, स्टअडी इंडिया प्रोग्राम, आदि के द्वारा नई को भारत से पोड़ने का काम किया जा रहा है।
7-वर्ष 2003 से लगातार प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन 7 से 9 जनवरी तक किया जाता है जिसमें भारत के प्रधानमंत्री, राष्ट्रसपति, कई केन्द्रीपय मंत्री, राज्योंह के मुख्य मंत्री तथा मंत्रालयों/विभागों के उच्चाकधिकारी शामिल होते हैं। प्रवासी भारतीय दिवस, एक उल्लेयखनीय आयोजन बन गया है। अब तक दिल्ली् में 6 और मुम्ब ई, हैदराबाद, चैन्नेई और जयपुर में एक-एक प्रवासी भारतीय दिवस आयेजित किए जा चुके हैं। औसतन 1500 से 1800 प्रतिनिधि उन आयोजनों में प्रति वर्ष हिस्साज लेते हैं।
8-लघु प्रवासी दिवसों की योजना शुरू की गई है। अब तक न्यूतयार्क, सिंगापुर और कनाडा में ऐसे लघु प्रवासी दिवस मनाए गए हैं। अगला दिवस, दुबई में आयोजित किया जाएगा।
9-अपने-अपने प्रवास के देश में उल्लेदखनीय सफलतांए प्राप्तक करने वाले, मानव सेवा के क्षेत्र के काम करने वाले तथा भारत का नाम ऊँचा करने वाले, मानव सेवा के क्षेत्र के काम करने वाले तथा भारत का नाम ऊँचा करने वाले व्यपक्तिचयों/संस्थानओं को प्रति वर्ष राष्ट्रापति द्वारा सम्माेनित किया जाता है। वर्ष 2012 तक 133 व्येक्तिंयों एवं 03 संस्थातओं को उनकी उपलब्धिमयों/सेवाओं के लिए सम्मा नित किया जा चुका है।
10-अनिवासी भारतीयों द्वारा भारतीय महिलाओं से विवाह के बाद विदेश ले जाकर उन्हेंर परेशान किए जाने की घटनाओं को देखते हुए, प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय द्वारा एक विशेष प्रकोष्ठं का गठन करके तथा अलग-अलग देशों के महिला संगठनों की सहायतत से परित्यरक्तष/सताई गई महिलाओं की सहायतार्थ कदम उठाए जा रहे हैं।
इतना सम होने के बावजूद, अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। अनिवासी/प्रवासी भारतीय को ओसीआई कार्ड प्राप्त करने में, भारत में छूट गई अपनी अचल सम्पकत्तिायों की सुरक्षा में, यहां चलने वाले मुकदमें में बार-बार पेश होने में, चैरिटी के कार्यों हेतु उचित चैनल उपलब्धि न होने के रूप में, उच्च स्तरीय स्वामस्य्तज सुविधाएं स्था पित करने में स्थाउनीय स्वीचकृतियां आसानी से उपलब्धू होने में, उचित पारिश्रमिक और आसान सेवा शर्तें न होने के कारण उत्कृथष्ट शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थाीनों में अपनी सेवाएं देने में अड़चनों/समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। परन्तुे इतना तय है कि प्रवासी भारतीयों के साथ एक सक्रिय एवं व्या्पक संपर्क/संबंध/सहयोग क कार्यक्रम के रूप मे वर्ष 2003 से प्रारम्भ, प्रवासी भारतीय दिवस ने हमें एक रास्ता दिखाया है। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि यह कार्यक्रम, केवल एक अर्थिक गतिविधि बनकर न रह जाए अपितु इसका सरोकार, प्रवासी भारतीयों की सांस्कृतिक एवं सामाजिक चिंताओं से भी बना रहे।
इसके लिए न केवल प्रवासी भारतीय समुदाय की विशालता, विविधता और उपलब्धियों को भी भारतीय जनता के सामने रखना होगा और उनकी समस्याओं, भारत से उनकी अपेक्षाओं को भी समझना होगा बल्कि अपने नीतिगत ढांचे में और बदलाव लाकर, प्रवासीयों के प्रति अनुकूल वातावरण बनाकर, उनकी सेवाओं का लाभ उठाते हुए, उनके भारत के साथ गहरे अनुराग को सराहा जाना होगा।
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