गूंगे कहानी का सारांश - Gunge Kahani Ka Saransh: गूंगे कहानी का प्रमुख पात्र एक गूंगा किशोर हे। वह जन्म से वज्र बहरा होने के कारण गूंगा है। गूंगा तीव
'गूंगे' एक सामाजिक कहानी है। रांगेय राघव ने गूंगे कहानी के माध्यम से समाज में विकलांगों के प्रति संवदेनहीनता को दर्शाता है तथा साथ ही समाज में शोषित मनुष्य की बेबसी का भी चित्रण किया है। समाज में संवेदनहीन लोगों को, ऐसे व्यक्तियों को जो अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत नहीं हैं, देखते-सुनते हुए भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते, गूंगे और बहरे कहा है। इसलिए इस कहानी का शीर्षक 'गूंगे' है, जो पूर्णतया सार्थक है।
गूंगे कहानी का सारांश - Gunge Kahani Ka Saransh
गूंगे कहानी का प्रमुख पात्र एक गूंगा किशोर हे। वह जन्म से वज्र बहरा होने के कारण गूंगा है। गूंगा तीव्र बुद्धि भी है। वह इशारों के माध्यम से अपने विषय में बताता है कि जब वह छोटा था तब उसकी माँ उसे छोड़कर चली गई क्योंकि उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। वह यह भी बताता है कि वह भीख नहीं लेता और मेहनत का खाता है। गूंगा मुँह खोलकर दिखाता है और बताता है कि बचपन में किसी ने गला साफ करने की कोशिश में काकल काट दिया । चमेली ने पहली बार गले में काकल के महत्त्व को अनुभव किया।
चमेली बहुत भावुक थी। उसके हृदय में अनाथ बच्चों के प्रति दया थी। चमेली ने चार रूपये वेतन और खाने पर उसे नौकर रखा लिया। गूँगे के बुआ-फूफा ने उसे पाला था परन्तु गूँगा वापस उनके पास नहीं जाना चाहता था । वे लोग उसे बहुत मारते थे। वे चाहते थे गूँगा रूखा-सूखा खाकर बाजार में पल्लेदारी करके पैसा कमाकर लाए और उन्हें दे।
एक दिन अचानक गूंगा कहीं चला गया। सबके खाना खा चुकने के बाद गूंगे ने आकर इशारे से खाना माँगा चमेली ने गुस्से में उसे आगे रोटियाँ फेंक दी। पहले तो गूंगे ने रोटियाँ छुईं नहीं परन्तु न जाने क्या सोचकर रोटियाँ उठाकर खा ली। फिर तो अक्सर गूंगा जब चाहे भाग जाता था, जब चाहे लौट आता था।
एक बार चमेली के पुत्र वसंता ने कसकर गूंगे के चपत जड़ दी। गूँगे का हाथ उठा और फिर न जाने क्यों अपने आप रुक गया। उसकी आँखों में पानी भर आया और वह रोने लगा। चमेली के आने पर वसंता बताता है कि गूंगा उसे मारना चाहता था। गूंगा कुछ सुन नहीं सकता था परन्तु वह चमेली की भाव-भंगिमा से सब कुछ समझ जाता है। चमेली ने गूंगे को मारने के लिए हाथ उठाया तो गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया हो। उसने घृणा से हाथ छुड़ा लिया। उसने सोचा कि यदि उसका बेटा गूंगा होता तो वह भी ऐसे ही दुःख उठाता।
गूंगे के हाथ पकड़ने से चमेली को उसके शारीरिक बल का अंदाजा हुआ कि गूंगा वसंता से कहीं अधिक ताकतवर है। चमेली को हैरानी भी हुई कि गूंगा शायद यह बात समझता है कि वसंता मालिक का बेटा है इसलिए वह उसे हाथ नहीं लगा सकता है। मन ही मन उसे क्षोभ भी हुआ कि शायद इसलिए गूंगे ने उसका हाथ पकड़ा था कि वह तो वसंता की माँ थी, वह तो उसे दंड दे सकती थी। चमेली ने गूंगे को आश्रय दिया था, उसकी शारीरिक एवं भावनात्मक सुरक्षा चमेली की जिम्मेदारी थी। गूंगे को चमेली से निष्पक्ष न्याय की उम्मीद थी परन्तु चमेली के पुत्रमोह ने उसकी आँखों पर परदा डाल दिया था।
गूंगे पर चोरी का आरोप लगाया गया। चमेली उस पर बहुत क्रोधित हुइ। उसने गूंगे का हाथ पकड़कर द्वार से निकल जाने का इशारा किया। गूंगे की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। चमेली उस पर खूब चिल्लाई, उसे बहुत बुरा-भला कहा। लेकिन जैसे मन्दिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा। उसे केवल इतना ही समझ आया कि मालकिन नाराज़ हैं और उसे घर से निकल जाने को कह रही हैं। उसे इस बात पर बहुत हैरानी और अविश्वास हो रहा था। अन्ततः चमेली ने उसे हाथ पकड़कर दरवाजे से बाहर धकेल दिया।
इस घटना के करीब घंटे भर बाद गूंगा वापस आया। वह खून से भीग गया था, उसका सिर फट गया था। वह सड़क के लड़कों से पिटकर आया था क्योंकि गूंगा होने के नाते वह उनसे दबना नहीं चाहता था। गूंगा दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली सोचती है कि आज समाज में गूंगे अनेक रूपों में है। जो व्यक्ति अन्याय देखता है और चुप रहता है तथा जो अत्याचार चुपचाप सहता है, वह भी गूंगा है। अन्याय तथा शोषण के खिलाफ आवाज़ न उठाने वाला, विचार होते हुए भी उन्हें प्रकट न कर सकने वाला भी गूंगा ही है। इन सबकी असमर्थता ही इन्हें गूँगा बना देती है।
COMMENTS