संघमित्रा का चरित्र चित्रण - Sanghmitra Ka Charitra Chitran: रामवृक्ष बेनीपुरी जी एक कुशल कथाकार है। उनके द्वारा विरचित एकांकी “संघमित्रा” में सम्राट
संघमित्रा का चरित्र चित्रण - Sanghmitra Ka Charitra Chitran
संघमित्रा का चरित्र चित्रण - रामवृक्ष बेनीपुरी जी एक कुशल कथाकार है। उनके द्वारा विरचित एकांकी “संघमित्रा” में सम्राट अशोक की पुत्री का चरित्र बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है। सम्राट अशोक की सुपुत्री संघमित्रा मानव समाज के बीच जलने वाली वह दीप शिखा थी जिससे मानव जाति का पथ प्रशस्त होता नजर आ रहा था संघमित्रा अहिंसा की पुजारी थी जिसमें सेवा, त्याग, और समर्पण की भावना प्रचुरमात्रा से भरी हुई थी मानवीय आदर्शों तथा महान रत्नों को संजोगकर संघमित्रा ने भव्य महल खड़ा किया वह कहती है-“बदला हुआ आदमी संसार को बदल सकता है"। अगर हम बदल गये तो हम संसार को बदल सकते है उसे हम ऐसा बना देंगें, जिसमें न कोई विजेता हो न विजित न जय हो न पराजय, न हिंसा हो न घृणा, जहां मनुष्यों का अस्तित्व टुकड़ों में न बंटे जहां हृदय में खींचातानी न हो जहां मानव आकांक्षा की परिणति हो ज्ञान में, कल्याण में। हम संसार को बदलने चले हैं- देखो हमारा यह अभियान संघमित्रा इसी विचारों को लेकर जीवन तथा संसार का निर्माण चाहती है।
जैसा कि हम जानते है कि सम्राट अशोक कि पुत्री संघमित्रा है। वहीं अशोक अपने साम्राज्य के लिए वह हिंसा का पुजारी हो गया था। वहीं पर अशोक की पुत्री संघमित्रा अहिंसा में विश्वास करती थी जहां अशोक अपने निन्यानबे भाइयों कि हत्या कर दिया था। और कलिंग की धरती को लाल कर दिया था वहीं अशोक की पुत्री जीवन पर्यन्त शाश्वत विजय की प्राप्ति के लिए शांति, प्रेम, और अहिंसा को बीज मंत्र के रूप में ग्रहणकर मानवता के पथ को प्रशस्त करती रही। संघमित्रा की मान्यता थी कि किसी भी मनुष्य पर शक्ति प्रदर्शन कर हम उसके शरीर को बंदी बना सकते है मगर उसके आत्मा को नहीं वह मानवीय आदर्शों से समाविष्ट, महाचेतना में विश्वास करने वाली थी वह हमेशा से मानव हृदय पर अधिकार करना चाहती थी न कि उसे कष्ट पहुंचा कर जहां सम्राट अशोक हिंसा को अपना कर अपना साम्राज्य - विस्तार की लालसा में कलिंग के लाखों मनुष्यों की हत्या कर दी थी जिसके कारण अशोक को प्रतिदिन घृणा मिली, संघमित्रा ऐसा युद्ध चाहती थी जिसमें विजेता और विजित का अंतर समाप्त हो जाए, हत्या लूट, खसोट, दुःख, तकलीफ किसी भी मनुष्य को न हो मानव समाज हत्या जैसे जघन्य अपराध से मुक्त हो जाए संघमित्रा कहती है- " विजय जिसमें विजितके हृदय में विजेताके प्रति घृणा न हो विजय जिसमें विजेता की आकांक्षा हो अधिक से अधिक सेवा करना और विजय जिसमें विजित की आकांक्षा हो विजेता को अपने हृदयासन पर बिठाये रखना " संघमित्रा एक सहिष्णु नारी है।
वह मुश्किलों में कभी घबराती नहीं है।वह हमेशा उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है वह कभी भी अपने गुजरे हुए कल पर पश्चाताप नहीं करना चाहती वह चाहती है कि जीवन को कुंठित बनाने के बजाय आशा का संबल लेकर आगे बढे इसी भावना से आंदोलित होकर वह निराशा से ग्रस्त नीलमणि को भी समझाती है- “ अतीत का गीत दुहराने से कुछ नहीं होता, कुमार ! हम वर्तमान को देखें, भविष्य की चिंता करें । संघमित्रा में भावुकता कूट-कूट कर भरी है। उसके मन में जो प्रेम की लहरें तरंगित होती हैं उससे उसका सारा जीवन मधुर संगीत बन जाता है संघमित्रा के प्रेम में वासना नहीं है। वह प्रेम को गहरे और व्यापक रूप में देखती है। वह शारिरिक सुख से ज्यादा मानसिक सुख में ज्यादा विश्वास करती है। वह युद्ध और प्रेम को एक ही सिक्के के दो रूप समझती है। सामाजिक बन्धन के अनुकूल वह अपने शरीर पर पति का अधिकार मानती है। वह अपना मन देश को समर्पित करना चाहती है।
इस प्रकार 'संघमित्रा' और 'सिहल विजय' दोनों एकांकियों में संघमित्रा का चरित्र चित्रण अत्यधिक मनमोहक है। बेनीपुरी जी संघमित्रा एकांकी में संघमित्र को मानवतावादी के रूप में चित्रित किया है। संघमित्रा का चरित्र भावुक, त्याग, प्रेम, और करुणा से भरी हुई है।
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