आदर्शात्मक संस्कृति
आदर्शात्मक संस्कृति : आदर्शात्मक सांस्कृति वह संस्कृति है जो दोनों सांस्कृतियों का समन्वयकारी बोध कराती है। भावात्मक व संवेगात्मक सांस्कृतियाँ परस्पर विरोधी विशेषताओं को प्रकट करने वाली सांस्कृतिक व्यवस्था के दो विपरीत छोर हैं। वास्तव में इन दोनों के मध्य की व्यवस्था ही श्रेष्ठ है, क्योंकि वह दोनों के श्रेष्ठ गुणों को अपने में सम्मिलित करती है। इस अवस्था को आदर्शात्मक संस्कृति का नाम दिया जाता है। यह संस्कृति तब आती है या तो भावात्मक संस्कृति संवेगात्मक में या संवेगात्मक संस्कृति भावात्मक संस्कृति में बदल रही हो, इस संस्कृति में न तो इहलौकिक व परलौकिक वस्तु पर अधिक बल दिया जाता है और न किसी वस्तु की उपेक्षा की जाती। इस प्रकार हम देखते हैं कि वास्तविक सन्तुलन स्थिति ही आदर्शात्मक संस्कृति है, सोरोकिन इसी संस्कृति को सर्वोत्तम कहते हैं।