संचार क्रांति और महिलाओं का बदलता सामाजिक स्वरूप पर निबंध
देश को आजाद हुये 70 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन महिलायें आज भी अपने अधिकारों से वंचित है,
जबकि देश की आधे से अधिक महिलायें गाँवों में निवास करती हैं। शहरी और ग्रामीण
दोनो प्रकार की महिलाओं को आज भी पर्दे में रहना पड़ता है,
अशिक्षा के कारण उनका विकास अवरुद्ध हुआ है, अभी हाल ही में
महिलाओं पर हो रहे अत्याचार जैसे बलात्कार, यौन शोषण जैसी
घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। सत्य यह नहीं कि अचानक ऐसी घटनायें समाज में तेजी से
बढ़ गयी, बल्कि सत्य तो यह है कि संचार क्रांति ने महिलाओं
के शोषण के इस दबे स्तर को समाज के सामने ला दिया। निर्भया के साथ बलात्कार की
घटना उजागर करने में मीडिया की अहम् भूमिका रही। जिसने हर आयु वर्ग के लोग, जिनका इस घटना से कोई निजी लेना-देना नहीं था, वो
भी अधिकारों एवं इंसाफ के लिये सड़को पर उतर आये।
जनसंचार माध्यमों ने महिलाओं को केवल उनके
अधिकारों के प्रति जागररूक नहीं किया है, अपितु
उन्हें स्वालम्बी बनाने, उनकी आर्थिक-राजनैतिक स्थिति
सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इलेक्ट्रानिक मीडिया में अब तक के
अंगो से सबसे सषक्त अंग रेडियो और दूरदर्शन हैं। इसमें दो राय नहीं कि इसकी पहुँच
रखने वाल इस माध्यम से कृषि को नया बल मिला। रेडियो, टी.वी., डी.टी.एच., इन्टरनेट, मोबाइल
फोन आदि ने महिला उद्यमियों एवं कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के जीवन स्तर
में सुधार कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त किया है। महिलाओें के लिए कौन-कौनसी
योजनायें चल रही हैं, कौन सी ब्याज रहित ऋण उपलब्ध हो रही
है आदि की जानकारियाँ संचार माध्यमों से उन तक पहुँच रही हैं।
स्त्रियों पर परम्परागत व्यवस्था का
प्रभाव बना है, परम्परायें उनके विचारों को प्रभावित
करती हैं। मजदूर महिलायें, निम्न सामाजिक व आर्थिक वर्गों
की महिलायें आज भी पुरूषों पर निर्भर है, जिससे उनकी स्थिति
व भूमिकाओं में परिवर्तन नहीं आ रही है। लेकिन टी.वी.,
रेडियों पर आधारित कार्यक्रम जैसे कल्याणी इत्यादि प्रसारित किये जाते हैं,
जिसमें विषय विशेषज्ञों द्वारा समस्याओं का समाधान किया जाता है, कृषि दर्शन द्वारा सम्बन्धित समस्याओं का निदान होता है, जिससे आय बढ़ती है व अर्थिक स्थिति में सुधार होता है। महिलाओं को घर से
बाहर कार्य करने की अनुमति नगर निकट गाँवों में अधिक है,
जबकि दूर दराज के गाँवों में कम है। गाँवों में उन महिलाओं की सामाजिक स्थिति
ऊँची मानी जाती है जो कार्यरत हैं, ऐसी महिलायें जो घर के
कार्यों तक सीमित है उनकी सामाजिक स्थिति अच्छी नहीं है,
संचार क्रांति के कारण महिलाओं के जीवन स्तर में गुणात्मक परिवर्तन आया है।
प्रारम्भ में टेलीविजन तथा फिल्मों के द्वारा महिलाओं के आदर्श बहू, आदर्श बेटी, आदर्श माँ के रूप में दिखाया जाता था।
लेकिन आज तस्वीर बदल गयी हैं। महिलाओं के विभिन्न सख्त व सशक्त रूपों को भी
समाज के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। जिससे महिलाओं उनका अनुकरण कर अपने
अधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम बन रही हैं।
आज केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें
ग्रामीण महिलाओं, बालिकाओं के सुरक्षा व
विकास के लिये अनेकों योजनायें चला रही हैं, जिनका मीडिया
द्वारा समाचार पत्रों, टी.वी. इत्यादि के द्वारा तेजी से
प्रचार प्रसार किया जाता है और ग्रामीण महिलाओं आसानी से उनका लाभ प्राप्त कर
लेती है। अनेकों जन सेवा केन्द्र व हेल्पलाइन नम्बर है जो आपको नि:शुल्क
सूचनायें प्रदान करते हैं। महिलाओं की समस्याओंके निराकरण हेतु वर्तमान उत्तर
