रंगभूमि उपन्यास की मूल समस्या - Rangbhoomi Upanyas ki Mool Samasya: इस लेख में हम उन कुछ समस्याओं पर चर्चा करेंगे जिनकी चर्चा रंगभूमि उपन्यास में की ग
रंगभूमि उपन्यास की मूल समस्या - Rangbhoomi Upanyas ki Mool Samasya
इस लेख में हम उन कुछ समस्याओं पर चर्चा करेंगे जिनकी चर्चा रंगभूमि उपन्यास में की गई है। इन समस्याओं में भूमि अधिग्रहण, किसान शोषण, गांधीवादी अहिंसा और महिलाओं की भूमिका शामिल हैं। रंगभूमि उपन्यास में उत्पीड़न, शोषण और प्रतिरोध की समस्याओं पर चर्चा की गयी है। यह औपनिवेशिक भारत के किसानों के जीवन और उनके सामने आने वाली चुनौतियों की एक झलक भी प्रदान करता है।
उद्योग और व्यवसाय की समस्या
'रंगभूमि' में व्यवसाय की समस्या पर विचार किया गया है। प्रेमचन्द ने पूँजीवाद को अपना लक्ष्य बनाया। पूँजीवाद मनुष्य के जीवन को कुत्सित बना देता है और उसमें बुर्जुआ मनोवृत्ति भर देता है। प्रेमचन्द को विशेष रुचि नहीं था । वे औद्योगीकरण में विश्वास नहीं करते। वे एक ओर प्रगतिशील विश्वासों को अपनाते हैं और दूसरी ओर परिवर्तनशीलता पर अनास्या प्रकट करते हैं। उन्होंने औद्योकिक जीवन और सरल जीवन को तुलनात्मक दृष्टि से परख कर सरल जीवन को ही अधिक श्रेयस्कर और भारतीय व्यवस्था में वौछनीय स्वीकार किया है ।
धार्मिक समस्या
उपन्यासकार प्रेमचन्द ने धार्मिकता को भी 'रंगभूमि' में समस्या के रूप में चित्रित किया है। जिस प्रकार प्रसाद जीने अपने नाटकों में राष्ट्रीय उत्साह अभिव्यक्त किया है, उसी प्रकार प्रेमचन्द ने इस उपन्यास में धार्मिक उत्साह प्रकट किया है। मिसेज सेवक की धार्मिक असहिष्णुता का विरोध सोफिया और प्रभु सेवक दोनों करते हैं। सोफिया घुटनाशील वातावरण से निकल कर स्वतन्त्र रूप से जीवन- यापन करना चाहती है। प्रेमचन्द की दृष्टि में धार्मिक बन्धनों से मानवतावाद अधिक महत्त्वपूर्ण है। मानव-प्रेम की तुलना में धार्मिक संकीर्णता पर प्रहार करते हुए कहते है कि आसमान की बादशाहत में अमीरों का कोई हिस्सा नहीं ।
देशी रियासतों की समस्या
इस समस्या पर प्रेमचन्द ने अपने राष्ट्रीय विचार प्रकट किये हैं । जसवन्तनगर में रहते हुए विनयसिंह का जीवन तत्कालीन देशी रियासतों की वास्तविक स्थिति का सजीव चित्रण है । रियासतों का जीवन कितना प्रतिक्रियावादी हो गया था; अन्याय और शोषण किस सीमा तक चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था और जीवन निर्वाह कितना कठिन हो गया था, जसवन्तनगर की कथा इसका यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती है।
गांधीवादी अहिंसा
उपन्यास अहिंसा के गांधीवादी दर्शन पर भी चर्चा करता है। उपन्यास का नायक सूरदास एक आदर्शवादी है जो गांधी की शिक्षाओं से प्रेरित है। उनका मानना है कि अहिंसा ही सच्ची स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है। उपन्यास के संदर्भ में यह एक क्रांतिकारी विचार है, क्योंकि गाँव के लोग हिंसा और संघर्ष के आदी थे।
राजनैतिक समस्या
मि. क्लार्क, महेन्द्र सिंह और गवर्नर और गवर्नर भारत के राजनैतिक पक्ष को ग्रहण करते हैं । सेवक पक्ष में दो वर्ग हैं - (1) इन्द्रसिंह और विनयसिंह का है, और (2) कुँवर भरतसिंह का है, जो जायदाद - प्रेमी होने के कारण राजनीति में भाग लेना नहीं चाहते। स्वायत्त शासन पर राजा महेन्द्रसिह के माध्यम से प्रेमचन्द ने तीखा व्यंग्य किया है और सम्मिलित परिवार प्रथा पर पर ताहिर अली और उसके परिवार के माध्यम से प्रहार किया है। उन को सम्मिलित पारिवारिक व्यवस्था का विधान विशृंखलित-सा दृष्टिगोचर होता था।
बीच-बीच में सोफिया या इन्दु के माध्यम से प्रेमचन्द ने नारी समस्या पर भी प्रकाश डाला है कि निराश्रित नारी जीवन - निर्वाह कैसा करे ! अन्त में राष्ट्रीय सेवा की समस्या को भी उन्होंने उठाने का प्रयत्न किया है। उपन्यासकार का विश्वास है कि मानव को अपनी निजी कामनाओं एवं आकांक्षाओं से ऊपर उठ कर राष्ट्र सेवा में संलग्न हो। जाति को, समाज को और देश को प्रेमचन्द ने इन सब का लक्ष्य बनाया है विनयसिंह की माता, जाह्नवी को। भारत को कैसी माताएँ और पुत्र चाहिए यह उनके व्यक्तित्व से स्पष्ट होता है। स्वदेश के लिए एक सन्त तथा संन्यासी की आवश्यकता है, जो देश के लिए न्योछावर हो जाए।
रंगभूमि उपन्यास में वर्णित समस्याओं को प्रेमचन्द ने परिवारों की कथा की सीमाओं में ही बाँधा है। व्यक्ति को व्यक्ति के रूप में मानकर समाज के प्रति उसका उत्तरदायित्व अवश्य स्वीकार करते हैं। ताहिर अली जॉनसेवक, कुँवर भरतसिंह और राजा महेन्द्रसिंह के परिवारों की कथाएँ वैसे गुम्फित है। विस्तार पूर्वक कथोपकथनों का प्रचलन हुआ है।
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