श्यामपट की आत्मकथा: मैं लखनऊ के दयानंद कॉन्वेंट स्कूल की कक्षा नौ की दीवार पर टंगा एक श्यामपट हूँ। बीस साल का हो चुका हूँ। इतने सालों में मैंने कितने
श्यामपट की आत्मकथा हिंदी निबंध - Essay on Autobiography of A Blackboard in Hindi
श्यामपट की आत्मकथा: मैं लखनऊ के दयानंद कॉन्वेंट स्कूल की कक्षा नौ की दीवार पर टंगा एक श्यामपट हूँ। बीस साल का हो चुका हूँ। इतने सालों में मैंने कितने ही बच्चों को अपने सामने पढ़ते-लिखते और बड़ा होते देखा है। गणित के पेचीदा सवालों को सुलझाना, विज्ञान के रहस्य खोलना, अंग्रेजी के नए शब्द सीखना - ये सब कुछ मेरे सामने ही हुआ है। कक्षा सात में मेरा बड़ा भाई (वहां का श्यामपट) रहता है। कभी-कभी वो कहता है कि, "अब बारी मेरी है, तुम्हारी छात्र-छात्राओं को मैं पढ़ाऊँगा।"
मुझे सबसे अच्छा लगता है जब शिक्षिक-शिक्षिका गणित का कोई सवाल पूछती हैं और बच्चे बारी-बारी से मेरे पास आकर जवाब लिखने की कोशिश करते हैं। मैं मन ही मन उन्हें सफलता की शुभकामनाएं देता हूँ। कभी-कभी, शिक्षिका की पीठ पीछे, बच्चे मेरी काली सतह पर कोई चित्र, कार्टून या आलेखन बना देते हैं। ये सब मेरे लिए उनके स्नेह का ही तो प्रतीक है।
हर दिन एक बार सफाईकर्मी आकर मुझे गीले कपड़े से साफ करता है, मानो मेरी थकान मिटा रहा हो। दिनभर मैं अपने दोस्तों - सफेद चॉक और काले डस्टर - के साथ व्यस्त रहता हूँ। चॉक मेरे शब्द उकेरता है और डस्टर गलतियों को मिटाकर नई शुरुआत का रास्ता दिखाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी, मैं एक खास किस्म के पत्थर का बना हूँ, जिसे स्लेट कहते हैं। मुझे मध्य प्रदेश से निकाला गया था, फिर तराशा और पॉलिश किया गया था। फिर लखनऊ की एक दुकान से दयानंद कॉन्वेंट स्कूल की भेजा गया। कक्षा बनने के बाद, मुझे दीवार पर टांगा गया। तभी से मैं कक्षा का अभिन्न अंग बन गया।
पर बदलाव का पहिया तो चलता ही रहता है। एक दिन कक्षा अध्यापिका ने उत्साह से घोषणा की, "हमारी कक्षाएँ स्मार्ट क्लासरूम में बदलने जा रही हैं!" नए इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड आएंगे, जो इंटरनेट से जुड़े होंगे। चॉक की जगह स्टाइलस ले लेगा और डस्टर की जगह स्क्रीन पर एक बटन होगा। मेरा दिल धक् से हुआ। क्या मेरा वक्त खत्म हो चुका है? क्या अब मुझे दीवार से उतार दिया जाएगा? शायद किसी गरीब बच्चों के स्कूल में भेज दिया जाएगा?
एक अजीब सी उदासी मेरे अंदर समा गई। मैंने आखिरी बार कक्षा की ओर देखा। बच्चे खुशी से नाच रहे थे। उनके उत्साह में मेरा दुख कहीं खो गया। शायद ये बदलाव जरूरी है, शायद टेक्नोलॉजी ज्ञान के इस सफर को और आसान बना देगी।
चाहे मैं रहूँ या न रहूँ, कक्षाओं में ज्ञान का दीप जलता रहेगा। शायद मेरी जगह कोई नया स्मार्ट बोर्ड ले ले, पर शिक्षा का सिलसिला हमेशा बना रहेगा। यही मेरी तमन्ना है।
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