अमीबीय गति अथवा चलन: विशिष्टतः कुछ प्रोटोजोआ - प्राणियों, स्लाइम माल्डों (अवपंक फफूँदियों) तथा कशेरुकियों की श्वेत रक्त कोशिकाओं में पायी जाती है। इनम
अमीबीय चलन (गति) को स्पष्ट कीजिये - Amoeboid Movement in Hindi
अमीबीय गति अथवा चलन: विशिष्टतः कुछ प्रोटोजोआ - प्राणियों, स्लाइम माल्डों (अवपंक फफूँदियों) तथा कशेरुकियों की श्वेत रक्त कोशिकाओं में पायी जाती है। इनमें साइटोप्लाज़्म प्रवाह, कोशिका की आकृति में परिवर्तन तथा पादाभों ( pseudopodia) प्रसार के द्वारा गति होती है। ये परिवर्तन सूक्ष्मदर्शी के नीचे आसानी से दिखाई पड़ते हैं, लेकिन गति को सक्रिय करने में निहित क्रियाविधियाँ अभी तक ठीक से ज्ञात नहीं हो सकी हैं।
जब अमीबा को चलना होता है तो वह वांछित दिशा में अपने भुजा के समान प्रवर्ध पादाभों को निकालता है और इसी के साथ-साथ अमीबा अपना कोशिका द्रव्य इस नए बने पादाभों में प्रवाहित करता है। नव-निर्मित पादाभ धीरे-धीरे विस्तरित एवं बड़े होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप जहाँ पहले एक छोटा-सा पादाभ बनना शुरू हुआ था वहां अब पूरी कोशिका बन जाती है। जैसे-जैसे कोशिका गति करती रहती है वैसे-वैसे गति की दिशा में नए पादाभ बनते चलते हैं तथा पश्च भाग में पुराने पादाभ सिकुड़ कर आगे को खिंच जाते हैं। यह प्रामाणिक रूप में मालूम नहीं है कि पादाभों का विस्तार एवं आकुंचन (retraction) किस प्रकार होता है। ऐसा लगता है कि कोशिका द्रव्य के कुछ क्षेत्र की तरल सॉल (sol) तथा अर्धठोस जेल (gel) अवस्थाओं में परस्पर परिवर्तन होता रहता है आगे अब हम यह अध्ययन करेंगे कि करेंगे कि कोशिका द्रव्य के सॉल से जेल अवस्था में परिवर्तन द्वारा किस प्रकार अमीबीय गति संपन्न होती है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी द्वारा अमीबा के कोशिका द्रव्य में दो क्षेत्रों को पहचाना जा सकता है : (1) केन्द्रीय क्षेत्र, अंतर्द्रव्य या एंडोप्लाज्म (endoplasm ) जो तरल-सदृश सॉल होता है तथा, (2) बहिर्द्रव्य एक्टोप्लाज्म (ectoplasm) जो प्लाज्मा झिल्ली के तुरंत नीचे के कोशिका द्रव्य का क्षेत्र होता है तथा जेल-सदृश होता है।
"कला विपर्यासी” सूक्ष्मदर्शी (phase contrast microscope) द्वारा हम एंडोप्लाज्म में प्रचुर संख्या में कण एवं झिल्लीदार कोशिकांगक देख सकते हैं जिनमें सतत निरुद्देश्य गति होती रहती है तथा जिससे यह संकेत मिलता है कि कोशिका द्रव्य के सॉल क्षेत्र में इन कणों आदि को गति की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। एक्टोप्लाज्म में ऐक्टिन (actin) तंतुओं का एक त्रिविमीय क्रासबद्ध, (crosslinked) जाल बना होता है तथा इस क्षेत्र में कोई भी कोशिकांगक नहीं होता । मूलतः यही जेल क्षेत्र यह निर्णय करता है कि पादाभ की आकृति कैसी होगी, और यही भाग तनाव को कोशिकीय संकुचनों के क्षेत्र से ले जाकर अधास्तर के साथ सम्पर्क बनाने वाले स्थानों