CBM की परिभाषा और चरण स्पष्ट कीजिये: CBM शिक्षकों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली वह विधि है जिससे वे छात्र के बुनियादी शैक्षिक क्षेत्रों जैसे- गणित,
CBM की परिभाषा और चरण स्पष्ट कीजिये
CBM शिक्षकों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली वह विधि है जिससे वे छात्र के बुनियादी शैक्षिक क्षेत्रों जैसे- गणित, पढ़ना, लिखना तथा वर्तनी में उनकी प्रगति का पता लगाते हैं । CBM अभिभावकों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा उन्हें अपने बच्चे की प्रगति की जानकारी प्राप्त होती रहती है। इसके द्वारा यह भी देखा जाता है कि यदि छात्र ने शिक्षक की अपेक्षाओं से काम कार्य किया है तो वह अपने अधिगम के तरीकों में परिवर्तन करता है, जिससे वह बच्चा उसी शैक्षिक सत्र में लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
CBM को 6 चरणों में पूरा किया जाता है:
- चरण 1 – उपयुक्त टेस्ट का चयन या सृजन करना।
- चरण 2 – टेस्ट को क्रियान्वित करके आंकड़ों को प्राप्त करना।
- चरण 3 – आंकड़ों को ग्राफ में प्रदर्शित करना।
- चरण 4 – लक्ष्यों का निर्धारण करना।
- चरण 5 – अनुदेशात्मक निर्णय लेना।
- चरण 6 – छात्रों की प्रगति की जानकारी लेना।
NCF (2005) “ यह तथ्य कि बच्चा ज्ञान का सृजन करता है, इसका निहितार्थ है कि पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक शिक्षक को इस बात के लिए सक्षम बनाए कि वे बच्चों की प्रकृति एवं वातावरण के अनुरूप कक्षाई अनुभव आयोजित करे, ताकि सारे बच्चों को अवसर मिल सके। शिक्षण का उद्देश्य बच्चे के सीखने की सहज इच्छा और युक्तियों को समृद्ध करना होना चाहिए। ज्ञान को सूचना से अलग करने की जरूरत है और शिक्षण को एक पेशेवर गतिविधि के रूप में पहचानने की जरूरत है न कि तथ्यों को रटने औए प्रसार के प्रशिक्षण के रूप में। सक्रिय गतिविधि के जरिए ही बच्चा अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करता है। इसलिए प्रत्येक साधन का उपयोग इस तरह किया जाना चाहिए कि बच्चों को खुद को अभिव्यक्त करने में, वस्तुओं का इस्तेमाल करने में, अपने प्राकृतिक और सामाजिक परिवेश की खोजबीन करने में और स्वस्थ रूप से विकसित होने में मदद मिले। NCF के इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए CBM का प्रयोग भारत में भी कक्षा कक्ष में किया जाने लगा है। इस विधि में बच्चे की प्रगति पता करने के लिए शिक्षक एक हफ्ते में एक टेस्ट लेता है, जो 1 से 5 मिनट का होता है। उस 1 से 5 मिनट में छात्र द्वारा किए गए सही और गलत उत्तरों को शिक्षक द्वारा गिना जाता है। यही छात्र के आँकड़े होते हैं। इन आंकड़ों को ग्राफ में सुरक्षित रख लिया जाता है और उस ग्राफ की तुलना छात्र से जो अपेक्षा की गई थी, उससे कर ली जाती है।
आंकड़ों को ग्राफ में सुरक्षित रखने के पश्चात अध्यापक यह निर्णय लेता है कि अनुदेशन का तरीका यही रखा जाए या इसमें कोई परिवर्तन की आवश्यकता है । परिवर्तन तभी किया जाता है जब छात्र की सीखने की गति धीमी होती है। शिक्षक कई तरह से अनुदेशन में परिवर्तन कर सकता है उदाहरण के लिए वह समय सीमा बढ़ा सकता है, शिक्षण विधियों में परिवर्तन कर सकता है या विषय वस्तु को प्रदर्शित करने के लिए सामग्री में परिवर्तन कर सकता है या समूह में किए जाने वाले कार्यों की व्यवस्था में परिवर्तन कर सकता है। उदाहरण के लिए व्यक्तिगत अनुदेशन के बजाय छोटे- छोटे समूह में अनुदेशन की व्यवस्था की जा सकती है। इस परिवर्तन के पश्चात अध्यापक फिर देखता है कि छात्र के आंकड़ों में सुधार हुआ कि नहीं। यदि नहीं तो वह फिर से शिक्षण विधियों में परिवर्तन करता है।
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