गंगा दशहरा की कथा तथा महत्व। Ganga Dussehra in Hindi : गंगा-दशहरा पुण्य-सलिला गंगा का हिमालय से उत्पत्ति का दिवस है। जेष्ठ शुक्ल दशमी को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान से 10 प्रकार के पापों का विनाश होता है इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा नाम दिया गया। गंगा की उत्पत्ति के विषय में दो कथाएं प्रचलित है- (1) गंगा की उत्पत्ति विष्णु के चरणों से हुई थी। ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया था। ऐसी प्रसिद्धि है कि विराट् (वामन) अवतार के आकाशस्थित तीसरे चरण को धोकर ब्रह्मा ने गंगा को अपने कमंडल में रख लिया था। (ध्रुव नक्षत्र स्थान को पौराणिक गण विष्णु का तीसरा चरण मानते हैं। वहीं मेघ एकत्र होते हैं और वृष्टि करते हैं। वृष्टि से ही गंगा की उत्पत्ति होती है।
गंगा दशहरा की कथा तथा महत्व। Ganga Dussehra in Hindi
गंगा-दशहरा पुण्य-सलिला गंगा का हिमालय से उत्पत्ति का दिवस है। जेष्ठ शुक्ल दशमी को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान से 10 प्रकार के पापों का विनाश होता है इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा नाम दिया गया।
गंगा की उत्पत्ति के विषय में दो कथाएं प्रचलित है- (1) गंगा की उत्पत्ति विष्णु के चरणों से हुई थी। ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया था। ऐसी प्रसिद्धि है कि विराट् (वामन) अवतार के आकाशस्थित तीसरे चरण को धोकर ब्रह्मा ने गंगा को अपने कमंडल में रख लिया था। (ध्रुव नक्षत्र स्थान को पौराणिक गण विष्णु का तीसरा चरण मानते हैं। वहीं मेघ एकत्र होते हैं और वृष्टि करते हैं। वृष्टि से ही गंगा की उत्पत्ति होती है।)
दूसरी धारणा है कि गंगा का जन्म हिमालय की कन्या के रूप में सुमेरुतुनया अथवा मैना के गर्भ से हुआ था।
पुराणों के अनुसार - पृथ्वी पर गंगा अवतरण की कथा इस प्रकार है- कपिल मुनि के श्राप से राजा सगर के साठ सहस्त्र पुत्र भस्म हो गए। उनके उद्धार के लिए उनके वंशजों ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तपस्या की। अंत में भागीरथ की तपस्या से ब्रह्मा प्रसन्न हो गए। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर ले जाने की अनुमति दे दी किंतु पृथ्वी ब्रह्मा लोक से अवतरित होने वाली गंगा के तीव्र वेग को सहन करने में असमर्थ थी। भागीरथ ने महादेव दी से गंगा को अपनी जटा में धारण करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर शिव की जटाओं में रूक गई। वहां से पुनः मृत्युलोक की ओर चली।
देवकुल की होने से गंगा को ‘सुरसरि’ कहा गया है। विष्णु के चरणों से उत्पत्ति के कारण गंगा को ‘विष्णुपदी’ कहा गया। भागीरथ के प्रयत्नों से प्रवाहित होने के कारण गंगा को ‘भागीरथी’ कहा गया। जह्वान ऋषि की कृपा से प्रवाहित होने के कारण इसका नाम ‘जाह्नवी’ पड़ा। गंगा की तीन धाराओं (स्वर्ग गंगाः मंदाकिनी, भूगंगाः भागीरथी तथा पातालगंगाः भोगवती) के कारण गंगा का नाम ‘त्रिपथगा’ पड़ा। इनके अतिरिक्त मंदाकिनी, देवापगा भी गंगा के पर्याय हैं।
जहां-जहां गंगा का प्रवाह मर्त्य भूमि को स्पर्श करता गया वह पवित्र हो गई। वहाँ तीर्थ बन गए। गंगा तट पर स्थित हरिद्वार (मायापुरी),, प्रयाग काशी तीर्थ बन गए। इनका आध्यात्मिक महत्व बढ़ गया। सहस्त्रों जन गंगा तट पर ध्यान चिंतन करते हुए सांसारिक बंधन से मुक्त हो गए। अमरत्व को प्राप्त हो गए। पंडितराज जगन्नाथ संसार की ताड़ना- प्रताड़ना से तंग होकर जब गंगा घाट पर पहुंचे तो किवदंती है कि स्वयं माता गंगा आईं और उन्हें अपनी गोद में उठाकर ले गईं। स्वामी रामतीर्थ तो गंगा की गोद में ही शरीर को विसर्जित कर मोक्ष को प्राप्त हुए।
