उद्धव-गोपी संवाद का सारांश - भ्रमरगीत
उद्धव-गोपी संवाद ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग का एक सरस अंग है। श्रीकृष्ण के मथुरा जाने के बाद गोपियां अति व्याकुल हैं। उद्धव जी श्रीकृष्ण का संदेश लेकर ब्रज आते हैं और गोपियों को योग की शिक्षा देते हैं जिस पर असमर्थता जताते हुए गोपी कहती हैं– उद्धव हमारे दस-बीस मन नहीं हैं जो हम निर्गुण बह्म की उपासना करें, हमारा तो एक ही मन है, जो श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन है और उन्हीं के साथ मथुरा चला गया है। उनके जाने के बाद हमारा शरीर उसी प्रकार शक्तिहीन व निर्बल है जिस प्रकार बिना सिर वाला धड़। श्रीकृष्ण के मथुरा से वापस लौटने की आशा में ही हमारे शरीर में श्वास चल रही है और इस आशा में हम करोड़ों वर्षों तक जीवित रह सकती हैं। तुम तो श्रीकृष्ण के परममित्र व सभी प्रकार के योग के स्वामी हो, आप ही श्रीकृष्ण से हमारा मिलन करा दो। उद्धव से गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण के अलावा हमारा कोई भी आराध्य नहीं है। गोपियाँ उद्धव से परिहास करती हुई कहती हैं कि उद्धव हमें लगता है कि श्रीकृष्ण ने तुम्हें नहीं भेजा है, तुम तो कहीं से भटकते हुए आ गए हो। तुम्हें ब्रज की नारियों से योग की बात करते हुए लज्जा नहीं आती है। वैसे तो तुम बड़े सयाने बनते हो परंतु तुम विवेक की बात नहीं करते हो। तुमने हमसे जो कुछ भी कहा वह हमने सहन कर लिया परंतु क्या तुमने योग की अवस्था का विचार किया है? इसलिए अब तुम चुप रहो। गोपियाँ उद्धव से शपथ देकर उद्धव को गोकुल भेजते समय श्रीकृष्ण की प्रतिक्रिया के बारे में पूछती हैं।
गोपियाँ उद्धव की निर्गुण ब्रह्म की उपासना के उपदेश से परेशान होकर उससे पूछती हैं कि हे उद्धव! निर्गुण ब्रह्म किस देश का वासी है, उसके माता-पिता कौन हैं? स्त्री और दासी कौन हैं? उसका रंग व वेश वैâसा है? उन्हें किस रंग से लगाव है? तुम हमें ठीक से बताओ, यदि तुम कपट करोगे, तो इसका फल अवश्य पाओगे। गोपियों के ऐसे तर्कपूर्ण प्रश्न सुनकर उद्धव ठगे से रह गए और उनका सारा ज्ञान का गर्व समाप्त हो गया।
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