मोबाइल बिना सब सूना पर निबंध मोबाइल बिना सब सूना पर निबंध: एक समय था जब संवाद के लिए लोग पत्र लिखते थे, महीनों इंतज़ार करते थे, और मेल-मुला...
मोबाइल बिना सब सूना पर निबंध
मोबाइल बिना सब सूना पर निबंध: एक समय था जब संवाद के लिए लोग पत्र लिखते थे, महीनों इंतज़ार करते थे, और मेल-मुलाकात को रिश्तों की नींव मानते थे। आज समय ने करवट ली है—जेब में रखा एक छोटा-सा यंत्र, जिसे हम 'मोबाइल फोन' कहते हैं, हमारे पूरे जीवन का केंद्र बन गया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज "मोबाइल बिना सब सूना" सिर्फ एक उक्ति नहीं, बल्कि एक सामाजिक सत्य है।
मोबाइल आज सिर्फ बात करने का साधन नहीं रह गया है, बल्कि यह डिजिटल दुनिया से जुड़ने का दरवाज़ा बन चुका है। यह हमारी सुबह के अलार्म से लेकर रात की नींद तक का सबसे निकटतम साथी है। यह केवल बातचीत का साधन नहीं, बल्कि बैंकिंग, शिक्षा, चिकित्सा, समाचार, मनोरंजन, शॉपिंग, सोशल नेटवर्किंग और आपातकालीन सहायता तक का माध्यम बन चुका है। COVID-19 महामारी के दौरान जब दुनिया लॉकडाउन के शिकंजे में जकड़ी हुई थी, तब मोबाइल ने ही लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखा। क्लासरूम मोबाइल स्क्रीन पर सिमट आए, कामकाज 'वर्क फ्रॉम होम' में तब्दील हो गया और अब तो डॉक्टरों का परामर्श भी मोबाइल से लिया जा सकता है।
यह भी सत्य है कि मोबाइल ने हमारे व्यक्तिगत जीवन को भी अजीब से द्वंद्व में डाल दिया है। हम शारीरिक रूप से भले ही परिवार के बीच हों, परंतु मानसिक रूप से एक स्क्रीन में उलझे हुए रहते हैं। बच्चों का बचपन मोबाइल गेम्स में सिमट गया है, युवाओं की ऊर्जा इंस्टाग्राम रील्स में बिखर रही है, और आपस में होने वाली बातचीत व्हाट्सएप फॉरवर्ड तक सीमित हो गई है। संवाद कम हो गया है, स्क्रीन टाइम बढ़ गया है, और रिश्तों की गर्माहट डिजिटल इमोजी में बदल गई है। यदि मोबाइल कुछ घंटों के लिए भी छूट जाए, तो व्यक्ति बेचैन, असहाय और अनिश्चित महसूस करने लगता है।
यह सच है कि मोबाइल ने हमारे जीवन को कई मायनों में आसान बनाया है। लेकिन सुविधा तब तक ही अच्छी होती है जब तक वह विवेक के साथ उपयोग की जाए। जिस क्षण वह विवेक पर हावी हो जाए, वह सुविधा नहीं, एक बंधन बन जाती है। इसलिए मोबाइल का उपयोग यदि सीमित हो, तो यह वरदान है; परंतु जब इसकी सीमा पार हो जाए, तो यह मनुष्य को सामाजिक जीवन से काट देता है। यह विडंबना है कि जिस मोबाइल से हम दुनिया से जुड़ना चाहते हैं, वही हमें अपने सबसे करीबी लोगों से दूर कर देता है। हम साथ रहकर भी अकेले हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण है—हमारा मोबाइल-केन्द्रित जीवन।
अतः हमें यह मान लेना चाहिए कि मोबाइल आधुनिक जीवन का अपरिहार्य हिस्सा बन चुका है। लेकिन "मोबाइल बिना सब सूना" उक्ति हमें यह सोचने को विवश करती है कि क्या हमने तकनीक को अपनाया है, या तकनीक ने हमें निगल लिया है? यह प्रश्न विशेष रूप से आज के युवा वर्ग और बच्चों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी शिक्षा, मानसिक विकास और सामाजिक समझ मोबाइल के प्रभाव में आकार ले रही है। इसलिए जब हम मोबाइल का उपयोग संयम से करेंगे, तभी हम ऐसे जीवन की ओर बढ़ पाएंगे जो सूचना से भरपूर हो, पर संवेदना से रिक्त न हो।
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