गंगाजल की पवित्रता के कारण ही हिंदुओं के प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में गंगाजल प्रयुक्त होता है। भूत-प्रेत, अलाय-बलाय दूर करने के लिए गंगा जल के छींटे मारे जाते हैं। मृत्यु पथ की ओर अग्रसर हिंदू को गंगाजल के आचमन से स्वर्गद्वार के योग्य एवं निडर बनाया जाता है। उसके लिए तो वही औषधि है (औषधं जाह्नवी तोयम्)। हिंदू मृत्यु के पश्चात अपनी काया को अग्नि समर्पण के उपरांत अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करवाने में अपने को धन्य समझता है। सन्यासी का शव तो गंगा को ही समर्पित किया जाता है। कितनी दिव्यता, श्रेष्ठता और पवित्रता है गंगाजल में। इसके प्रति कितनी श्रद्धा-आस्था है हिंदू मन में।
गंगा का जल हमारे ऋषि-मुनियों, त्यागी तपस्वियों, देशभक्त, बलिदानियों तथा पूर्वजों की क्षीर होती अस्थियों से मिश्रित है, पवित्र है। गंगा में डुबकी लगाकर हम पुण्य आत्माओं का पुण्य ओढ़ते हैं। उससे अपने शरीर को पवित्र करते हैं।
धार्मिक दृष्टि से गंगा के महत्व का वर्णन महाभारत, पुराणों और संस्कृत काव्य से लेकर ‘मानस’, ‘गंगावतरण’ जैसे हिंदी काव्य से होता हुआ आधुनिकतम युग की काव्य कृतियों में वर्णित है। कहा भी गया है-
दृष्ट्वा तु हरते पापं, स्पृष्टवा तु त्रिदिवं नयेत्।
प्रतड़ग्नापि या गंगा मोक्षदा त्ववगाहिता।।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के अनुशासन पर्व में गंगा का महत्व दर्शाते हुए लिखा है ‘दर्शन’ से, जलपान तथा नाम कीर्तन से सैकड़ों तथा हजार पापियों को गंगा पवित्र कर देती है। इतना ही नहीं ‘गंगाजलं पानं नृणाम’ कहकर इस को सबसे तृप्तिकारक माना है।
तुलसी ने ‘गंगा सकल मुद मंगल मूला, कब कुख करनि हरनि सब सूला’ कहकर गंगा का गुणगान किया है। पौराणिक उद्धरणों के अभाव में गंगा में महत्व का प्रसंग अछूता रह जाएगा। ‘विष्णु पुराण’ में लिखा है कि गंगा का नाम लेने, सुनने, उसे देखने, उसका जल पीने, स्पर्श करने, उसमें स्नान करने तथा सौ योजन से भी गंगा नाम का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य के 3 जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते हैं-
गंग गंगेति यो ब्रूयात् योजनानां शतैरपि।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णु लोकं स गच्छति।।
भौतिक दृष्टि से भी गंगाजल का महत्व कम नहीं। यह प्राणी मात्र का जीवन है। पीने, नहाने, धोने तथा अन्यान्य कामों के लिए इसका उपयोग है। जल के बिना मानव जीवन अधूरा है। जल सिंचाई के काम आता है, इससे भूमि शस्य श्यामला होती है तो खेती धन धान्य से संपन्न। जल ना होगा तो देश में अकाल पड़ेगा। जनजीवन अकाल मृत्यु के मुंह का ग्रास बनेगा। जल यातायात का साधन है, प्रकाश के स्त्रोत विद्युत उत्पादन का कारण है। जल में स्नान, क्रीड़ा और जल पर नौका विहार मानव मन को शांति प्रदान करता है।
भारत धर्म प्राण देश है। श्रद्धा उसका संबल है। अतः हिंदू समाज भी पुण्य सलिला गंगा में मां के दर्शन करता है। उस के सानिध्य में तृप्त होता है। उसके जल में स्नान करके अपने को धन्य समझता है। स्वयं को पापों से मुक्त मानता है। नगर में बिना सूचना के गांव में बिना ढिंढोरे के लक्ष लक्ष हिंदू गंगा दशहरा के पावन दिन गंगा में गोता लगाते हैं। अपने जीवन में सफल और मोक्ष का अधिकारी मानते हैं। यह अटल विश्वास ही गंगा-दशहरा के नाम द्वारा दस पापों के हरण का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
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