खोई हुई दिशाएँ नई कहानी की कथावस्तु - कमलेश्वर की कहानी ‘खोई हुई दिशाएँ' नई कहानी आंदोलन की एक सशक्त प्रतिनिधि कहानी है। इसका मुख्य चरित्र चन्दर है, ज
खोई हुई दिशाएँ नई कहानी की कथावस्तु - Khoyi Hui Dishayen Kahani ki Kathavastu
खोई हुई दिशाएँ नई कहानी की कथावस्तु - कमलेश्वर की कहानी ‘खोई हुई दिशाएँ' नई कहानी आंदोलन की एक सशक्त प्रतिनिधि कहानी है। इसका मुख्य चरित्र चन्दर है, जो आधुनिक युगीन परिवेश में आत्मीयतापूर्ण संबंध चाहने पर भी हर जगह उसे औपचारिकता, स्वार्थपूर्ण, बनावटी संबंध और बेगानापन ही मिलता है जिससे वह छटपटाता है। चन्दर तीन साल पहले गंगा के किनारे पर बसा हुआ अपना शहर छोड़कर महानगर राजधानी दिल्ली में आकर बस गया है। अपने पुराने शहर में उसे जो आत्मीय का परिवेश मिलता था, आज बदलते समय में आधुनिकता के चपेट में आए महानगर दिल्ली में उसे नहीं मिल पाता। वह अकेलेपन और अजनबीपन से छटपटाता है, उसे कहीं भी आत्मीयता परिचय अस्मिता की स्वीकृति नहीं मिल पाती। उसे इलाहाबाद के बारे में बहुत सी जानकारियाँ थीं। गंगा के किनारे मिलने वाले जाने-पहचाने लगते थे। दिल्ली के बैंक काउंटर में इलाहाबाद वाला अमरनाथ जैसा सहृदय क्लर्क भी मिल जाता था, इन्द्रा से भी प्यार हो गया था।
पर दिल्ली में आकर उसे आनन्द जैसा मतलबी साथी मिलता है। टी-हाउस में अटकलें लगाकर परिचय और दोस्ती बढ़ाने के अजनबी लोग भी मिल जाते हैं। बिशन कपूर जैसे पड़ोसी हैं। जिससे उसकी एक बार भी मुलाकात नहीं होती। मिसेज गुप्ता अपने स्वार्थ के लिए उनके मकान में आकर उसका समय खराब करती है। ऑटो ड्राइवर अटो में बिठाते समय परिचित होने की आत्मीयता दिखाता है, पर उतरते समय किराए के लिए दुर्वचन भी कहता है। उसे टी हाउस में ऐसे प्रेमी-प्रेयसी मिलते हैं, जिनका परिचय केवल उसी समय तक सीमित है। वह दिल्ली में अपनी पूर्व प्रेयसी इन्द्रा से मिलने जब उसके घर पर पहुँचता है तो इन्द्रा अपने पति की देर के लिए चिंता प्रकट करती है और एक मेहमान की तरह चन्दर से केवल औपचारिकता निभाने के लिए बातचीत करती है। यह जानते हुए भी कि चन्दर की चाय में दो चम्मच चीनी डाल देने से उसका गला खराब हो जाता है, फिर भी उससे अनजान की तरह कितनी चीनी डालूँ, यह पूछती है और सचमुच दो चम्मच चीनी डाल देती है। जैसे कि पुरानी स्मृति खो गई हो। तब बहुत निराश होकर चन्दर घर लौटता है पर पत्नी निर्मला की प्यार भरी बात से खुश हो जाता है उसे अपनत्व का बोध होता है। अकेलेपन के नागपाश से मुक्ति मिल जाने का विश्वास हो जाता है। उसे किराए का मकान भी अपना लगता है। वह पत्नी निर्मला के अंग-अंग को छूकर उसे प्यार करते समय उसमें अपनेपन का अनुभव करता है, उसे गहरी पहचान की अनुभूति होती है। पर निर्मला जब करवट बदलकर गहरी नींद में सो जाती है, तब चन्दर को फिर अकेलेपन का अहसास होता है। वह निर्मला के शरीर को छूकर पहचानने की कोशिश करता है उसे डर लगता है कि क्या सचमुच निर्मला उसके स्पर्श को नहीं पहचानती ? चन्दर जब निर्मला को झकझोर देता है, तब निर्मला चौंककर उठ जाती है और आँखें मलते हुए प्रकृतिस्थ होने की कोशिश करती है। तब बिजली जलाकर चन्दर उससे पूछता है- 'मुझे पहचानती हो, मुझे पहचानती हो निर्मला ?” चन्दर निर्मला में पुरानी पहचान ढूँढता है ।
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