मेरा आदर्श इतिहास पुरुष छत्रपति शिवाजी पर निबंध : मर्यादा पुरुषोत्तम राम से लेकर आज तक भारत भूमि पर इतिहास पुरुषों की यशस्वी संखला विद्यमान है किंतु मेरे आदर्श इतिहास पुरुष हैं छत्रपति शिवाजी। शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल सन 1627 को महाराष्ट्र के शिवनेरी के दुर्ग में हुआ। उनकी माता का नाम जीजा भाई और पिता का नाम शाहजी था। शाहजी बीजापुर के शासक के अधीन थे। शिवाजी के जन्म के बाद शाह जी ने दूसरा विवाह कर लिया। जीजाबाई अब शिवनेरी से पुना आ गई थी। शिवाजी के जीवन निर्माण का श्रेय उनकी पूज्य माता जीजाबाई को है। वे शिवाजी को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाती है। बाल्यकाल में ही उन्होंने शिवाजी के ह्रदय में हिंदुत्व और राष्ट्रीय स्वाभिमान का भाव कूट-कूटकर कर दिया। साधु संतों की संगति में उन्हें धर्म और राजनीति का शिक्षण मिला।
मेरा आदर्श इतिहास पुरुष छत्रपति शिवाजी पर निबंध
इतिहास में अनेक महापुरुषों का उल्लेख है। वे अपने राष्ट्र की सेवा कर इतिहास पुरुष बन गए। विदेशियों से राष्ट्र की रक्षा, जनता के हित के लिए चिंतन तथा उसकी प्रगति का कार्यान्वयन ऐतिहासिक महापुरुषों का जीवन लक्ष्य रहा है। ऐसे महापुरुषों के सम्मुख मस्तक नत हो जाता है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपना जीवन राष्ट्रीय हित में समर्पित करने की इच्छा बलवती होती है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम से लेकर आज तक भारत भूमि पर इतिहास पुरुषों की यशस्वी संखला विद्यमान है किंतु मेरे आदर्श इतिहास पुरुष हैं छत्रपति शिवाजी। शिवाजी ही थे जिन्होंने-
मुगलों के अत्याचारों से जब हिंदू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी, स्त्रियों का अपमान सरेआम हो रहा था, गौ तथा ब्राह्मण की मान्यता समाप्त कर उनकी नृशंस हत्या की जा रही थी, हिंदू धर्म में जन्म लेने पर भी कर देना पड़ता था, अपनी आन के पक्के राजपूत तलवार को छोड़ विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे थे, ऐसे समय में हिंदू धर्म रक्षक छत्रपति वीर शिवाजी भारत भूमि पर अवतरित हुए।
शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल सन 1627 को महाराष्ट्र के शिवनेरी के दुर्ग में हुआ। उनकी माता का नाम जीजा भाई और पिता का नाम शाहजी था। शाहजी बीजापुर के शासक के अधीन थे। शिवाजी के जन्म के बाद शाह जी ने दूसरा विवाह कर लिया। जीजाबाई अब शिवनेरी से पुना आ गई थी।
शिवाजी के जीवन निर्माण का श्रेय उनकी पूज्य माता जीजाबाई को है। वे शिवाजी को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाती है। बाल्यकाल में ही उन्होंने शिवाजी के ह्रदय में हिंदुत्व और राष्ट्रीय स्वाभिमान का भाव कूट-कूटकर कर दिया। साधु संतों की संगति में उन्हें धर्म और राजनीति का शिक्षण मिला। कालांतर में दादाजी कोंडदेव पूना की जागीर के प्रबंधक नियुक्त हुए। शिवाजी ने उन्हीं से युद्ध विद्या और शासन प्रबंध करना सीखा।
दादाजी कोंडदेव की मृत्यु के बाद जागीर का प्रबंध शिवाजी ने अपने हाथ में ले लिया। उन्होंने मराठा जाति को एकत्रित कर एक सेना भी तैयार कर ली।
