कुहासा और किरण नाटक का सारांश : कृष्ण चैतन्य के निवास पर अमूल्य और कृष्ण चैतन्य कि सचिव सुनंदा के वार्तालाप से होता है। कृष्ण चैतन्य के साठवें जन्मदिवस के अवसर पर अमूल्य एवं चैतन्य के अलावा उमेशचन्द्र, विपिन बिहारी, प्रभा आदि उन्हें बधाई देते हैं। पाखंडी कृष्ण चैतन्य को राष्ट्र के प्रति सेवाओं के बदले 250 रूपए मासिक पेंशन मिलती है। वह अनेक प्रकार के गैर कानूनी कार्य करता है।उसके घ्रणित कार्यों के तंग आकर ही उसकी पत्नी गायत्री भी उसे छोड़कर अपने भाई के पास चली जाती है। देशभक्त राजेन्द्र के पुत्र अमूल्य से कृष्ण चैतन्य हमेशा सशंकित रहता है।
कुहासा और किरण हिंदी नाटक। Kuhasa aur kiran natak in hindi
नाटक का आरम्भ कृष्ण चैतन्य के निवास पर अमूल्य और कृष्ण चैतन्य कि सचिव सुनंदा के वार्तालाप से होता है। कृष्ण चैतन्य के साठवें जन्मदिवस के अवसर पर अमूल्य एवं चैतन्य के अलावा उमेशचन्द्र, विपिन बिहारी, प्रभा आदि उन्हें बधाई देते हैं।
पाखंडी कृष्ण चैतन्य को राष्ट्र के प्रति सेवाओं के बदले 250 रूपए मासिक पेंशन मिलती है। वह अनेक प्रकार के गैर कानूनी कार्य करता है।उसके घ्रणित कार्यों के तंग आकर ही उसकी पत्नी गायत्री भी उसे छोड़कर अपने भाई के पास चली जाती है। देशभक्त राजेन्द्र के पुत्र अमूल्य से कृष्ण चैतन्य हमेशा सशंकित रहता है।
अतः उसे अपने यहाँ से हटाकर विपिन बिहारी के यहाँ साप्ताहिक हिन्दी का सम्पादन करने के लिए नियुक्त कर देने की सूचना देता है। अमूल्य के रिश्ते की बहन प्रभा नारी अधिकार को लेकर लिखे गए अपने उपन्यास को कृष्ण चैतन्य के माध्यम से छपवाना चाहती है। मुल्तान षड्यंत्र केस, जिसमें कृष्ण चैतन्य ने मुखबिरी की थी, के दल के नेता डॉ चन्द्रशेखर की पत्नी मालती राजनीतिक पेंशन दिलाने का आग्रह करने हेतु कृष्ण चैतन्य के पास आती है और उसे पहचान लेती है। प्रभा एवं मालती के बीच बहस होती है।
पुरानी स्मृतियाँ एवं कलई खुलने के भय से कृष्ण चैतन्य व्याकुल हो जाता है। वहाँ उपस्थित अमूल्य को भी उसकी असलीयत का आभास हो जाता है।
द्वितीय अंक का प्रारम्भ विपिन बिहारी के निजी कक्ष से होता है। विपिन बिहारी पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक हैं, जो पत्रिका छापने के लिए मिलने वाली सरकारी कोटे के कागज़ को ब्लैक करता है। यह ब्लैक मार्केटिंग उमेशचन्द्र अग्रवाल की दूकान से होती है। ये दोनों देश के भृष्ट संपादकों और व्यापारियों के प्रतिनिधि हैं। दोनों का चरित्र आडम्बरपूर्ण और कृत्रिम है, जिन्हें एक अन्य भ्रष्टाचारी कृष्ण चैतन्य का संरक्षण प्राप्त है। अमूल्य द्वारा मुल्तान षड्यंत्र केस के बारे में जानकारी दिए जाने तथा उसमें कृष्ण चैतन्य की देशद्रोही की भूमिका को पत्रिका के माध्यम से उजागर करने संबंधी दिए गए सुझाव को विपिन बिहारी अस्वीकार कर देता है। वह कृष्ण चैतन्य के खिलाफ कुछ भी लिखने में असमर्थता व्यक्त करता है।
वह सुनंदा, प्रभा व अमूल्य को कृष्ण चैतन्य के विरुद्ध कोई भी कार्य न करने के लिए कहता है। इसी बीच वहाँ पुलिस इंस्पेक्टर आकर अमूल्य को पचास रिम कागज़ ब्लैक में बेचने के अपराध में गिरफ्तार कर लेता है। सुनंदा व प्रभा कृष्ण चैतन्य के इस कुकृत्य से क्रोधित होती हैं। तभी उमेशचन्द्र वहाँ आकर अमूल्य द्वारा आत्महत्या के असफल प्रयास करने की सूचना देता है। सुनंदा सम्पूर्ण घटना के विषय में गायत्री को सूचित करती है। इस घटना के पश्चात विपिन बिहारी आत्मग्लानि का अनुभव कर कृष्ण चैतन्य के सम्मुख अपराध के इस मार्ग को छोड़ने की अपनी इच्छा प्रकट करता है। लेकिन वह ‘तरंगे हम तीनो, डूबेंगे, हम तीनो’ कहकर उसका विरोध करता है। इसी बीच गायत्री की कार दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। पत्नी की मृत्यु के बाद कृष्ण चैतन्य को आत्मग्लानि होती है। यहीं पर दूसरा अंक समाप्त हो जाता है।
तृतीय अंक : कृष्ण चैतन्य अपने निवास पर गायत्री देवी की तस्वीर के सम्मुख स्तब्ध भाव से बैठा अपनी पत्नी के बलिदान कि महानता का अनुभव करता है। सुनंदा मृत्यु से पूर्व गायत्री देवी द्वारा लिखे गए पत्र की सूचना पुलिस को देकर जीवित व्यक्तियों के मुखौटों को उतारना चाहती है। इसी समय सी। आई। डी। के अधिकारी आते हैं। विपिन बिहारी उन्हें अपने पत्रों के स्वामित्व परिवर्तन की सूचना देता है। प्रभा उन्हें बताती है कि अमूल्य निर्दोष है।
कृष्ण चैतन्य कागज़ की चोरी का रहस्य स्पष्ट करते हुए कहता है कि वास्तव में चोरी की यह कहानी एक जालसाजी थी, क्योंकि अमूल्य उसका राज जान गया था कि वह कृष्ण चैतन्य नहीं, बल्कि कृष्णदेव है- मुल्तान षड्यंत्र का मुखबिर। इसके बाद वह विपिन और उमेश के भ्रष्टाचार व चोरबाजारी का रहस्य भी खोल देता है। सी। आई। डी। के अधिकारी टमटा साहब सभी को अपने साथ ले जाने लगते हैं। तभी वहाँ मालती आती हैं और पेंशन न मिलने की बात कहती है। कृष्ण चैतन्य अपना सबकुछ मालती को सौंप देता है। कृष्ण चैतन्य के साथ-साथ विपिन बिहारी व उमेश अग्रवाल भी गिरफ्तार कर लिए जाते हैं। अमूल्य के निर्दोष होने के कारण उसे छोड़ दिया जाता है। अमूल्य, प्रभा आदि सभी को अपने अन्तर यानि ह्रदय के चोर दरवाजों को तोड़ने तथा मुखौटा लगाकर घूम रहे मगरमच्छों को पहचानने का सन्देश देता है। ‘बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता’ इस कथन के साथ नाटक समाप्त हो जाता है।
nice is it ryt
ReplyDeleteYes, This article is totally right.
DeleteSupar
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