भोलाराम का जीव कहानी का सारांश (Bholaram Ka Jeev Summary in Hindi) भोलाराम का जीव एक व्यंग्यात्मक कहानी है जिसमें यह बताया गया है कि भोलाराम जैसा एक द
भोलाराम का जीव एक व्यंग्यात्मक कहानी है जिसमें यह बताया गया है कि भोलाराम जैसा एक दीन-हीन सरकारी रिटायर्ड नौकर पेंशन के लिए किस तरह पाँच वर्ष तक संघर्ष करता रहा, पर हमारी सरकारी व्यवस्था के चलते उसे पेंशन नहीं मिल पाई और वह मर गया। उसके पाँच साल तक संघर्ष करने की मार्मिक व्यथा का यहाँ पर हृदयस्पर्शी चित्रण है। इसमें वर्तमान समाज की गरीबी, भुखमरी, स्वार्थपरता, भष्टाचार आदि समस्याओं तथा आम आदमी की विवशता और लाचारी का वर्णन है। व्यंग्य किस प्रकार विसंगतियों को उजागर करता है और उन पर प्रहार करता है यह बताने के लिए यह कहानी पठनीय है।
भोलाराम का जीव कहानी का सारांश (Bholaram Ka Jeev Summary in Hindi)
धर्मराज लाखों वर्षों से कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक का निवास स्थान 'अलॉट' करते रहे थे पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार रजिस्टर देख रहे थे, आखिरकार खीझकर बोले- महाराज रिकॉर्ड सब ठीक है । भोलाराम ने पाँच दिन पहले शरीर त्यागा था। उसके जीव को लेने के लिए एक यमदूत पाँच दिन पहले गया था पर अभी तक वापस नहीं आया।
धर्मराज ने पूछा- यमदूत कहाँ है ?
महाराज वह भी लापता है। इसी समय द्वार खुला और एक बदहवास यमदूत ने आकर बताया कि वही भोलाराम के जीव को लेने गया था पर रास्ते में वह जीव चकमा देकर भाग गया आज तक मुझसे ऐसी चूक नहीं हुई। मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान मारा पर वह मुझे नहीं मिला।
चित्रगुप्त ने कहा, महाराज आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार के घपले बहुत हो रहे हैं। लोग पार्सल से माल भेजते हैं पर उसे बीच में ही गायब कर दिया जाता है। हौजरी के पार्सलों के मोजे रेलवे अफसर पहनते हैं। मालगाड़ी के डिब्बे रास्ते में कट जाते हैं। राजनीतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उठा कर बंद कर देते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि भोलाराम के जीव को भी किसी विरोधी ने बंद कर दिया हो । धर्मराज ने व्यंग्य से चित्रगुप्त की ओर देखते हुए कहा - भला भोलाराम जैसे दीन व्यक्ति से किसी को क्या लेना-देना? लगता है तुम बूढ़े हो गए हो और तुम्हारी रिटायरमेंट की उम्र आ गई है।
तभी वहाँ घूमते-घूमते नारद जी आ गए। धर्मराज को गुमसुम बैठा देखकर उन्होंने पूछा क्या अभी तक नरक में निवास स्थान की समस्या हल नहीं हुई? तब धर्मराज ने कहा वह तो कब की हल हो चुकी । कई बेईमान ठेकेदार, ओवरसीयर यहाँ नरक में आ गए हैं उन्होंने बहुत जल्दी तमाम इमारतें बना दी हैं। पर एक नई उलझन सामने आ गई है।
भोलाराम ने पाँच दिन पहले देह छोड़ी थी। उसके जीव को लेने जो यमदूत भेजा था वह लौट आया क्योंकि भोलाराम का जीव रास्ते में उसे चकमा देकर भाग गया। नारद ने पूछा- कहीं उस पर इनकम टैक्स तो बकाया नहीं था। धर्मराज बोले वह गरीब आदमी था उसे इनकम टैक्स से क्या लेना-देना? चित्रगुप्त ने हामी भरी मुस्कराया भी।
