सोरोकिन के सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या
सोरोकिन का सांस्कृतिक परिवर्तन सिद्धांत महत्वपूर्ण भूमिका रखता है परन्तु कुछ वैज्ञानिकों द्वारा अपने तुलनात्मक अध्ययनों द्वारा आलोचना भी की गई है, जो इस प्रकार से है
- सोरोकिन उस वस्तु को नपसन्द करते हैं जो आधुनिकता की देन है उनके लिए हर संवेदनात्मक वस्तु बुरी है यह आरोप भी निराधार ही मालूम पड़ता है क्योंकि जिस वस्तु को हमारे सार्वभौमिक सामाजिक मूल्य अच्छा न समझते हैं उसे बुरा कहने में क्या बुराई है।
- परिवर्तन होता कहाँ से है ? इसके लिए इन्होंने स्वाभाविक व अन्तःस्थः परिवर्तन की बात कही है। उनके अनुसार परिवर्तन किसी संस्कृति का स्वभाव है और स्वयं उसमें निहित शक्तियाँ ही परिवर्तन को जन्म देती हैं। जब तक इन शक्तियों को परिभाषित न कर दिया जाए तब तक सोरोकिन की यह बात मान्य नहीं हो सकती।
- इन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं को उनके ऐतिहासिक सन्दर्भ से अलग करके कृत्रिमता पैदा कर दी है हमारे अनसार यह आलोचना सही नहीं है क्योंकि यदि आपको किसी सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं को उनके स्थान से हटाकर सिद्धान्त को सुविधानुसार नए क्रम में रखना पड़े तो उसमें कृत्रिमता कैसी।