फाइल किसे कहते हैं फाइल के कार्य, उद्देश्य और प्रकार बताइए: फाइल बनाना ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अभिलेखों को व्यवस्थित एवं संग्रहित किया जाता है जिससे उ
फाइल किसे कहते हैं फाइल के कार्य, उद्देश्य और प्रकार बताइए
फाइल बनाना ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पत्राचार तथा अभिलेखों को सही क्रम में इस प्रकार रखा जाता है जिससे उन्हें आसानी से ढूँढ़ा जा सके। फाइल बनाने से अभिप्राय एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें मूल अभिलेखों और उनकी नकलों को उचित ढंग से व्यवस्थित और संग्रहित किया जाता है जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त निकाला जा सके। दूसरे शब्दों में, फाइल बनाना ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अभिलेखों को व्यवस्थित एवं संग्रहित किया जाता है जिससे उन्हें आसानी से ढूंढा जा सके। सूचना के प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्यालय के सभी अभिलेखों / रिकार्ड्स को भावी संदर्भ के लिए सुरक्षित रखना आवश्यक है। सभी कार्यालयों में अभिलेखों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य की पूर्ति में फाइल व्यवस्था सहायक होती है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। कुछ पूर्व निर्धारित व्यवस्था के अनुसार निर्धारित वाक्सों में दस्तावेजों और कागज़ों को रखना इसमें सम्मिलित है।
फाइलिंग के उद्देश्य (Filing ke Uddeshya)
फाइल बनाने का मुख्य उद्देश्य अभिलेखों की समुचित व्यवस्था तथा सावधानीपूर्वक संग्रहण और सहज उपलब्धता को निश्चित करना होता है। एक कुशल फाइल व्यवस्था के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए :
1. अभिलेखों को समुचित ढंग से वर्गीकृत तथा व्यवस्थित करना
2. सम्भावित क्षति या नुकसान से दस्तावेजों को बचाना।
3. बिना समय गंवाए सूचना प्राप्त करने की एक विधि प्रदान करना।
4. व्यापारिक नीतियों एवं भावी योजनाओं के निर्माण के लिए प्रबन्ध को पुराने अभिलेखों को आसानी से उपलब्ध कराने में समर्थ करना।
फाइलिंग व्यवस्था के कार्य
- पूर्व-निर्धारित आधार पर दस्तावेजों का वर्गीकरण करना।
- कार्यवाही पूर्ण हो जाने के बाद पत्रों व दस्तावेजों को गत्ते की फाइल या फोल्डरों में रखना।
- फाइल के कवरों या फोल्डरों को दराजों वाली अल्मारी में सुरक्षित रखना।
- किसी भी विभाग द्वारा माँगे जाने पर फाइल को उपलब्ध करना।
- काम में न आने वाले कागजों को वर्तमान फाइल से निकाल कर पथक फोल्डर अथवा फाइल के डिब्बों में समय-समय पर रखते रहना जिससे वह भविष्य में प्रयोग के लिए उपलब्ध हो सकें।
- पुराने कागज और अभिलेखों की उपयोगिता समाप्त हो जाने के पश्चात् नष्ट करना।
फाइल व्यवस्था का प्रकार / वर्गीकरण (Types of File in Hindi)
अभिलेखों को तुरन्त उपलब्ध कराने के लिए दस्तावेजों का वर्गीकरण करना अनिवार्य होता है। वर्गीकरण ऐसे शीर्षकों के चयन की प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत फाइल बनाने से पहले अभिलेखों और दस्तावेजों को सामान्य विशेषताओं के आधार पर समूहबद्ध किया जाता है। उदाहरण के लिए, पत्रों को पत्राचार के विषय के आधार पर वर्गीकत कर दिया जाए। कार्यालय में फाइलों के वर्गीकरण की निम्नलिखित मुख्य प्रणालियाँ प्रचलित हैं :-
- वर्णात्मक वर्गीकरण
- संख्यात्मक वर्गीकरण
- भौगोलिक वर्गीकरण
- विषयानुसार वर्गीकरण