में पहुंचाता है। ऐसा विश्वास है कि एक्टोप्लाज्म में क्रासबद्ध के बगैर ऐक्टिन सूत्र होते हैं और मायोसिन सूत्र भी होते हैं। जैसे-जैसे पादाभ लम्बा होता रहता है और सॉल जैसा एंडोप्लाज्म उसमें प्रवाहित होता रहता है, वैसे-वैसे पादाभ के अंतिम सिरे के निकट का एंडोप्लाज्म-क्षेत्र जेल-सदृश एक्टोप्लाज्म में परिवर्तित होता रहता है (उपर्युक्त चित्र)। इसके साथ ही कोशिका में अन्य स्थानों पर एक्टोप्लाज्म सॉल-सदृश एंडोप्लाज्म में बदलता रहता है। ऐसा संभवतः ऐक्टिन तंतुओं के क्रासबंधनों के खल जाने के कारण होता है। ऐक्टिन सूत्रों को क्रॉसबद्ध करने और उनके सामुहिक बंडल बनाए रखने वाले कुछ प्रोटीन होते हैं जैसे एक्टिन, फ़िम्ब्रिन (fimbrin) तथा फ़ॉड्रिन (fodrin)। सॉल से जेल में परिवर्तन प्रतिपरिवर्तन में इन्हीं प्रोटीनों की भूमिका होती है। ऐक्टिन सूत्रों के क्रॉस बंधनों से एक जाल बनता है जो व्यष्टिगत ऐक्टिन अणुओं की गति को सीमित कर देता है। ऐसा होने से अर्ध ठोस जेल अवस्था प्राप्त होती है। चूंकि ऐक्टिन तथा मायोसिन सभी यूकेरियोटिक (eukaryotic) कोशिकाओं में पाए जाते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि साइटोप्लाज्मी प्रवाह तथा पादाभों का बनना दोनों ही मायोसिन तथा ऐक्टिन सूत्रों के बीच होने वाली परस्पर क्रिया पर निर्भर करते हैं। यह एक प्रकार की वैसी ही व्यवस्था है, जैसी कि पेशी संकुचन में पाई जाती है। पेशी संकुचन के बारे में आगे के भागों में जानकारी दी गयी है।
अभी तक यह मालूम नहीं हुआ है कि अमीबीय गति का नियमन अथवा नियंत्रण किस प्रकार होता है । अमीबा सभी दिशाओं में पादाभों को नहीं निकाल सकता, यदि वह ऐसा करेगा तो चिर-फट जाएगा। लेकिन यह सिद्ध हो चुका है कि अनेक ऐक्टिन बंधनी प्रोटीनों की ऐक्टिन तंतुओं को क्रासबद्ध करने की क्षमता Ca2+ सांद्रण तथा pH दोनों पर बहुत अधिक निर्भर होती है। अतः यह हो सकता है कि सॉल से जेल में परिवर्तन Ca2+ तथा H+ द्वारा नियंत्रित होता हो । यदि Ca2 + के सबमाइक्रोमोलर (submicromolar) सांद्रण की उपस्थिति में pH घट कर 6.8 तक आ जाए तो अमीबा के कोशिका द्रव्य में जेलीकरण (gelation) हो जाता है। इसके विपरीत यदि pH अथवा Ca2+ सांद्रण को बढ़ा दिया जाए तो उससे जेल का सॉलीकरण (solation) होने लगता है। इन खोजों से ऐसा मालूम पड़ता है कि " जेल से सॉल" परिवर्तन में जेलसोलिन (gelsolin) अथवा विलिन (villin) नामक प्रोटीनों का कोई कार्य है, क्योंकि माइक्रोमोलर Ca2 + (10-6 मोल) की उपस्थिति में ये प्रोटीन ऐक्टिन सूत्रों को खंडित कर देते हैं। पादाभों की दिशागत वृद्धि किस तरह होती है इसके स्पष्टीकरण में कोशिकाद्रव्य के विभिन्न क्षेत्रों में Ca2+ तथा Ht के सांद्रण में पाए जाने वाले अंतर सुझाए गए हैं। ऐसा वास्तव में होता है या नहीं, अभी यह निर्धारित होना शेष है। अगले भाग में आप पक्ष्माभी तथा कशाभी गतियों के विषय में पढ़ेंगे।
COMMENTS