नारद जी बोले अच्छा मुझे उसका पता बताओ, मैं पृथ्वी पर जाता हूँ। चित्रगुप्त ने बताया - उसके परिवार में एक स्त्री, दो लड़के और एक लड़की थी। वह जबलपुर शहर के घमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे के मकान में किराए पर रहता था। पाँच साल पहले सरकारी नौकरी से रिटायर हो गया था। उम्र लगभग साठ साल थी। तब से ही वह पेंशन के लिए सरकारी दफ्तर के चक्कर लगा रहा था पर अभी तक कुछ काम बना नहीं। सालभर से उसने मकान का किराया भी नहीं दिया था। हो सकता है उसके मरने के बाद मकान मालिक ने उसके परिवार को वहाँ से निकाल दिया हो। अतः खोजने में आपको कुछ दिक्कत हो सकती है।
जब नारद जी पृथ्वी पर आए तो माँ-बेटी के सम्मिलित क्रन्दन से उन्हें यह समझते देर न लगी कि यही भोलाराम का घर है। लड़की ने समझा कोई भिक्षुक आया है पर नारद जी बोले मुझे भिक्षा नहीं चाहिए बस भोलाराम के बारे में कुछ जानकारी लेनी है।
लड़की की माँ ने बताया उन्हें गरीबी की बीमारी थी। पिछले पाँच साल से पेंशन के लिए भटक रहे थे पर वहाँ से हर दरख्वास्त का यही जवाब आता - पेंशन पर विचार हो रहा है। इन पाँच वर्षों में हम लोग सब गहने बेचकर खा चुके हैं फिर बरतन बिके अब कुछ नहीं बचा है। फ़ाके होने लगे हैं इसी चिन्ता में उन्होंने दम तोड़ दिया। नारद ने कहा उनकी इतनी ही उम्र थी पर उनकी पत्नी यह मानने को तैयार न थी बोलीं पेंशन मिलती तो कुछ और साल जी लेते और खर्चा चल जाता तो वह अभी नहीं मरते।
तत्पश्चात् नारद असली मुद्दे पर आ गए। क्या किसी स्त्री से उनका जी लगा था, बात यह है कि उनका जीव अभी यमलोक में नहीं पहुँचा । उनकी स्त्री ने कहा- नहीं महाराज, मेरे पति किसी औरत की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखते थे।
स्त्री ने कहा महाराज आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरुष हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रुकी पेंशन मिल जाए। नारद को दया आ गयी बोले, आजकल साधुओं की बात कौन मानता है और फिर मैं किसी मंदिर या मठ का महन्त तो हूँ नहीं। मेरी कौन सुनेगा, पर मैं सरकारी दफ्तर जाकर कोशिश अवश्य करूँगा ।
जब वे सरकारी दफ्तर पहुँचे और उन्होंने भोलाराम की पेंशन के विषय में बताया तो उन्हें एक के बाद दूसरे, दूसरे के बाद तीसरे इस तरह घुमाया जाता रहा। एक क्लर्क ने कहा दरख्वास्त तो आई थी पर इस पर वजन ( रिश्वत ) नहीं था इसलिए उड़ गयी होगी। चपरासी ने कहा महाराज आप इस झंझट में कहाँ पड़ गए ? आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए।
नारद जी बड़े साहब के कमरे में सीधे घुस गए क्योंकि उनका चपरासी बैठा सो रहा था। साहब बोले- आप हैं बैरागी, दफ्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है आप भोलाराम के आत्मीय लगते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं, उन पर वजन रखिए।
अन्ततः नारद जी को अपनी वीणा उसकी अर्जी पर रखनी पड़ी। साहब ने तुरन्त भोलाराम की फाइल मँगाई। भोलाराम का जीव उसी फाइल में अटका था। बोल पड़ा, कौन पुकार रहा है मुझे, क्या पोस्टमैन है, पेंशन का ऑर्डर आ गया क्या?
नारद ने कहा—मैं नारद हूँ तुम्हें लेने आया हूँ। चलो स्वर्ग में तुम्हारा इंतजार हो रहा है। आवाज आई-मुझे नहीं जाना है। मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में अटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। इसे छोड़कर नहीं जा सकता।
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