1. वर्णात्मक वर्गीकरण - वर्णात्मक वर्गीकरण के अनुसार विभिन्न पक्षों के पत्र अथवा विभिन्न विषयों से सम्बन्धित पत्र पक्ष अथवा विषय के आरम्भिक नाम के पहले वर्ण के आधार पर विभिन्न फाइल कवरों में रखे जाते हैं और व्यवस्थित किये जाते हैं। नाम या उपनाम के आधार पर अथवा विषय के आधार पर फाइल की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। जैसे : आत्माराम एण्ड सन्स से सम्बन्धित सभी कागज 'आ' या 'आत' लिखित फोल्डर में रखे मिलेंगे। प्रत्येक फाइल के अन्दर कागजों को तिथि अनुसार व्यवस्थित किया जाता है।
2. संख्यात्मक वर्गीकरण : इस व्यवस्था के अन्तर्गत फाइलों को संख्याक्रम के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक पत्राचार अथवा विषय को एक संख्या प्रदान कर दी जाती है। फाइलों को दराजों में संख्याक्रमानुसार रखा जाता है। उदाहरण के लिए, डी. के. शर्मा नामक उपभोक्ता को संख्या 25 दे दिया गया हो जिसमें कि उससे सम्बन्धित सभी कागज संख्या 25 के फोल्डर में रख दिए जाएं।
3. भौगोलिक वर्गीकरण : भौगोलिक प्रणाली में पत्राचार भौगोलिक क्षेत्र, प्रान्त अथवा राज्य के अनुसार वर्गीकत किया जा सकता है। फाइलें क्षेत्र के अनुसार बनाई जाती हैं जैसे उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी अथवा पश्चिमी अथवा राज्यानुसार या फिर शहर के आधार पर किसी विशेष क्षेत्र से सम्बन्धित सभी पत्र एक ही फाइल में रखे जाते हैं। इन फाइलों को वर्णानुसार व्यवस्थित कर दिया जाता है। जैसे आन्ध्रप्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, असम, बंगाल, बिहार उड़ीसा, आदि।
4. विषयानुसार वर्गीकरण : इस प्रणाली के अन्तर्गत विषय के अनुसार कागजों को समूहबद्ध किया जाता है। वर्णात्मक क्रम में विषय को रखा जाता है जैसे लेखा, अंकेक्षण, बिल, बोनस, आदि। यह विधि वहाँ सबसे अधिक उपयुक्त रहती है जहाँ संपर्की के स्थान अथवा नाम की अपेक्षा विषय का महत्त्व अधिक होता है।
फाइल बनाने की पद्धतियां
वर्गीकरण के पश्चात् फाइल को सावधानीपूर्वक सुरक्षित रखना चाहिए। इसके लिए फाइलिंग की उपयुक्त पद्धति का उपयोग करना चाहिए। फाइलिंग की कई पद्धतियां हैं जिनको उनमें प्रयुक्त उपकरणों के आधार पर बांटा जा सकता है। इनको इस प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है: (क) पुरानी पद्धतियां; और (ख) आधुनिक पद्धतियां।
1.फाइलिंग की पुरानी पद्धतियां: कोष्ठक फाइलिंग की कुछ परम्परागत पद्धतियां हैं जैसे कि तार फाइलिंग, फोल्डर फाइलिंग, कोष्ठक वाली फाइल, बॉक्स फाइलिंग, गार्ड बुक फाइलिंग एवं कमानीदार फाइलिंग आदि। आजकल ये पद्धतियां सीमित उपयोग में हैं। ये मुख्यतः छोटी व्यावसायिक इकाईयों के लिये अधिक उपयुक्त हैं। इन पद्धतियों का संक्षेप में नीचे वर्णन किया गया है:
(क) तार फाइल: इसमें एक मोटे तार का उपयोग होता है जिसके ऊपरी छोर को नुकीला करके आधी गोलाई में मोड़ दिया जाता है तथा निचली ओर एक लकड़ी अथवा प्लास्टिक का छोटा सा गोल टुकड़ा फँसा दिया जाता है। इस तार को किसी कील अथवा खूँटी पर टांग दिया जाता है या फिर मेज पर रख दिया जाता है।
(ख) फोल्डर फाइल: यह कार्ड बोर्ड अथवा मोटे कागज के बने होते हैं जिसमें धातु के कब्जे लगे होते हैं। इनमें कागजों को एक साथ जोड़कर रख देते हैं। प्रत्येक उपभोक्ता के नाम से एक अलग फोल्डर होता है जिसमें उस उपभोक्ता से सम्बन्धित सभी पत्र तिथि के अनुसार रख दिए जाते हैं। कागजों को सुराख करके कब्जों में पिरो दिया जाता है। कागज एक दूसरे के ऊपर सीधे रखे जाते हैं।
(ग) कोष्ठक वाली (पिजनहोल) फाइल: यह एक विशेष अलमारी होती है जिसे छोटे-छोटे खानों में बाँट दिया जाता है। यह खाने वर्गाकार होते हैं और एक ओर से खुले होते हैं। इन्हें 'कोष्ठक' कहते हैं। प्रत्येक खाने के ऊपर वर्णमाला का एक अक्षर लिखा होता है। पत्र प्राप्त करते ही इन्हें वर्णानुसार या विषयानुसार छांट लिया जाता है।
