मिस पाल की कहानी का सारांश (Miss Pal Kahani ka Saransh) "मिस पाल" कहानी मोहन राकेश द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी कहानी है। कहानी ...
मिस पाल की कहानी का सारांश (Miss Pal Kahani ka Saransh)
"मिस पाल" कहानी मोहन राकेश द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी कहानी है। कहानी मिस पाल के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक स्वतंत्र, शिक्षित और नौकरीपेशा महिला है।
मिस पाल एक अविवाहित, नौकरीपेशा महिला थीं। बचपन में ही परिवार के प्यार से वंचित रहने के कारण उन्हें पंद्रह साल की उम्र में ही घर छोड़कर दिल्ली आना पड़ा था। दिल्ली में सूचना विभाग के दफ्तर में उन्हें नौकरी मिल गई। दफ्तर में वह कम बोलने वाली महिला के रूप में जानी जाती थीं। साधारण रंग-रूप होने के कारण उन्हें खुद को सजाने-संवारने पर काफी खर्च करना पड़ता था। छोटे बाल रखना और स्लीवलेस की कमीज पहनना उनका तरीका था, जिससे वह अपने मोटापे को छिपाने की कोशिश करती थीं।
दफ्तर में उन्हें अक्सर सहकर्मियों के चुटकलों का सामना करना पड़ता था। कोई उनकी रंगत की तारीफ कर देता था तो कोई उनके कपड़ों पर कमेंट कर देता था। दफ्तर का माहौल उनके लिए काफी दम घोटने वाला था। वहाँ उनका इकलौता सहारा रणजीत था। रणजीत उनके सहकर्मी थे, जिनसे वह खुलकर बातें कर सकती थीं।
जब रणजीत अस्पताल में भर्ती थे, तब मिस पाल उनके लिए दूध और फल लेकर जाती थीं। इस पर भी लोग उनके बारे में अजीब-अजीब बातें करते थे। इन भद्दे मजाकों से तंग आकर और दफ्तर के माहौल से घुटन महसूस कर मिस पाल ने नौकरी छोड़ने का फैसला किया। उन्हें लगता था कि वह अपनी जिंदगी फिजूल में खर्च कर रही हैं। सुबह दफ्तर जाती हैं और उन लोगों के बीच रहती हैं जिनकी सोच बहुत छोटी है। इस तरह जीने का क्या फायदा? उनकी जरूरतें भी ज्यादा नहीं थीं। किसी सुंदर पहाड़ी इलाके में जाकर अपनी चित्रकला की शौक को पूरा कर सकती हैं। वहाँ जाकर एक छोटा-सा कमरा ले लूंगी, तो खर्च भी कम होगा।
रणजीत ने उन्हें बहुत समझाया कि नौकरी छोड़ना सही फैसला नहीं है, लेकिन मिस पाल नहीं मानीं। आखिरकार वह दिल्ली की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर कुल्लू के पास रायसन गाँव में रहने के लिए चली गईं।
रायसन आकर भी मिस पाल के जीवन में कोई खास बदलाव नहीं आया। यहाँ भी वह अकेली, उदास और अस्त-व्यस्त रहती थीं। रणजीत उनके घर गए तो देखा कि मिस पाल तकिये में मुँह गड़ाकर दीवार की ओर देख रही थीं। घर में हर तरफ सामान बिखरा हुआ था। उन्हें कमरे की फिक्र न थी, न ही अपने खाने-पीने का ध्यान रहता था। यहाँ भी वह अकेलेपन का दर्द झेल रही थीं। उनका साथी कुत्ता भी मर चुका था, जिससे वह और उदास रहने लगी थीं। रणजीत की लाख कोशिशों के बावजूद उनके चेहरे पर खुशी नहीं आती थी। वह चाहकर भी अपने आप को बदल नहीं पाती थीं।
रायसन में भी बच्चे उनके रंग-रूप को देखकर हंसते और उन्हें चिढ़ाते थे। लेकिन उन्हें इन बच्चों से कोई शिकायत नहीं थी। वह अपनी अपमानित भावना को छिपाती हुई नजर आती थीं। रणजीत के यह कहने पर कि तुम अपना ध्यान नहीं रखती हो, उनकी आँखों में पानी आ जाता है।
कहानी यहीं खत्म हो जाती है। यह पाठक पर छोड़ दिया गया है कि मिस पाल को पहाड़ों पर शांति मिली या नहीं। लेकिन कहानी हमें आधुनिक समाज में व्यक्तिगत संबंधों के टूटने और व्यक्तियों के अकेलेपन की गंभीर समस्या पर चिंतन करने पर मजबूर कर देती है।
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