साझेदारी तथा संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में अंतर: साझेदारी एक ऐसा व्यावसायिक संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ मिलकर व्यवसाय चलाते हैं
साझेदारी तथा संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में अंतर - Difference between Partnership and Joint Hindu Family Business in Hindi
साझेदारी और संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय दोनों ही व्यावसायिक संगठन के स्वरूप हैं। हालांकि, इन दोनों के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी हैं।
साझेदारी एक ऐसा व्यावसायिक संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ मिलकर व्यवसाय चलाते हैं। जबकि संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय एक ऐसा व्यावसायिक संगठन है जो एक संयुक्त हिंदू परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित किया जाता है। जहाँ साझेदारी में, प्रत्येक साझेदार व्यवसाय के स्वामित्व और प्रबंधन में समान या असमान अधिकार रखता है। संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में, व्यवसाय का स्वामित्व और प्रबंधन परिवार के मुखिया (कर्ता) के हाथ में होता है। साझेदारी का अस्तित्व साझेदारों से अलग होता है। जबकि संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय का अस्तित्व परिवार के सदस्यों से अलग नहीं होता है।
आधार | साझेदारी | संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय |
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अधिनियम | साझेदारी पर भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 लागू होता है। | यह हिंदू अधिनियम 1956 द्वारा शासित होता है। |
सदस्य | किसी साझेदारी को प्रारंभ करने हेतु न्यूनतम दो सदस्यों की आवश्यकता होती है। कंपनी अधिनियम 2014 के नियम 10 के अनुसार वर्तमान में किसी साझेदारी संगठन में अधिकतम 50 सदस्य हो सकते हैं। | संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय के लिए परिवार में कम से कम दो सदस्य एवं वह पैतक संपत्ति जो उन्हें विरासत में मिली हो, का होना आवश्यक है। |
सदस्यों के नाम | साझेदारी के सदस्य साझेदार कहलाते है। | संयुक्त हिन्दु परिवार के सदस्य सह-समांशी कहलाते है। |
दायित्व | साझेदारों में दायित्व असीमित होता है। यदि व्यवसाय की परिसंपत्तियाँ अपर्याप्त हैं तो ॠणों को व्यक्तिगत सपंत्तियों से चुकाया जाएगा। | कर्ता को छोड़कर अन्य सभी सदस्यों का दायित्व व्यवसाय की सह-समांशी संपत्ति में उनके अश तक सीमित होता है। |
नियंत्रण | साझेदार आपस में मिलकर दिन.प्रतिदिन के कार्यों के संबंध में निर्णय लेने एवं नियंत्रण करने के उत्तरदायित्व को निभाते हैं। निर्णय उनकी आपसी राय से लिए जाते हैं। अतरू साझेदारी फर्म के कार्यों के प्रबंधन में उन सभी का योगदान रहता है। | संयुक्त हिंदू परिवार के व्यवसाय पर कर्ता का नियंत्रण होता है। वही सभी निर्णय लेता है तथा वही व्यवसाय के प्रबंधन के लिए अधिकृत होता है। उसके निर्णयों से दूसरे सभी सदस्य बाध्य होते हैं। |
निरंतरता | साझेदारी में व्यवसाय की निरंतरता की कमी रहती है क्योंकि किसी भी साझेदार की मृत्युए अवकाश ग्रहण करनेए दिवालिया होने या फिर पागल हो जाने से यह समाप्त हो सकती है। बाकी साझीदार नए समझौते के आधार पर व्यवसाय को चालू रख सकते हैं। | कर्ता की मृत्यु होने पर व्यवसाय चलता रहता है क्योंकि सबसे बड़ी आय का अगला सदस्य कर्ता का स्थान ले लेता है जिससे व्यवसाय में स्थिरता आती है। सभी सदस्यों की संयुक्त स्वीकृति से ही व्यवसाय को समाप्त किया जा सकता है। |
पूँजी | साझेदारी में पूँजी कई साझेदारों द्वारा लगाई जाती है। इसमें संयुक्त हिन्दु परिवार की तुलना में अधिक धन जुटाया जा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त व्यावसायिक कार्य भी किए जा सकते हैं। | संयुक्त हिन्दु परिवार मूल रूप से पैतृक संपत्ति पर आश्रित रहता है इसलिए इसके सामने सीमित पँजी की समस्या रहती है। इससे व्यवसाय के विस्तार की संभावना कम हो जाती है। |
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