विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध: आज का युग प्रजातन्त्र का युग है। आज राजनीति प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रविष्ट हो चुकी है। जहाँ तक विद्यार्थियों का
विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध (Vidyarthi aur Rajniti par Nibandh)
भूमिका: विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन का निर्माणकाल होता है। विद्यार्थी इस जीवन में अपने ज्ञान भण्डार का विकास करता है। वह साहित्य, कला, इतिहास, गणित, मनोविज्ञान एवं चिकित्सा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषयों का अध्ययन करता है। उन विषयों में राजनीति भी एक महत्त्वपूर्ण विषय है।
विद्यार्थी और राजनीति: आज का युग प्रजातन्त्र का युग है। आज राजनीति प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रविष्ट हो चुकी है। जहाँ तक विद्यार्थियों का राजनीति से सम्बन्ध है, तो वे तो इस विषय का अध्ययन और मनन ही करते हैं। वे राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण करते हैं, देश-विदेशों की विभिन्न गतिविधियों पर ध्यान रखते हैं। अतः उनका राजनीति से घनिष्ठ सम्बन्ध होना स्वाभाविक ही है।
विद्यार्थी का राजनीति में प्रवेश सही अथवा गलत: अब प्रश्न यह उठता है कि विद्यार्थी को राजनीति में क्रियात्मक रूप से भाग लेना चाहिए या नहीं। समाज का एक वर्ग ऐसा है जो विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेने से मना करता है। इस वर्ग के अनुसार विद्यार्थियों को अर्जुन के समान चिड़िया के नेत्र रूपी विद्या को ही लक्ष्य बनाना चाहिए। उसे प्रतिक्षण ज्ञानार्जन की ही धुन होनी चहिए। राजनीति का कीचड़ विद्यार्थियों को उनके वास्तविक लक्ष्य से दूर ले जाता है। साथ ही अनुभवहीन विद्यार्थी देश की राजनीति में भाग लेकर देश की नौका को भी मँझधार में डुबो देते हैं। अतः विद्यार्थियों को सक्रिय राजनीति से दूर रहकर ही विषय के रूप में राजनीति का अध्ययन करना चाहिए। राजनीति का कुछ सक्रिय ज्ञान महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए अपेक्षित हो सकता है, किन्तु वह भी सीमित मात्रा में ही होना चाहिए। ऐसा होने से वे देश के सामने संकट आने पर पूर्णरूपेण सक्रिय हो सकते हैं। बड़े-बूढ़ों की राजनीति में दूरदर्शिता अवश्य होती है, किन्तु राजनीतिक क्रान्ति युवावर्ग ही उत्पन्न कर सकता है। दूसरे वर्ग के लोगों के मतानुसार विद्यार्थी नए खून के नए जोश से भरे होते हैं। वे देशहित को ध्यान में रखकर सामाजिक कुरीतियों का सफाया कर देने की क्षमता रखते हैं। अतः उन्हें राजनीति में सक्रिय भाग लेना चाहिए। इस प्रकार विभिन्न मतों के कारण वर्तमान समय यह एक विवाद का विषय बन गया है। अतएव यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि विद्यार्थी और राजनीति आपस में कितनी गहराई तक जुड़े हैं?
समन्वयात्मक दृष्टिकोण: विद्यार्थी का राजनीति में भाग लेना कहाँ तक सही है और कहाँ तक गलत - इन प्रश्नों का उत्तर विभिन्न मतों को जानकर ही पाया जा सकता है।
जो विचारक विद्यार्थी की राजनीति में सक्रियता के पक्षधर हैं, उनके मतानुसार यह निम्न कारणों से सही है-
- इतिहास इस बात का साक्षी है कि विभिन्न क्रान्तियों की सफलता में विद्यार्थियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। देश की स्वाधीनता के लिए जिन नेताओं ने अपने जीवन का बलिदान दिया, उनमें से अधिकांश विद्यार्थी - जीवन से ही राजनीति में भाग लेने लगे थे।
- विद्यार्थी ही देश के भावी कर्णधार हैं। यदि वे राजनीति से अलग रहेंगे तो देश की समस्याओं से भी अनभिज्ञ रहेंगे। ऐसी स्थिति में देश के समक्ष संकट की घड़ी में वे अपना योगदान नहीं दे सकेंगे।
- विद्यार्थी शक्ति की असीम निधि हैं, सम्भावनाओं का अपार स्रोत हैं। अतः राष्ट्र की उन्नति इन्हीं पर निर्भर है। यही कारण है कि महात्मा गांधी ने विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया था।
- अब्राहम लिंकन के अनुसार - "लोकतन्त्र जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा बनाई गई सरकार होती है।" अतएव प्रत्येक व्यक्ति को शासन-कार्यों में भाग लेने का अधिकार है, फिर भला विद्यार्थी ही इस अधिकार से क्यों वंचित रहें?
आज चारों ओर स्वार्थ, भ्रष्टाचार एवं अन्याय का बोलबाला है। राजनेता अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए प्रत्येक अनुचित कार्य करने को तैयार रहते हैं। ऐसे स्वार्थ की नींव पर खड़े सत्ता के ढाँचे को बदलने का साहस केवल विद्यार्थियों में ही है।
जो विचारक विद्यार्थी का राजनीति में प्रवेश पूर्णतया गलत मानते हैं, वे अपने मत के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं-
- वर्तमान राजनीति भ्रष्टाचार का पर्याय है। विद्यार्थी - जीवन में ही राजनीति में प्रवेश लेने से विद्यार्थी के मन में भ्रष्ट आचरणों एवं कुसंस्कारों के बीज पड़ जाते हैं।
- विद्यार्थी जीवन में ही राजनीति में सक्रिय भाग लेने से विद्यार्थी अपना समुचित विकास नहीं कर सकता।
- कहा जाता है कि दुष्टों की संगति में निर्मल प्रवृत्ति के व्यक्ति भी दुष्ट बन जाते हैं। बर्नार्ड शॉ ने भी अपनी एक पुस्तक में लिखा था - " राजनीति दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्तियों के लिए अन्तिम शरणालय है। "
अतः राजनीति में भाग लेने वाले विद्यार्थी राजनीतिक दलों के बहकावे में आकर विध्वंसक गतिविधियों में भाग लेते हैं तथा देश को अत्यन्त हानि पहुँचाते हैं।
उपसंहार: विद्यार्थी और राजनीति आज एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं। इन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यदि विद्यार्थियों को भविष्य में राष्ट्र का नेतृत्व करना है, तो उन्हें सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने से पूर्व अपनी क्षमताओं का समुचित विकास करना चाहिए।
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