पर्यावरण संरक्षण हेतु किये गये कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय / वैश्विक प्रयासों का उल्लेख कीजिए। पर्यावरण का क्षय या ह्रास एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। जन
पर्यावरण संरक्षण हेतु किये गये कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय / वैश्विक प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
पर्यावरण का क्षय या ह्रास एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। जनसंख्या विस्फोट, नगरीकरण, जल प्रदूषण, धुआँ, शोरगुल, रासायनिक प्रवाह विज्ञान व तकनीक का अप्रत्याशित प्रसार आदि वे कारण हैं जिनकी वजह से पर्यावरण का ह्रास हो रहा है। विश्व के अधिकांश भागों में पर्यावरण की समस्याएँ अब भी निर्धनता व अज्ञानता से सम्बंधित हैं। परम्परागत अन्तर्राष्ट्रीय कानून में प्रदूषण व पर्यावरण ह्रास की समस्याओं पर बहुत अधिक गहन चिन्तन नहीं किया जा रहा है फिर भी यह मान्यता है कि राज्य के कार्य-कलापों की एक सीमा यह है कि उससे अन्य राज्यों के क्षेत्र पर कोई क्षति नहीं पहुँचाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य का यह उत्तरदायित्व है कि वह अपने राज्य क्षेत्र में ऐसा कोई कार्य न करें जिससे उस क्षेत्र या अन्य क्षेत्रों में पर्यावरण को हानि पहुँचे।
संयुक्त राष्ट्र के आरम्भिक दशकों में पर्यावरण चिन्ताएँ कभी-कभी ही अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्डा सूची पर आती हैं। इसी संगठन के सम्बंधित कार्य से प्राकृतिक संसाधनों की खोज व उनके उपयोग पर जोर दिया साथ ही यह भी निश्चित करना चाहा कि अधिकतर विकासशील देश अपने स्वयं के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण बनाए रखने में समर्थ हो। सन 1960 ई० दशक में समुद्री प्रदूषण विशेषकर तेल के बिखराव से सम्बंधित कुछ समझौते हुए थे परन्तु वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के क्षय के बढ़ते प्रमाण के कारण सन् 1970 ई० के दशक से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने इस ग्रह की पारिस्थितिक एवं मनुष्य समाज पर विकास के प्रभाव पर चिन्ता व्यक्त के इनकी चिन्ताओं का प्रमुख आधार 'टिकाऊ विकास' ही मुख्य आधार रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास
वर्ष 1972 ई० में एक सम्मेलन के उपरान्त संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशनल इनवायरमेन्ट प्रोग्राम - यू०एन०पी०) स्थापित किया जो एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरणीय एजेन्सी के रूप में कार्य कर रहा है।
वर्ष 1973 में संयुक्त राष्ट्र ने पश्चिमी अफ्रीका में मरूस्थलीय विस्तार को घटाने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए सूडानो-सहेलियन की स्थापना की तथा राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन व निर्णय की प्रक्रिया में पर्यावरण चिन्ताओं में शामिल करने का कार्य धीमी गति से रहा कुल मिलाकर पर्यावरण में हानि होना जारी रहा। वैश्विक ताप. ओजोन, क्षय व जल प्रदूषण जैसी समस्याएँ और गम्भीर हो गयीं। दूसरी ओर प्राकतिक संसाधनों का विनाश भी चिन्ताजनक रूप से बढ़ गया।
वर्ष 1980 का दशक पर्यावरणीय मुद्दों पर सदस्य राज्यों के मध्य उल्लेखनीय वाताओं का साक्षी रहा। इनमें ओजोन परत को सुरक्षित रखने एवं विषैले उत्सर्जन की गति को नियंत्रित करने वाली संधियों का समावेश था। सन 1983 ई० में महासभा द्वारा स्थापित पर्यावरण व विकास पर विश्व आयोग ने एक नए प्रकार के विकास की जरूरत समझी महासभा को प्रस्तुत
आयोग सन् 1987 ई० की रिपोर्ट में टिकाऊ विकास की अवधारणा सामने रखी, ऐसा टिकाऊ विकास अनियंत्रित आर्थिक वृद्धि पर आधारित विकास का वैकल्पिक तरीका था।
सन् 1991 ई० में प्रारम्भ एवं सन् 1994 ई० में पुनर्गठित वैश्विक पर्यावरण सुविधा (ग्लोबल एनवायरमेन्ट फेसिलिटी - जी०ई०एफ०, 'जेफ') को इन विधियों को व्यवस्थित ढंग से देने का कार्य दो बार सौंपा गया। सन् 1994 ई० में उपराष्ट्रों ने जेफ को 2 अरब डॉलर देने का वचन दिया, और सन् 1998 ई० में 36 राष्ट्रों ने दो अरब 75 करोड़ डॉलर दिए जेफ निधियाँ वे प्राथमिक साधन हैं जिनके जरिए जैविक विविधता एवं मौसम परिवर्तन संधियों के लक्ष्य साकार किए जाते हैं।
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