खानाबदोश पाठ का सारांश - Khanabadosh Class 11 Summary Hindi Antra: लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी द्वारा रचित खानाबदोश पाठ Class 11 हिंदी अंतरा का अध्याय
लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी द्वारा रचित खानाबदोश पाठ Class 11 हिंदी अंतरा का अध्याय 6 है। खानाबदोश पाठ का सारांश- इस सामाजिक कहानी के माध्यम से ओमप्रकाश वाल्मीकि लेखक ने मेहनत मज़दूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे मज़दूर वर्ग के शोषण, यातना तथा समाज की जातिवादी मानसिकता का चित्रण किया है मजदूर वर्ग जो मेहनत कर इज्जत से जीना चाहता है पर उच्च ताकतवर वर्ग ऐसा होने नहीं देता।
खानाबदोश पाठ का सारांश - Khanabadosh Class 11 Summary Hindi Antra
खानाबदोश पाठ का सारांश: सुकिया और उसकी पत्नी कमाने - खाने की इच्छा से गाँव-देहात छोड़कर शहर आये थे। वे असगर ठेकेदार के भट्ठे पर ईंट पाथने का काम करते थे। भट्ठे पर मोरी का काम सबसे खतरनाक था। ईंटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता था। छोटी-सी असावधानी मौत का कारण बन सकती थी। भट्ठा मज़दूरों को दड़बेनुमा छोटी-छोटी झोपड़ियों में झुक कर जाना पड़ता था। संध्या के समय दिन-भर के थके-हारे मज़दूर रात को दड़बों में घुस जाते थे साँप और बिच्छू का डर लगा रहता था तथा वातावरण में जंगल का सा सन्नाटा छा जाता था। मानो भट्टे के माहौल से तालमेल नहीं बिठा पाई थी, इसलिए खाना बनाते समय चूल्हें से आती चिट-पिट की आवाज़ों में उसे अपने मन की दुश्चिताओं और आशंकाओं की आवाजें सुनाई देती थीं। मानो के मन में शारीरिक शोषण का डर, बात न मानने पर प्रतिकूल व्यवहार की घबराहट थी।
एक दिन भट्ठा मालिक मुख्तार सिंह कहीं बाहर चला गया तो उसका बेटा सुखदेव सिंह भट्ठे पर आने लगा। सुखदेव सिंह के भट्ठे पर आने से भट्ठे का माहौल बदल गया। ठेकेदार असगर उससे डरा-डरा रहने लगा। सुखदेव सिंह अपनी सेवा - टहल कराने के बहाने एक मज़दूर महेश की पत्नी किसनी का यौन शोषण करने लगा। उसने किसनी को साबुन, कपड़े और ट्रांजिस्टर लाकर दिया। वह किसनी को शहर भी घुमाने ले जाने लगा। किसनी खुश थी, वह सूबेसिंह के साथ अधिक समय व्यतीत करने लगी थी। उसके रंग-ढंग में परिवर्तन आ गया था । उसका पति महेश शराब पीने लगाथा। उसे देखकर मज़दूरों में फुसफुसाहट शुरू हो गई थी
मानो और सुकिया खुश थे क्योंकि भट्ठे पर काम करते हुए उन्होंने कुछ पैसे बचाये थे । भट्ठे पर पकती लाल-लाल ईंटों को देखकर मानो खुश थी। वह ज्यादा काम करके, ज्यादा रुपये जोड़कर अपना एक पक्का मकान बनाने का सपना देखने लगी थी। एक दिन किसनी के अस्वस्थ होने पर सूबेसिंह ने ठेकेदार असगर के द्वारा मानो को अपने दफ्तर में बुलवाया। बुलावे की खबर सुनते ही मानो और सुकिया घबरा गए। वे सुखदेव की नीयत भाँप गए । मानो इज्जत की जिंदगी जीना चाहती थी, वह किसनी बनना नहीं चाहती थी। उनकी घबराहट देखकर जसदेव मानो के स्थान पर स्वयं सूबेसिंह से मिलने चला गया। सूबेसिंह ने जसदेव को अपशब्द कहे और लात - -घूसों से पिटाई कर दी। सुकिया और मानो उसे झोंपड़ी में ले आए। जसदेव के इस अपनेपन के कारण मानो उसके लिए रोटी बना कर ले गई लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उसने मानो की बनाई रोटी नहीं खाई। असगर ठेकेदार जसदेव को सुकिया और मानों के चक्कर में न पड़ने की सलाह देता है। जसदेव का व्यवहार मानो और सुकिया के प्रति बदलता चला जाता है। जसदेव की पिटाई से भट्ठा मज़दूरों में भय फैल जाता है।
सूबेसिंह की हिदायत पर असगर ठेकेदार सुकिया और मानो को तरह-तरह से परेशान करने लगा। उसने सुकिया से ईंट पाथने का साँचा ले लिया और मोरी का काम दे दिया। एक सबुह मानो ने अपनी ईंट पाथने की जगह पर सारी ईंटें टूटी हुई देखीं। वह दहाड़ मार कर रोने लगी। आवाज़ सुनकर सुकिया वहाँ आया तो टूटी ईंटें देखकर हक्का-बक्का रहा गया। असगर ठेकेदार ने टूटी ईंटों की मजूदरी देने से साफ इंकार कर दिया।
सुकिया सारी बात समझ गया और मानो का हाथ पकड़ कर बोला कि - 'ये लोग हमारा घर नहीं बनने देंगे।' वे लोग भट्ठे को छोड़कर खानाबदोश की तरह किसी अनजान स्थान की ओर चल पड़े।
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