(घ) बॉक्सनुमा फाइल: जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह फाइल बॉकस या संदूक के आकार की होती है। प्रायः सबसे पहले कागज़ों को फोल्डरों में रखते हैं और फिर उन फोल्डरों को बॉकस फाइल में रख देते हैं। इससे कागज धूल मिट्टी आदि से सुरक्षित रहते हैं। वर्गीकरण के उद्देश्य से विभिन्न विषयों से सम्बन्धित कागजों को तह करके रख सकते हैं। यह पद्धति यात्रा करने वाले एजेन्टों के लिए लाभदायक है जिन्हें पत्र व्यवहार का संग्रहण थोड़े समय के लिए करना होता है।
(ङ) गार्ड बुक फाइल: इस जिल्दवाली पुस्तक में कागज अथवा वाउचर तिथिवार क्रम से चिपका दिए जाते हैं। यह पद्धति प्रायः कार्यवाही के अभिलेखन के लिए और रसीदों तथा वाउचरों को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। इससे किसी भी कागज की क्षति अथवा नुकसान की सम्भावना नहीं रहती।
(च) कमानीदार फाइल: इस प्रकार की फाइलें मजबूत गत्ते की बनी हुई होती हैं जिनके बीच में धातु की कमानियाँ लगी हुई होती हैं। हैंडिल को हटाने व दबाने से इन कमानियों को खोला और बन्द किया जा सकता है। जब किसी कागज को फाइल में रखना होता है, तब उसमें दो सुराख पंच मशीन द्वारा कर लिए जाते हैं। इन सुराखों के माध्यम से कागजों को कमानियों में पिरो दिया जाता है। इसके लिये लीवर को पहले उठाना होता है इससे कमानियां खुल जाती हैं। पत्र या दस्तावेज को कमानियों में रख देने के पश्चात लीवर को नीचे दबा दिया जाता है जिससे कमानी बंद हो जाती है। कागजों को एक पर एक सीधा रख दिया जाता है।
2. फाइलिंग की आधुनिक पद्धतियांः उपर्युक्त वर्णित पुरानी फाइलिंग पद्धतियों के अतिरिक्त कुछ आधुनिक फाइल पद्धतियां भी हैं जो कि आजकल बड़े एवं छोटे सभी संगठनों में लोकप्रिय हैं। फाइलिंग की आधुनिक पद्धतियों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है: (क) समतल फाइलिंग पद्धति, और (ख) खड़ी या शीर्ष फाइलिंग पद्धति |
(क) समतल फाइल पद्धति: इस पद्धति में कागजों को फाइल कवर या फोल्डर में समतल स्थिति में एक के ऊपर एक रखा जाता है। इन कागज़ों को गत्ते के फाइल कवरों में क्रमानुसार रखा जाता है। धातु के कब्जे अथवा लीवर के द्वारा इन्हें एक साथ नत्थीकर दिया जाता है। तत्पश्चात् फाइल को एक के ऊपर एक समतल स्थिति में अलमारी में रख देते हैं। कागज की आवश्यकता पड़ने पर सम्बद्ध फाइल को निकाल कर उसमें से आवश्यक कागज लेकर फाइल को उसी अवस्था में रख दिया जाता है।
(ख) खड़ी या शीर्ष फाइल पद्धति: यह पद्धति सर्वाधिक नई है। इस पद्धति में कागजों को फाइलों में रखकर खड़ी स्थिति में रख दिया जाता है। फोल्डर को विशिष्ट डिज़ाइन वाली खानेदार अलमारियों में संग्रहित कर देते हैं। फोल्डर का सामने का हिस्सा थोड़ा छोटा होता है और पीछे के फैले हुए हिस्सों में फाइल की कोड संख्या चिन्हित रहती है। स्टील की अलमारी की दराज़ काफी गहरे होते हैं जिससे उनमें फोल्डरों को खड़े रूप में रखा जा सके। फाइलों को अलग-अलग वर्गों में बांटने के लिए उनके बीच में संकेत कार्ड लगा दिए जाते हैं। इस पद्धति में प्रत्येक उपभोक्ता अथवा विषय के लिए एक अलग फोल्डर होता है जिन्हें वर्णात्मक, संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा विषयानुसार लगा दिया जाता है। बड़े-बड़े व्यावसायिक संस्थानों अथवा कार्यालयों में यह पद्धति अत्यधिक प्रचलित है।
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