लिव-इन रिलेशनशिप पर निबंध: समाज बदलता है, समय के साथ मूल्य भी बदलते हैं। जो कभी अस्वीकार्य था, वह धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है। इसी परिवर्तनशील सामाजि
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप पर निबंध (Essay on live in relationship in Hindi )
लिव-इन रिलेशनशिप पर निबंध: समाज बदलता है, समय के साथ मूल्य भी बदलते हैं। जो कभी अस्वीकार्य था, वह धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है। इसी परिवर्तनशील सामाजिक धारा में एक विषय आज विशेष चर्चा में है — लिव-इन रिलेशनशिप, अर्थात बिना विवाह के दो लोगों का एक साथ रहना। इसके समर्थक यह तर्क देते हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप व्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद का प्रतीक है। जब दो वयस्क सहमति से एक साथ रहना चाहते हैं, तो समाज को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। वे इसे एक तरह की प्री-मैरिटल समझदारी मानते हैं, जिससे विवाह से पहले दो लोग एक-दूसरे को और अच्छे से समझ पाते हैं। परन्तु सवाल ये है की क्या पश्चिम से आने वाली प्रत्येक विचारधारा अनुसरण करने योग्य है ? इसलिए हमें लिव-इन रिलेशनशिप को कई दृष्टिकोणों से देखना होगा — कानूनी, सामाजिक, नैतिक और व्यक्तिगत।
परंपरावादी सामाजिक दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति में 'विवाह' केवल दो लोगों का मिलन नहीं, दो परिवारों का, दो संस्कृतियों का और दो कुलों का एक पवित्र बंधन होता है। रामायण से लेकर महाभारत तक, विवाह को 'धर्म' और 'कर्तव्य' की दृष्टि से देखा गया है। जब तक विवाह संपन्न नहीं होता, दो व्यक्तियों का सहजीवन समाज के लिए स्वीकार्य नहीं होता। ग्रामीण भारत में तो यह विचार लगभग वर्जित है। शहरी भारत में भले ही लिव-इन बढ़ रहा हो, परंतु वहाँ भी इसे अक्सर गुप्त रखा जाता है। इस दृष्टिकोण से, लिव-इन संबंध संस्कारविहीन, दायित्वविहीन और अस्थायी माने जाते हैं। पारंपरिक सोच मानती है कि ऐसे संबंध सामाजिक विघटन, पारिवारिक विघटन और सांस्कृतिक क्षरण को जन्म देते हैं।
क़ानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन और निजता का अधिकार देता है। इसी अधिकार के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन को जीवनशैली के रूप में स्वीकार किया है। भारतीय न्यायपालिका ने भी यह स्पष्ट किया है कि यदि दो बालिग अपनी इच्छा से साथ रहना चाहें, तो वह अवैध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह भी कहा है कि लिव-इन में रहने वाली महिला को ‘पत्नी’ जैसे अधिकार मिल सकते हैं यदि संबंध दीर्घकालिक और स्थायी हो। परंतु यही संविधान अनुच्छेद 51A में नागरिकों के लिए मूल कर्तव्यों का उल्लेख भी करता है, जिसमें भारतीय संस्कृति की गरिमा का संरक्षण करना शामिल है।
लिव-इन रिलेशनशिप: वास्तविक आकलन
लिव-इन रिलेशनशिप को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आधुनिक सोच और विवाह पूर्व समझदारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के अनुभव बताते हैं कि लिव-इन संबंधों ने पारंपरिक विवाह संस्था को कमजोर किया है, जिससे तलाक की दरों में वृद्धि, पारिवारिक विघटन, और मानसिक अवसाद जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। इन देशों में जन्म लेने वाले अनेक बच्चे बिना स्थायी पारिवारिक संरचना के बड़े हो रहे हैं, जिससे उनमें असुरक्षा, अपराध की प्रवृत्ति और भावनात्मक अस्थिरता देखी गई है। जब रिश्ते सामाजिक मान्यता और जिम्मेदारी से रहित हो जाते हैं, तो उनमें स्थायित्व और उत्तरदायित्व की भावना कम हो जाती है, जिससे समाज में नैतिकता और अनुशासन का ह्रास होता है।
निष्कर्ष
लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय समाज में एक उभरती हुई वास्तविकता है, जिसे नजरअंदाज़ करना अब संभव नहीं। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि यह विवाह का विकल्प बन चुका है। विवाह जहाँ सामाजिक सुरक्षा और सांस्कृतिक स्वीकृति देता है, वहीं लिव-इन व्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित है। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि युवा पीढ़ी केवल इसका अंधानुकरण न करे, तो हमें संवाद का वातावरण बनाना होगा। हमें यह स्वीकार करना होगा कि बदलते समाज में रिश्तों की परिभाषा भी बदलेगी — पर मूल मूल्य वही रहने चाहिए: सच्चाई, समर्पण और सम्मान।
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