सत्य की जीत' खण्डकाव्य के आधार पर दुशासन का चरित्र चित्रण - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी कृत खण्डकाव्य का प्रधान पुरुष पात्र दुशासन अनैतिक, अहंकारी, स्त्
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के आधार पर दुशासन का चरित्र चित्रण कीजिए । अथवा
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के आधार पर दुशासन का चरित्र चित्रण - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी कृत 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य का प्रधान पुरुष पात्र दुशासन अनैतिक, अहंकारी, स्त्री के प्रति अनुदार, दुराचारी, अशिष्ट, भौतिकता के मद में चूर, बुद्धिहीन राजकुमार है। दुशासन दुर्योधन का अनुज तथा महाराज धृतराष्ट्र का पुत्र जिसके चारित्र की विशेषताएँ निम्नवत् हैं- (1) दुराचारी, (2) नारी का अपमानकर्ता, (3) अहंकारी राजकुमार, (4) बल को ही प्राथमिकता देने वाला बुद्धिहीन ।
• दुराचारी - दुशासन का आचरण असभ्य है। वह अपने वरिष्ठों के समक्ष भी दुराचरण करने में संकोच नहीं करता और मानवोचित व्यवहार करने में अक्षम प्रतीत होता है। वह धर्मज्ञों तथा नीतिज्ञों का अपमान करते हुए कहता है कि-
लिया दुर्बल मानव ने ढूँढ, आत्मरक्षा का सरल उपाय ।
किन्तु जब होता सम्मुख शस्त्र, शास्त्र हो जाता निरूपाय ॥
• नारी का अपमानकर्ता - नारी को दोयम प्रकार का जीव समझने वाला दुःशासन नारी को भोग्या तथा पुरुष की दासी मानता है। द्रौपदी को केशों से बलपूर्वक कौरव राजसभा में लाने पर उसे खेद नहीं है बल्कि उससे वितर्क कर वह अपने सामन्तवादी दृष्टिकोण को भी प्रकट करता है-
कहाँ नारी ने ले तलवार, किया है पुरुषों से संग्राम।
जानती है वह केवल पुरुष, भुजदण्डों में करना विश्राम।
• अहंकारी राजकुमार- दुःशासन को अपनी पारिवारिक प्रस्थिति का बहुत अहंकार है। दुर्योधन के प्रत्येक कार्य में बिना सोचे समझे साथ देने वाले दुःशासन का चरित्र पशुता का प्रतीक है। परिवार सहित समस्त कौरव सभा में उसे अपने भाई पांडवों तथा भाभी द्रौपदी का अपमान करते तनिक लज्जा का अनुभव नहीं होता। उसे लगता है कि राजा का पुत्र होने के कारण उसकी स्वेच्छाचारिता क्षम्य है।
• बल को ही प्राथमिकता देने वाला बुद्धिहीन - बुद्धि तथा विवेक से तो दुःशासन का दूर-दूर तक कोई नाता ही नहीं अपितु वह तो शास्त्र बल में विश्वासी है-
धर्म क्या है और सत्य क्या है, मुझे क्षणभर चिन्ता इसकी न
शास्त्र की चर्चा होती वहाँ, जहाँ नर होता शस्त्र - विहीन ॥
संक्षेप में कहा जा सकता है कि 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में दुःशासन का चरित्र नकारात्मकता, सामंतवाद में दुशासन का चरित्र नकारात्मकता, सामंतवाद तथा पाशविक प्रवृत्तियों से परिपूर्ण है।
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