सांप्रदायिक सद्भाव पर निबंध: भारत एक ऐसा देश है जो विविधताओं की भूमि कहलाता है। यहाँ अनेक धर्म, जातियाँ, भाषाएँ और संस्कृतियाँ एक साथ मिलकर एक सुंदर म
सांप्रदायिक सद्भाव पर निबंध (Sampradayik Sadbhav par Nibandh)
सांप्रदायिक सद्भाव पर निबंध: भारत एक ऐसा देश है जो विविधताओं की भूमि कहलाता है। यहाँ अनेक धर्म, जातियाँ, भाषाएँ और संस्कृतियाँ मोतियों के समान आपस में मिलकर एक सुंदर माला का निर्माण करती हैं। इस माला की सबसे मजबूत डोरी है — सांप्रदायिक सद्भाव। जब लोग अपने-अपने धर्म का सम्मान करते हुए दूसरों के धर्म की इज्जत करते हैं, मिलजुल कर रहते हैं और एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं, तभी एक सच्चा लोकतंत्र फलता-फूलता है।
सांप्रदायिक सद्भाव का अर्थ है विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच आपसी समझ, सहिष्णुता और सहयोग की भावना। जब हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और अन्य समुदाय आपस में भाईचारे से रहते हैं, एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं, सुख-दुख में साथ खड़े होते हैं — तभी सच्चे अर्थों में सांप्रदायिक सद्भाव का रूप दिखता है।
भारत के इतिहास में सांप्रदायिक सौहार्द के कई प्रेरणादायक उदाहरण मिलते हैं। महात्मा गांधी ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि धर्म इंसान को जोड़ने का माध्यम होना चाहिए, तोड़ने का नहीं। उन्होंने कहा था — "मैं हर धर्म का आदर करता हूँ, क्योंकि हर धर्म में सच्चाई और प्रेम की झलक है।" आज भी कई गाँव और शहर ऐसे हैं जहाँ मंदिर के बगल में मस्जिद है, और चर्च के सामने गुरुद्वारा। लोग एक-दूसरे के पर्व जैसे ईद, दिवाली, गुरुपर्व, क्रिसमस आदि को मिलकर मनाते हैं।
परंतु, कभी-कभी कुछ स्वार्थी तत्व सांप्रदायिक नफरत फैलाकर इस एकता को तोड़ने की कोशिश करते हैं। वे अफवाहें फैलाकर लोगों के बीच गलतफहमियाँ पैदा करते हैं, जिससे दंगे, तनाव और हिंसा जैसी घटनाएँ होती हैं। ऐसी ही एक घटना 2001 में गुजरात में हुई, जब कुछ सिरफिरे लोगों की वजह से पूरे राज्य में हिंसा फैल गई। लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। लेकिन क्या किसी को इससे कुछ हासिल हुआ? नहीं। बल्कि इंसानियत को शर्मसार होना पड़ा। हजारों परिवार उजड़ गए, बच्चों से उनके माता-पिता छिन गए, और वर्षों तक दिलों में भय और घाव बने रहे।
ऐसी स्थितियों में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम सजग रहें, किसी भी झूठी बात पर विश्वास न करें, और सत्य को जानकर ही प्रतिक्रिया दें। सबसे जरूरी है कि हम एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें और संवाद बनाए रखें। सरकार को भी सांप्रदायिक दंगे भड़काने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। सबसे ज़रूरी है कि मीडिया को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए, ताकि सच और अफवाह में फर्क जनता तक पहुंचे।
हमें याद रखना चाहिए कि धार्मिक आस्था एक निजी विषय है, जबकि मानवता एक सार्वभौमिक मूल्य है। जब एक मुसलमान अपने हिन्दू दोस्त के साथ दिवाली मनाता है या एक सिख ईद के अवसर पर अपने मुस्लिम पड़ोसी के घर मिठाई लेकर जाता है, तभी सच्चा भारत जीवंत होता है। हमें ऐसे ही उदाहरणों को बढ़ावा देना चाहिए।
विद्यालयों में बच्चों को शुरुआत से ही सर्वधर्म समभाव की शिक्षा दी जानी चाहिए। किताबों के साथ-साथ जीवन के पाठ भी जरूरी हैं — जैसे "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"। बच्चों को सिखाना होगा कि पहले वे इंसान हैं, फिर हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई।
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