सोमा बुआ का चरित्र चित्रण - Soma Bua ka Charitra Chitran: सोमा बुआ अकेली कहानी की नायिका हैं। सोमा बुआ बड़ी जीवंत महिला हैं। इसकी लेखिका 'मन्नू भंडारी
सोमा बुआ का चरित्र चित्रण - Soma Bua ka Charitra Chitran
1) माँ: अकेली कहानी हरखू की मृत्यु के बीस साल बाद की है, पर माँ सोमा बुआ एक पल के लिए भी बेटे को नहीं भूल पाती। पड़ोसियों के यहाँ सुख-दुख के अवसरों पर काम करते लगता है मानों बेटे हरखू के यहाँ, उसके परिवार के लिए काम कर रही हो। पड़ोसिन राधा से कहती है- "मेरे लिए जैसा हरखू वैसा किशोरीलाल। आज हरखू नहीं है, इसीलिए दूसरों को देख-देख मन भरमाती रहती हूँ। "
2) स्नेहिल एवं कर्मठ: अकेली कहानी में हम देखते हैं कि बुआ अपने स्नेहिल व्यवहार और कर्मठता के कारण अपनी पहचान बना लेती है। पुत्र शोक में पति तीर्थवासी बन गए और बुआ जीवन के अकेलेपन और एकरसता से निजात पाने के लिए निस्वार्थ भाव से पास-पड़ोस को अपनापन देने और पाने लगी। कोई आमंत्रित करे या न करे, बुआ अपने व्यवहार और कार्यकुशलता से आयोजनों का भट्टी-भण्डार घर सब सम्भाल प्रशंसा, आभार और आत्मसंतुष्टि पा लिया करती है । किशोरीलाल के बेटे के मुंडन पर भट्टी–भण्डार घर सब ऐसे संभाल लेती है कि घर के लोग निश्चिंत हो जाते हैं। उन्हें कहना पड़ता है- "अम्मा ! तुम न होती तो आज भद्द उड़ जाती। अम्मा ! तुमने लाज रख ली।" !
3) मिलनसार: बुआ सब का दिल जीतना जानती है। राधा के हाथ से पापड़ पकड़ सुखाने लगती है। आमंत्रण न मिलने पर भी बुरा नहीं मानती। अपने श्रम के बल पर सबका मन जीत लेती है। कहती है-" बेचारे इतने हंगामे में बुलाना भूल गए तो मैं भी मान करके बैठ जाती ?... मैं तो अपनेपन की बात जानती हूँ। कोई प्रेम नहीं रखे तो दस बुलावे पर भी नहीं जाऊँ और प्रेम रखे तो बिन बुलावे भी सिर के बल जाऊँ।"
4) पत्नी: बुआ का पति जीवन यथार्थ से आँखें चुराने वाला और मात्र अपने लिए जीने वाला आत्मकेंद्रित व्यक्ति है। उसके जीवन में पत्नी के लिए कोई जगह नहीं। गृहस्वामी धर्म उसे स्मरण नहीं और गृहिणी धर्म में जरा-सी भी लापरवाही उसे बर्दाश्त नहीं। लेकिन बुआ कभी भी उसका तिरस्कार या अवहेलना नहीं करती। वह न परित्यक्ता है, न मर्दवाली। पति वर्ष में एक महीने के लिए आता है। पति का स्नेहहीन व्यवहार, रोक-टोक और अंकुश बुआ के जीवन की अबाध बहती धारा को कुंठित कर देता हैं, उसकी सारी सक्रियता को ताला लगा देता है। पति का नादिरशाही हुकुम है कि बिना बुलावे के बुआ किसी के घर मुंडन, छठी, शादी या गमी में नहीं जाएगी। बुआ चाहकर भी उसकी अवज्ञा नहीं करती। मन मार लेती है, आँसू बहा लेती है, उदास हो लेती है, पर पति के मान को आंच नहीं आने देती।
5) अकेली: वह बेटे की मृत्यु और पति के संन्यास धारण करने के बाद एकदम अकेली हो जाती है और वर्ष में एक महीने के लिए उसके पास आने वाला पति उसे और भी अकेला कर जाया करता है। एक अकेलापन उसे बेटे की मृत्यु ने दिया है, दूसरा पति के संन्यास ने और तीसरा सामाजिक जुड़ाव से उसका कटाव करने वाले पति के नादिरशाही हुकुम ने। यानी उसके हिस्से में दैवी, पारिवारिक, सामाजिक– सब प्रकार का अकेलापन आया है।
सारे दुखों, उपेक्षाओं, तिरस्कार के बावजूद बुआ सामान्य स्त्री है।
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