शिवाजी ने सर्वप्रथम आक्रमण बीजापुर के एक दुर्ग तोरण पर किया। तोरण को जीत लेने के बाद उन्होंने रायगढ़, पुरंदर और राजगढ़ के किले को भी जीता। इस विजय में बहुत सा धन प्राप्त होने के साथ एक अरब शहजादे की अनुपम सुंदर स्त्री भी मिली। जब लूट के सामान के साथ सुंदरी को भी शिवाजी के सम्मुख पेश किया गया तो उन्होंने उसे मां कहकर संबोधित किया और बहुत से आभूषण देकर उसे उसके पति के पास पहुंचा दिया।
शिवाजी की निरंतर विजय से बीजापुर के शासक ने आकर शिवाजी के पिता शाह जी को जेल में डाल दिया। शिवाजी ने अपनी बुद्धिमता से उन्हें छुड़ा लिया। इसके बाद शिवाजी कुछ समय तक शांत रहकर अपनी शक्ति बढ़ाते रहें।
दिल्ली में अपने भाइयों से निपटने के पश्चात औरंगजेब का ध्यान शिवाजी की ओर गया। उसने अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण में भेजा। शाइस्ता खां ने चाकन आदि कई किलो को जीतकर पुणे पर अधिकार कर लिया। उसी रात शिवाजी ने एक बारात के रूप में पूना में प्रवेश किया। उनके साथ 400 मराठा सैनिक थे। महल में पहुंचते ही उन्होंने मुगलों पर धावा बोल दिया। शाइस्ता खान स्वयं तो बड़ी कठिनाई से बच गया किंतु उसका पुत्र मारा गया।
औरंगजेब ने इस पराजय के पश्चात राजा जयसिंह और शिवाजी पर विजय के लिए भेजा। जयसिंह ने अपनी वीरता और चतुराई से अनेक किले जीते। इधर शिवाजी ने दोनों ओर हिंदू रक्त की वाहनी देख राजा जयसिंह से संधि कर ली। राजा जयसिंह के विशेष आग्रह पर शिवाजी ने औरंगजेब के आगरा दरबार में उपस्थित होना स्वीकार कर लिया। दरबार में शिवाजी का अपमान किया गया और उन्हें बंदी बना लिया गया। यहां भी उन्होंने कूटनीति का आसरा लिया। फल और मिठाई के टोकरी में छिप कर भाग निकले।
अब शिवाजी यवनों के कट्टर दुश्मन बन गए ।शिवाजी ने यवनों पर आक्रमण करके उन्हें हस्तगत करना आरंभ कर दिया। सिंह गढ़ का दुर्ग, सूरत की बंदरगाह, बुलढाणा आदि जीतकर खूब धन लूटा और वहां के लोगों से चौथ लेना शुरू कर दिया है। जून 1674 को शिवाजी का रायगढ़ के किले में राज्याभिषेक हुआ। इस प्रकार सैकड़ों वर्ष के बाद भारत में पुना हिंदू पद पादशाही की स्थापना हुई।
हिंदू पद पादशाही की स्थापना के अनंतर साम्राज्य प्रसार और धन प्राप्ति की इच्छा से शिवाजी ने बहुत से किले जीते। हैदराबाद और बिल्लौर ने आत्मसमर्पण ही कर दिया। अंत में शिवाजी ने कर्नाटक तक अपना राज्य बढ़ाया।
युद्ध में व्यस्त रहने के कारण शिवाजी अपने उत्तराधिकारी को उचित शिक्षण ना दे सके। उनका पुत्र संभाजी विलासी, व्याभिचारी और कायर बन गया था। शिवाजी अपने अंतिम समय में बड़े निराश थे। उनके शरीर को रोग ने दबा लिया और 5 अप्रैल 1650 को इस वीर पुरुष की मृत्यु हो गई।
शिवाजी एक कुशल संगठनकर्ता और एक श्रेष्ठ शासक थे। उनकी शासन व्यवस्था उत्तम थी। वे एक आदर्श पुरुष थे, अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। उन्होंने अन्य धर्मों के पूजा स्थलों का कभी अनादर नहीं किया, कभी उन्हें तुड़वाया नहीं।
समर्थ गुरु रामदास शिवाजी के गुरु थे। गुरु के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा थी। यही कारण है कि दीक्षा में गुरु जी को अपना संपूर्ण राज्य तक दे डाला था। वे उनके प्रबंधक के नाते राज्य प्रबंध करते थे।
कुशल राजनीतिज्ञ, असाधारण संगठनकर्ता, गौ-ब्राह्मण प्रतिपालक, हिंदू धर्म परित्राता, धैर्य और साहस के स्वामी, आदर्श चरित, न्यायमूर्ति शिवाजी को प्रत्येक हिंदू आदर और श्रद्धा की दृष्टि से देखता है तथा उनके जीवन से स्वराष्ट्र और स्वधर्म की सुरक्षा की प्रेरणा लेता है।
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