प्रदेश सरकार द्वारा एक कम्पलेन नम्बर 1090 प्रारम्भ किया है जिस पर 24 घण्टे
सुविधा उपलब्ध है। महिलायें बिना अपना नाम बताये अपने खिलाफ हो रहे शोषण की
शिकायत दर्ज करा सकती हैं।
आज के इस आर्थिक युग में महिलायें स्वावलम्बी
हुई हैं, उनमें आत्म विश्वास और मनोबल भी बढ़ा है। अपने अधिकारों के प्रति सचेत
हुई हैं। कर्नाटक के कोलार जिले से नम्मा ध्वनि (हमारी आवाज) कार्यक्रम प्रसारित
किया जाता है, इसके श्रोता अधिकांश गरीब और निरक्षर महिलायें
हैं, इसके अलावा उत्तराखण्ड में मंदाकिनी की आवाज, बंगलुरू में केलु सखी (सुनो साखी) इत्यादि कार्यक्रम में महिलाओं के
लिये सुचनायें प्रसारित की जाती हैं। इसी प्रकार 26 जनवरी 1967 को दूरदर्शन पर ‘कृषि दर्शन’
नामक कार्यक्रम शुरू हुआ तथा विभिन्न विज्ञापनों द्वारा गर्भवती महिलाओं
को पोषण, टीके, जाँच, रोग, बच्चे के पालन पोषण,
बच्चों में अन्तराल व जनसंख्या नियंत्रण जैसी बातों से जागरूक कराया जाता है।
कोई भी राष्ट्र तभी विकास कर सकता है, जब उसकी आधी आबादी जो कि महिलाओं की है वह आर्थिक,
सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि समस्त
क्षेत्रों में मजबूत एवं सशक्त हो, उनका स्वास्थ्य उत्तम
हो एवं स्वयं के निर्णय लेने में पूर्णत: स्वतन्त्र एवं सक्षम हो। वर्तमान समय
को पुरूष प्रधान समाज कहा जाता है, लेकिन जब हम इतिहास के
पन्ने पलटते हैं तो भारत की प्रथम प्राचीन सिंधु सभ्यता को मातृ सत्तात्मक के
रूप में देखते हैं, उसके उपरान्त वैदिक काल की महिलाओं को
भी समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। अपाला, घोपा, गार्गी, लोपामुन्द्रा जैसी महिलायें पठन-पाठन करती थी तथा यज्ञों में बैठने का अधिकार प्राप्त
था। रामायण-महाभारत में स्वयंवर के आयोजनों का प्रमाण मिलता है। जिसमें स्त्रियों
को स्वयं वन चुनने का अधिकार दिया जाता था। महिलायें शिक्षित हुआ करती थीं तथा
युद्धों में भाग लेती थी व शासन चलाती थीं। भारत में मुस्लिमों के आक्रमण के साथ
ही महिलाओं की सामाजिक स्थिति कमजोर होने लगी। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा
सकता कि कुछ मुट्ठी भर महिलाओं के सशक्त होने से महिलाओं की स्थिति को उत्तम
नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लगभग आधी आबादी महिलाओं की होती
है और उन्हें अधिकार के नाम पर अपमान, खरीद फरोख्त, वेष्यावृत्ति, बाल-विवाह,
दहेज प्रथा आदि बुराइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें
छुटकारा मिलना चाहिये ताकि उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके।
आज संचार क्रान्ति के कारण सुचनायें शहरों
के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी घर-घर तक पहुँच रही हैं। अत: महिलायें यह
समझने लगी हैं कि उनी दुर्गति के लिये अशिक्षा, अंधविश्वास, रूढि़वादिता, परम्परागत मान्यतायें व समाज का
पुरूष प्रधान होना है, जिससे उन्हें गरीबी, शोषण, पक्षपात, दहेज प्रथा, बलात्कार, यौन शोषण इत्यादि का शिकार होना पड़ता
है, जो संचार साधनों व मीडिया द्वारा तेजी से लोगों तक पहुँच
रही है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि महिलाओं के उस आधुनिक व ग्लैमर रूप के
साथ-साथ खेत खलिहानों की महिलाओं व गोद में नवजात शिशु को लिये ईंट बनाती औरत की
बेबसी को भी समाज के सामने वास्तविक रूप में प्रस्तुत करें तथा ग्रामीण महिलायें
संचार के साधनों का भरपूर उपयोग कर अपने आपको आत्म निर्भर करते हुये देश की उन्नति
में सहायक बनकर गोरवान्वित महसूस कर सकें एवं हमारे देश की महिलाओं के समक्ष ऐसा
उदाहरण प्रस्तुत कर सकें ताकि अन्य सहयोगी महिलायें भी उनका अनुकरण कर स्वयं का
तथा राष्ट्र को भी शक्तिशाली बना सकें ।