फार्म हाउस में बिताया एक दिन पर हिंदी निबंध: कक्षा में आते ही कक्षाध्यापिका जी ने घोषणा की कि इसी सप्ताहांत में हमारी कक्षा को गुड़गाँव स्थित एक फार्म
फार्म हाउस में बिताया एक दिन पर हिंदी निबंध
कक्षा में आते ही कक्षाध्यापिका जी ने घोषणा की कि इसी सप्ताहांत में हमारी कक्षा को गुड़गाँव स्थित एक फार्म हाउस में पूरा दिन बिताने की अनुमति प्रधानाचार्य जी से मिल गई है। यह सुनकर सभी विद्यार्थी आश्चर्यचकित हो, मूक बने एक- दूसरे को देखने लगे। खुशी-खुशी कार्यक्रम बनाते ही सारा दिन बीत गया। सप्ताहांत आ पहुँचा और हमने आवश्यक वस्तुएँ ले सुबह ही गुड़गाँव की ओर प्रस्थान किया। गीत गाते, चुटकुले सुनाते हम कब निश्चित स्थान पर पहुँच गए समय का भान ही नहीं हुआ।
फार्म हाउस चारों ओर से बड़े-बड़े सदाबहार देवदार के वृक्षों से घिरा था। उसकी हरी-हरी मखमली कालीन जैसी घास पर पाँव रखते ही तन सिहर उठा। उसकी अनेक क्यारियों में गुलाब, गुलदाऊदी, कन्हेर आदि के सुंदर एवं लुभावने खिले हुए थे। शहतूत के बड़े-बड़े पेड़ों पर लंबे-लंबे लाल-लाल रस भरे शहतूत लटक रहे थे, जिन्हें हमने तोड़ कर खाया। अमरूद के पेड़ों पर गदराए अमरूदों को देख हम अपने आपको रोक नहीं पाए। हममें से कइयों के जीवन का यह पहला अवसर था जब हमने वृक्षों से तोड़कर ताजे फलों का रसास्वादन किया। इतने में सैनिक वेश में सज्जित व्यक्ति ने नदी पर नहाने जाने को कहा। हम सबने अपने 'स्विमिंग सूट' लिए और नदी की ओर चल पड़े। यहाँ पर यमुना नदी का विशाल रूप देख उसमें उतरने में भय प्रतीत हुआ पर उस व्यक्ति ने हमें किनारे पर कम पानी में नहाने को कहा। हम सब सहमते हुए पानी में उतरे, पर बाद में दो घंटे तक निर्बाध रूप से नहाते रहे। नहाने का इतना सुखद आनंद जीवन में प्रथम बार पाया था।
दोपहर के भोजन का समय हो चला था, इसलिए हमें मन मारकर वहाँ से आना पड़ा। शीघ्र ही भोजन कर हम 'ट्रैकिंग' के लिए पास की पहाड़ी की ओर चल पड़े। पहाड़ी अधिक ऊँची नहीं थी पर जंगली पेड़-पौधों एवं बेर की कंटीली झाड़ियों से भरी थी, लाल-पीली बेरियों को तोड़ते हुए हमें कांटे चुभ रहे थे, पर उन मीठे बेरों का स्वाद आज ही पता चला, तभी तो राम जी ने शबरी के झूठे बेरों को फेंका नहीं, सब खा लिए थे। हम बेर तोड़ने में व्यस्त थे, इतने में भूरे रंग का एक खरगोश हमारे पास से भागा, हमने उसका पीछा करने का प्रयास किया पर वह तेजी से बिल में छुप गया था। मेरे कुछ मित्र एक स्थान पर खड़े होकर शोर मचाने लगे। हमने वहाँ एक साँप को कुंडली मारे देखा, हमारी अध्यापिका जी ने बताया कि वह काला नाग है जो केंचुली उतार रहा है, इसलिए भाग नहीं पा रहा है। थोड़ा आगे जाने पर हमने एक पक्षी को पत्थरों के ढेर पर बैठे देखा। काले एवं सफेद रंग का पक्षी हमें देख उड़कर भाग गया, हमने देखा वहाँ दो अंडे थे। मैं कंकड़-पत्थर का घौंसला देख चकित रह गया। उसी समय लंबी पूँछ वाले मोर को अति निकट उड़ते देख हम चकित रह गए। वह कुछ दूर तक उड़ा और फिर रुक गया, वहीं पर कई मोर - मोरनियाँ थे। एक मोर अपने सुंदर पंख फैलाकर नाच रहा था। जीवन में यह पहला अवसर था जब मैंने मोर को प्रत्यक्ष नाचते देखा। झाड़ियों के झुरमुटों से हमने कई जीव-जंतुओं एवं पक्षियों को उठते-बैठते और निकलते देखा। इस प्रकार झुटपुटा हो चला था और विवश हो हमें फार्म हाउस लौटना पड़ा।
वहाँ आकर हम एक तालाब के किनारे बैठ गए। फार्म हाउस का यह भाग नितांत सुनसान जंगल-सा प्रतीत हो रहा था। घने जंगल का - सा आभास देते इस भाग में एक गहरा तालाब और एक कुआँ था, इसी से फार्म हाउस के खेतों की सिंचाई होती थी। तालाब में ढेर सारी मछलियों को स्वच्छंद-निर्भय विचरण करते देख आनंद आ गया। इसके पश्चात् पास के खेतों से हमने गाजर, मूली, मटर, शलजम आदि लिए और कुएं के पानी में धोकर खाए तो उनके वास्तविक स्वाद का ज्ञान आज ही हुआ। गन्ने के खेतों से ताजे गन्ने तोड़कर उनका रस निकालकर हम सब बच्चों को पिलाया गया। ऐसे स्वाद और मिठास की कल्पना मैं जीवन भर नहीं कर सकता। हमारे वापिस लौटने का समय हो गया था, अभी बहुत कुछ देखना व जानना बाकी था। विवश होकर हम बस में आ बैठे। एक दिन के फार्म हाउस के वास ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने ग्रीष्मावकाश में नानी जी के गाँव पंजाब में जाने का निश्चय कर लिया । एक दिन के अनुभव ने आभास करा दिया कि भारत को ग्रामों का देश क्यों कहा जाता है।
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