पारजीनी जंतु की परिभाषा, उदहारण और मानव जाति के लिए इनकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए: ऐसे जंतु जिनके DNA में जीन अभियांत्रिकी द्वारा बाह्य जीन को प्रवेश
पारजीनी जंतु की परिभाषा, उदहारण और मानव जाति के लिए इनकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए।
पारजीनी जंतु: ऐसे जंतु जिनके DNA में जीन अभियांत्रिकी द्वारा बाह्य जीन को प्रवेश कराया जाता है एवं बाह्य जीन का लक्षण जन्तुओं में प्रकट होता हैं, उन्हें पारजीनी जंतु (Transgenic animal) कहा जाता है। उदाहरण:- ई. कोलाई (E. coli) बैक्टीरिया एक पारजीनी जीवाणु है जो मधुमेह (डायबिटीज) रोग के निदान के लिए इन्सुलिन (Insulin) को उत्पन्न करता है। सन् 1982 ई. में चूहों पर इस प्रकार का कार्य किया गया। इन चूहों में वृद्धि हार्मोन के जींस का समावेशन किया गया। इनकी लम्बाई में समान्य से लगभग दोगुना वृद्धि हुई ।
पारजीनी जंतुओं (Transgenic animal) को निम्नलिखित विधियों द्वारा प्राप्त किया जाता है-
- पश्च विषाणु मध्यस्थीय जीन स्थानान्तरण (Retrovirus mediated gene transfer)
- DNA सूक्ष्म प्रत्यारोपण (DNA microinjection)
- भ्रूणीय स्टेम कोशिका मध्यस्थीय जीन स्थानान्तरण (Embryonic stem cell mediated gene transfer) जैवप्रौद्योगिकी का उपयोग चिकित्सा शास्त्र, निदानसूचनक, कृषि में आनुवंशिकतः रूपांतरित फसलें, संसाधित खाद्य, जैव सुधार, अपशिष्ट प्रतिपादन एवं ऊर्जा उत्पादन में रहा है।
मानव जाति के लिए पारजीनी जंतुओं की उपयोगिता
(1) पीड़कनाशी - प्रतिरोधी पौधों (फसलों) का विकास- पीड़कनाशी-प्रतिरोधी पौधे, पीड़कनाशकों का उपयोग कम करते हैं, अर्थात् इनकी निर्भरता कम रहती हैं। बीटी (Bt) एक प्रकार का विष होता है, जो बैसीलिस थुरीनजिएनसीस में पीड़कों के प्रति प्रतिरोधकता विकसित करने के लिए उनमें स्थानान्तरित किया जाता है। इस तकनीक से कई पौधों का विकास हुआ, जिसे Bt के नाम पर रखा गया। जैसे - Bt कपास, Bt मक्का, Bt आलू, Bt टमाटर आदि।
(2) खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की वृद्धि - जैव प्रौद्योगिकी द्वारा चावल, गेहूँ, सरसों आदि फसलों पर अनेक अनुसंधान चल रहे हैं, जिससे अनके पोषक तत्वों की गुणवत्ता को बढ़ाया जाए। अभी तक चावल की प्रजाति गोल्डेन राइस का शोध हो चुका है, जिसमें विटामिन A की प्रचुर मात्रा उपस्थित होती है। इस प्रगति में नियोमाइसिन फास्फोट्रांसफरेज - II मार्कर जीन में एग्रोबैक्टीरियम के DNA का उपयोग कर उड़द की उन्नत प्रजाति का विकास हुआ है।
इस जीन को केल्बीसिएला न्यूमोनी से अलग कर ई. कोलाई में स्थापित करके प्राप्त क्लोन को गेहूँ, मटर, अरहर, चना आदि पौधों में स्थानान्तरित किया जा रहा है, जिससे इन पादपों की जड़ों में पाये जाने वाले जीवाणु में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता को विकसित किया जा सके।
जैव प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित विभिन्न औषधियों का कुछ क्षेत्रों में उपयोग-
इंटरफेरॉन | विषाणु संक्रमित रोग में (कैंसर, रेबीज, जुकाम आदि) |
यूरोगेस्ट्रॉन | घाव भरने में |
इंसुलिन | मधुमेह के उपचार में |
रिलैक्सिन | प्रसव में |
प्रोटोपिन | वृद्धि हार्मोन |
प्लाज्मिनोजन | रूधिर थक्का को घोलने (कम करने) में आदि। |
(3) सामान्य कार्यिकी व विकास - जीनों का नियमन के अध्ययन हेतु पारजीनी प्राणियों का निर्माण किया जाता है। जीन के जैविक प्रभावों और कार्यिकी पर प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। (3) रोगों का अध्ययन - जीन की रोग के विकास में भूमिका का अध्ययन पारजीनी पर किया जाता है और उपचार की संभावनाओं की पहचान की जाती है। जैसे एल्जाइमर (Alzheimer) के अध्ययन के लिए प्ररूपी पारजीनी प्राणी विकसित किए गए है।
(4) जैविक उत्पाद - कुछ जैविक उत्पादों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है, लेकिन इनका उत्पादन प्राकृतिक रूप से प्राप्त करना अत्यंत महँगा होता है। पारजीनी प्राणियों की सहायता से इस समस्या का निराकरण किया गया है जैसे एम्फीसिमा (emphysema) के उपचार हेतु प्रयोग की जाते वाली प्रोटीन α−1 ऐंटीट्रिप्सिन (α−1 antitripsin) प्रोटीन को कोड करने वाली जीन को जंतुओं में प्रवेश कराकर पारजीनी जंतु बनाए गए है। पारजीनी गाय का दूध मानव प्रोटीन ऐल्फा लेक्टएलब्युमिन (alpha lactalbumin) युक्त होता है। पारजीनी प्राणियों की सहायता से औषधियों एवं अन्य उत्पादों को प्राप्त करना आण्विक कृषि (molecular farming ) कहलाता है।
(5) टीका सुरक्षा - टीकों के निर्माण के पश्चात उनका परीक्षण पारजीनी प्राणियों पर किया जाता है।
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