काका कालेलकर आयोग पर टिप्प्पणी लिखें।
- काका कालेलकर आयोग का गठन कब किया गया।
- काका कालेलकर आयोग क्या है ?
- काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट बताइये।
- काका कालेलकर आयोग का संबंध किससे है।
काका कालेलकर आयोग (Kaka Kalelkar Aayog in Hindi)
काका कालेलकर आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा 29 जनवरी, 1953 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 के अन्तर्गत किया गया था और जिसे 30 मार्च, 1955 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस आयोग की स्थापना काका कालेलकर की अध्यक्षता में की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य देश में सामाजिक शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को ज्ञात करने एवं उनकी सूची तैयार करना था। इस आयोग को प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग भी कहा जाता है। इस आयोग को निम्नलिखित आदेश दिए गए थे
- पिछड़े वर्गों की सूची तैयार करें।
- आयोग उन तथ्यों का निर्धारण करें जिनके आधार पर सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को ज्ञात किया जा सके।
- इन वर्गों की क्या सहायता की जाए।
- पिछड़े वर्गों की विभिन्न समस्याओं को ज्ञात करें।
- इन वर्गों की कठिनाइयों को दूर करने एवं उनके कल्याण हेतु राज्य सरकारों को कौन से कदम उठाने चाहिए।
प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग, अर्थात् काका कालेलकर आयोग ;1953 ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए निम्नांकित मापदंडों का निर्धारण किया -
- परम्परागत जाति व्यवस्था क्रम में निम्न स्थान
- किसी जाति या समुदाय के अधिकांश सदस्यों में सामान्य शिक्षा का अभाव
- सरकारी सेवा में र्कोइ प्रतिनिधित्व नहीं या कम प्रतिनिधित्व
- व्यापार, वाणिज्य और उद्योग में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व ।
इस आयोग ने पिछड़े वर्गो की पहचान के लिए सामाजिक तथा शैक्षणिक मानदण्ड़ निर्धारित कर सरकारी सेवाओं में इनके लिए आरक्षण की सिफारिश की थी किन्तु सामाजिक तथा शैक्षणिक मानदण्ड स्पष्टतया परिभाषित न होने के कारण इस सिफारिश को अमान्य कर दिया गया।
काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट
इसने समूचे देश के लिए 2399 पिछड़ी जातियों या समुदायों की भी एक सूची तैयार की तथा उनमें से 837 को सर्वाधिक पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया । भारत के महा पंजीयक तथा जनगणना आयुक्त ने 930 पिछड़ी जातियों या समुदायों के जनसंख्या संबंधी आंकड़े निकालने में मायोग की मदद की।
पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए आयोग की सिफारिशें विभिन्न प्रकार हैं उनमें ऐसे विस्तृत क्षेत्र पाते हैं जैसे व्यापक भूमि सुधार, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का पुनर्गठन, भूदान आन्दोलन, पशुधन विकास, डेरी फार्मिग, पशु बीमा, मधुमक्खी पालन, सुअर बाड़ा, मत्स्य पालन, ग्रामीण तथा कुटीर उद्योग का विकास, ग्रामीण आवास, जन स्वास्थ्य तथा ग्रामीण जल आपूर्ति, प्रौढ़ साक्षरता, विश्वविद्यालय शिक्षा, सरकारी सेवा में पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व, प्रादि, आदि। आयोग की कुछ उल्लेखनीय सिफारिशें निम्नलिखित थीं :-
- 1961 की जनगणना में जनसंख्या की जातिवार गणना का ज्ञान।
- हिन्दू समाज की पारम्परिक जाति व्यवस्था में निम्न स्तर के एक वर्ग के सामाजिक पिछड़ेपन के कारण निम्न स्थिति।
- सभी महिलाओं को "पिछड़े" वर्ग में मानना।
- पिछड़े वर्गों के योग्य विधाथियों के लिए सभी तकनीकी तथा व्यावसायिक संस्थानों में 70 प्रतिणत स्थानों का आरक्षण ।
- निम्नलिखिम पैमाने पर अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सभी सरकारी सेवाओं तथा स्थानीय निकायों की नियुक्ति में न्यूनतम आरक्षण :
- श्रेणी I - 25 प्रतिशत
- श्रेणी II - 33.33 प्रतिशत
- श्रेणी III तथा IV - 40 प्रतिशत
यह उल्लेखनीय है कि काका कालेलकर आयोग एक सर्वसम्मत रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर सका । वास्तव में इसके पांच सदस्यों ने अलग-अलग टिप्पणियां दी। डा० अनूप सिंह, श्री अरुण ऊंगशू तथा श्री पी० जी० शाह ने पिछड़ेपन को जाति के साथ जोड़ने के विचारों का विरोध किया था। उन्होंने जाति के आधार पर पदों के आरक्षण का भी विरोध किया था। दूसरी ओर, श्री एस० डी० एस० चौरसिया ने अपनी 67 पृष्ठों की टिप्पणी में जाति को पिछड़ेपन का मानदंड स्वीकार करने के लिए जोरदार तरफदारी की थी । श्री टी. मेरीअप्पा की टिप्पणी. अन्य पिछड़े वर्गों की सूची में केवल कुछ जातियों को शामिल करने से संबंधित थी।
अध्यक्ष श्री काका कालेलकर ने इस मुद्दे पर लगभग अनिश्चित रुख अपनाया था । यद्यपि उन्होंने औपचारिक रूप में असहमति प्रकट नहीं की किन्तु उन्होंने राष्ट्रपति को भेजे गए अपने पत्र में पिछड़ेपन के लिए जाति को आधार मानने का विरोध किया। उन्होंने आयोग द्वारा दी गई कुछ अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशों के बारे में अपना निर्णय व्यक्त नहीं किया।