अगर गांधी जी आज होते तो पर निबंध: आज जब हम सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक मूल्यों के संकट के दौर से गुजर रहे हैं तो यह प्रश्न बार-बार हमारे मन में उठता है
अगर गांधी जी आज होते तो हिंदी निबंध
अगर गांधी जी आज होते तो पर निबंध: आज जब हम सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक मूल्यों के संकट के दौर से गुजर रहे हैं, तो यह प्रश्न बार-बार हमारे मन में उठता है — अगर गांधी जी आज होते तो क्या होता? क्या वे इस बदलती दुनिया में प्रासंगिक रह पाते? क्या उनकी अहिंसा, सत्य और स्वराज की अवधारणाएँ आज के डिजिटल, वैश्विक और बाजारवादी युग में टिक पातीं? यह प्रश्न केवल एक कल्पना नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर भी है।
महात्मा गांधी का युग स्वतंत्रता संग्राम का युग था, जहाँ उनका संघर्ष बाह्य सत्ता के विरुद्ध था। आज भारत राजनीतिक रूप से स्वतंत्र है, लेकिन क्या हम आंतरिक रूप से भी उतने ही स्वतंत्र हैं? क्या हमारी सोच, कार्यशैली और सामाजिक संरचनाएँ वास्तव में स्वतंत्रता की भावना से परिपूर्ण हैं? गांधी जी आज होते, तो शायद वे यह कहते कि अब हमें बाहरी नहीं, बल्कि अपने भीतर के उपनिवेशवाद से लड़ना है — भ्रष्टाचार, उपभोक्तावाद, असहिष्णुता और नैतिक शून्यता जैसे आंतरिक शत्रुओं से।
यदि गांधी जी आज होते, तो उनकी सबसे बड़ी चिंता शायद ग्रामीण भारत होता। जिस 'ग्राम स्वराज' का सपना उन्होंने देखा था, वह आज भी अधूरा है। तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और ग्रामीण-शहरी असमानता ने भारत के सामाजिक ताने-बाने को और जटिल बना दिया है। गांधी जी शायद आज भी गाँवों को आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और सतत विकास के मॉडल के रूप में विकसित करने की वकालत करते, जहाँ तकनीक का प्रयोग मानवीय गरिमा और प्रकृति की मर्यादा के साथ होता।
राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो गांधी जी आज की राजनीति में मूल्यों की गिरावट से व्यथित होते। चुनावी हिंसा, धनबल, जातिगत ध्रुवीकरण और नीतिगत अस्थिरता — ये सब उनके लिए गंभीर चिन्ता का विषय होते। वे शायद राजनीति को पुनः 'लोकसेवा' में परिवर्तित करने का आग्रह करते, जहाँ नेता पद के पीछे नहीं, कर्तव्य के पीछे दौड़ते।
मीडिया और सोशल मीडिया के युग में गांधी जी का संवाद का तरीका अवश्य बदलता, पर उनकी संवाद की आत्मा नहीं। वे शायद ट्विटर, ब्लॉग और यूट्यूब का उपयोग भी करते, लेकिन केवल प्रचार नहीं, विचार और जागरूकता के लिए। वे ट्रोल संस्कृति के खिलाफ खड़े होते, संवादहीनता की जगह सहिष्णु बहस को बढ़ावा देते और फेक न्यूज़ के विरुद्ध सत्याग्रह करते।
आर्थिक संदर्भ में, गांधी जी आज के नवउदारवादी नीतियों और 'उपभोग ही सफलता' के मॉडल पर प्रश्न उठाते। वे स्थानीय उत्पादन, हस्तशिल्प, खादी और आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों को आधुनिक अर्थव्यवस्था में नए रूप में स्थापित करने का प्रयास करते। ‘विकास’ की अंधी दौड़ में वे पूछते कि क्या हमने मनुष्यता को पीछे छोड़ दिया है?
मानवाधिकारों के संदर्भ में भी गांधी आज के समय में एक नैतिक आवाज़ होते। चाहे दलितों के अधिकार हों, आदिवासियों की भूमि की रक्षा, महिला सुरक्षा या अल्पसंख्यकों के अधिकार — गांधी का नज़रिया न्यायपूर्ण और समावेशी होता। वे समाज को जोड़ने की बात करते, तोड़ने की नहीं।
अंत में, गांधी जी का सबसे बड़ा योगदान था — एक अंतरात्मा की आवाज़ को जीवित रखना। आज जब व्यक्तिगत और राष्ट्रीय जीवन में 'सत्य' का मूल्य कम होता जा रहा है, गांधी का होना मात्र एक व्यक्ति का होना नहीं होता — वह एक चेतना का पुनर्जागरण होता। अगर गांधी जी आज होते, तो वे शायद सड़कों पर कम और हमारी अंतरात्मा के आईने में अधिक दिखाई देते। वे हमें यह याद दिलाते कि सच्चे परिवर्तन की शुरुआत भीतर से होती है — और जब तक हम खुद को नहीं बदलते, कोई व्यवस्था या क्रांति स्थायी नहीं हो सकती।
इसलिए, गांधी जी की आज की उपस्थिति को केवल एक ऐतिहासिक कल्पना न मानें। यह एक दर्पण है — जिसमें हम स्वयं को देख सकते हैं, परख सकते हैं और शायद थोड़ा बेहतर बना सकते हैं। गांधी आज होते, तो शायद वे हमें यही सिखाते — कि देश से पहले, दुनिया से पहले, खुद को बदलो; तभी परिवर्तन संभव है।
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