जापान का मुनरो सिद्धांत (Japan Monroe Doctrine in Hindi): अमेरिका के राष्ट्रपति मुनरो ने 1827 ई. में, अमेरिकी गोलार्द्ध में यूरोपीय हस्तक्षेप रोकने हे
जापान का मुनरो सिद्धांत (Japan Monroe Doctrine in Hindi)
जापान का मुनरो सिद्धांत: अमेरिका के राष्ट्रपति मुनरो ने 1827 ई. में, अमेरिकी गोलार्द्ध में यूरोपीय हस्तक्षेप रोकने हेतु 'मुनरो सिद्धांत' प्रतिपादित किया था। इसी 'मुनरो सिद्धांत' की तर्ज पर चीन एवं पूर्वी एशिया में पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप को रोकने के लिये जापान ने 18 अप्रैल, 1934 ई. को एक घोषणा प्रकाशित की। यह घोषणा जापानी 'मुनरो सिद्धांत' के रूप में जानी जाती है। जैसा कि 'तनाका स्मरण-पत्र' में मंचूरिया, मंगोलिया के बाद चीन पर आधिपत्य की ओर संकेत किया गया था, उसके तहत मंचूरिया तथा मंगोलिया पर जापान अपने वर्चस्व की स्थापना करना चाहता था। चीन पर वर्चस्व की स्थापना के लिये आवश्यक था कि चीन में पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप को रोका जावे। इसी परिप्रेक्ष्य में जापानी 'मुनरो सिद्धांत' प्रतिपादित किया गया।
जापानी घोषणा के प्रमुख बिन्दु निम्नानुसार थे—
1. पूर्वी एशिया में शान्ति व्यवस्था का दायित्व जापान का है जिसमें चीन उसे सहयोग करेगा।
2. जापान की इच्छा है कि चीन में एकता कायम रहे एवं उसकी सीमाएँ सुरक्षित रहें।
3. यदि चीन किसी अन्य देश की सहायता से जापान का विरोध करेगा तो जापान इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। यदि कोई देश चीन की सहायता करेगा तो इससे चीन के विभाजन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। उसका गम्भीर प्रभाव पूर्वी एशिया एवं जापान पर पड़ेगा। अतः जापान चीन को सहयोग करने वाले देश का विरोध करेगा।
4. यदि कोई विदेशी राज्य- चीन के साथ आर्थिक व व्यापारिक समझौता करना चाहता है तो जापान उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
5. यदि कोई देश चीन को जंगी जहाज देगा, चीन में हवाई अड्डे बनायेगा, चीन की जल व थल सेना को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करेगा राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर चीन को ऋण देगा तो इससे जापान के चीन व अन्य देश के साथ मैत्री सम्बन्धों में बाधा उत्पन्न होगी। इससे एशियायी शान्ति के लिये भी खतरा उत्पन्न होगा।
28 अक्टूबर, 1935 ई. को जापानी विदेशमन्त्री हिरोता ने चीन के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया कि—
1. चीन-जापान को चाहिये कि मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखें एवं चीन, जापान का विरोध न करे।
2. चीन, जापान के प्रति मित्रता प्रदर्शित करने के लिये मंचुकुओ की स्वतन्त्र सरकार को मान्यता प्रदान करे ।
3. जापान चीनी साम्यवाद को समाप्त करने का प्रयास करेगा।
घोषणा का महत्व— जापान की यह घोषणा पाश्चात्य देशों के लिये एक चेतावनी थी कि वे चीन में हस्तक्षेप बन्द करें। यह 'अमावो वक्तव्य' वस्तुतः 'तनाका स्मरण पत्र' का पूरक था। जापान ने स्पष्ट किया कि जापान चीन की रक्षा करेगा मगर शर्त यह है कि चीन उसका सहयोग करे। यूरोपीय देशों के लिये यह चीन छोड़ो नोटिस के समान था। पाश्चात्य देशों ने चीन की इस घोषणा का विरोध किया। वास्तव में, जापान की यह घोषणा उसकी साम्राज्यवादी नीति का एक अंग थी। जापान समस्त पूर्वी एशिया पर अपना साम्राज्यवादी आधिपत्य स्थापित करना चाहता था।
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