ग़ज़ल की परिभाषा, स्वरुप और अंग बताइए: ग़ज़ल फारसी की सशक्त काव्यशैली मानी जाती है। ग़ज़ल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है-प्रेमिका से वार्तालाप। उर्दू मे
ग़ज़ल की परिभाषा, स्वरुप और अंग बताइए
भारतीय साहित्य में ग़ज़ल की लंबी परंपरा विद्यमान है। गेयता के कारण यह विधा अत्यंत लोकप्रिय हुई। ग़ज़ल फारसी की सशक्त काव्यशैली मानी जाती है। ग़ज़ल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है-प्रेमिका से वार्तालाप। उर्दू में ग़ज़ल एक प्रमुख विधा के रूप में सम्मानित है। अतः ऐसी प्रमुख एवं लोकप्रिय विधा का स्वरूप तथा उसके अंगों का परिचय प्राप्त करना जरुरी है।
ग़ज़ल का स्वरूप (Gazal Ka Swaroop)
'ग़ज़ल' अरबी भाषा का शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'प्रेमिका से वार्तालाप'। ग़ज़ल एक ऐसा काव्यरूप है, जिसका मुख्य विषय 'प्रेम' या 'इश्क' होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग़ज़ल काव्य की अत्यंत लोकप्रिय विधा रही है। कम से कम शब्दों में भावनाओं को अभिव्यक्त करने का यह एक प्रभावी माध्यम है। ग़ज़ल को कई विद्वानों ने परिभाषित करने का प्रयास किया है। ग़ज़ल के स्वरूप को समझने के लिए विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।
ग़ज़ल के संबंध में 'नालंदा विशाल शब्दसागर' में यह उल्लेख मिलता है कि 'फारसी और उर्दू में शृंगार रस की कविता।'
'उर्दू-हिंदी शब्दकोश' की दृष्टि से ग़ज़ल का अर्थ है, 'प्रेमिका से वार्तालाप, उर्दू-फारसी कविता का एक प्रकार विशेष जिसमें प्राय: 5 से 11 शेर होते हैं।'
ग़ज़ल के अंग (Gazal ke Ang)
प्रत्येक विधा का अपना एक रूप होता है, जिससे उस विधा की एक पहचान बनती है। केवल भाव एवं भाषा से ग़ज़ल को जाना नहीं जा सकता। उसके विशिष्ट ढाँचे को जानना-समझना जरूरी होता है। ग़ज़ल के अंग में शेर, मिसरा, काफिया, रदीफ, मतला, मक्ता आदि महत्त्वपूर्ण अंग है। जिनकी जानकारी निम्न प्रकार से है :-
1) शेर :- 'शेर' का अर्थ है - बाल या केश। यह अरबी भाषा का शब्द है। जिस तरह नारी के सौंदर्य को बढ़ाने में केश की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, ठीक उसी तरह ग़ज़ल के सौंदर्य को निखारने के लिए शेर की भूमिका होती है। ग़ज़ल का प्रत्येक शेर स्वतंत्र भावों की अभिव्यक्ति करता है। उदा.
कोई मुश्किल नहीं हिंदु या मुसलमाँ होना,
हाँ बड़ी बात है इस दौर में इन्साँ होना।
2) मिसरा :- शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते है। प्रत्येक शेर में दो पंक्तियाँ होती है। शेर के पहले मिसरे को `मिसर-ए- ऊला' और दूसरे को 'मिसर-ए-सानी' कहते है। उदा.
अनुभवों की पाठशाला ने सिखाया है बहुत,
जो सिखाया है, वो मेरे काम आया है बहुत।
3) काफिया :- काफिया शब्द का अर्थ है - बार-बार। काफिए का प्रयोग तुक मिलाने की दृष्टि से किया जाता है। इसे उपांत्य यमक भी कहा जाता है। उदा.
दो रोटी के अलावा, चार की बातें नहीं करते
करोड़ो लोग कोठी कार की बातें नहीं करते।
4) रदीफ :- रदीफ का अर्थ होता है - पीछे-पीछे चलने वाली। ऐसा शब्द या शब्द- समूह जो काफिये के पीछे दोहराया जाता है उसे रदीफ कहते है। रदीफ स्थिर रहती है। इसे अत्यं यमक भी कहा जाता है। उदा.
दो रोटी के अलावा, चार की बातें नहीं करते
करोड़ो लोग कोठी कार की बातें नहीं करते।
5) मतला :- ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहा जाता है। इसे 'उदय होने का स्थान' या 'भावोदय' भी कहा जाता है। इसकी विशेषता यह होती है कि इसके दोनों मिसरों में काफिया तथा रदीफ का प्रयोग होता है। उदा.
दो रोटी के अलावा, चार की बातें नहीं करते
करोड़ो लोग कोठी कार की बातें नहीं करते।
6) मक्ता :- ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक्ता कहते है, जिसमें कवि या शायर अपने 'तखल्लूस' अर्थात् 'उपनाम का प्रयोग करता है। उदा.
शोहरत की फिजाओं में इतना न उड़ो 'सागर'
परवाज न खो जाये इन ऊँची उड़ानों में ।
इस शेर में शायर डॉ. सागर आजमी ने अपने 'सागर' तखल्लूस का प्रयोग किया है।
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