Hindi Essay on "Poultry Farming", "मुर्गी पालन पर निबंध" मांस अथवा अण्डे की प्राप्ति के लिये मुर्गी को पालना मुर्गी पालन या कुक्कुट पालन (Poultry farm
Hindi Essay on "Poultry Farming", "मुर्गी पालन पर निबंध", "Murgi Palan Par Nibandh" for Students
मुर्गी पालन पर निबंध- Essay On Poultry Farming In Hindi
मांस अथवा अण्डे की प्राप्ति के लिये मुर्गी को पालना मुर्गी पालन या कुक्कुट पालन (Poultry farming) कहलाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर पर मुर्गी पालन से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है साथ ही मुर्गी का मल खाद के रूप में खेतो में प्रयोग से फसल की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है।
मुर्गी पालन का उद्देश्य :-
- अंडे और मांस में उच्च कोटी के प्रोटीन होना और उसे उपलब्ध करवाना ।
- मुर्गी पालन को बढ़ावा देना।
- मुर्गी पालन में आर्थिक विकास दर सुनिश्चित करवाना।
- ग्रामीण इलाकों में रोजगार के वसर प्रदान करवाना।
- कम लागत में अच्छी खाद तैयार करना।
कुछ महत्वपूर्ण मुर्गीपालन शुरू करने से पहले :- मुर्गी पालन करने के लिए पहले इसे छोटे स्तर से शुरू करना चाहिए। मुर्गी फार्म खोलने से किसी कृषि जानकार से सलाह लेनी चाहिए। पोल्ट्री व्यवसाय में आप कितना पैसा कमा सकते हैं इसकी कोई समय सीमा नहीं होती है। पोल्ट्री फार्म दो प्रकार के होते हैं। ब्रायल पोल्ट्री, पोल्ट्री पालन।
मुर्गी पालन के लिए जगह
मुर्गी पालन की जगह मेन रोड़ और शहर से बाहर होनी चाहिए। बिजली की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मुर्गी फार्म हमेशा ऊंचाई वाली जगह पर होना चाहिए। दो पोल्ट्री फार्म एक दूसरे के पास में नहीं होना चाहिए। फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम की ओर होनी चाहिए। मध्य में ऊंचाई 12 फीट और साइड 8 फीट ऊंची होनी चाहिए। चौड़ाई 25 फीट और शेड का अंतर कम से कम बीस फीट होना चाहिए। मुर्गियों के शेड और बर्तनों को हमेशा साफ रखना चाहिए। एक शेड में केवल एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए।
मुर्गी फार्म में प्रयोग आने वाले यंत्र
दाने फीडर, पानी के बर्तन, ब्रुड, अंडे की ट्रे, चोंच काटने वाला यंत्र, टीकाकरण के लिए वैक्सीनेटर आदि।
मुर्गी का आहार
मुर्गी पालन में सबसे ज्यादा खर्च उनके दाने पर होता है। चूजों के लिए बाजार में फिनिशन और स्टार्टर राशन मिलता है। दाने में प्रोटीन और इसकी गुणवत्ता का भी ध्यान रखना जरूरी है। इसके अलावा चूजों को मक्का, सूरजमुखी, तिल, मूंगफली, जौ और गेहूँ आदि को भी दिया जा सकता है। गर्मियों के समय में मुर्गी पालन करने वाले लोगों को चाहिए कि वे मुगियों को तेज तापमान और अधिक गर्मी से बचायें। मौसम में बदलाव की वजह से मुगियों की मौत तक हो सकती है। इस वजह से मुर्गी पालन करने वालों को अधिक हानि हो सकती है। इसलिए मुर्गियों की छत को गर्मी से बचाने के लिए छत पर घास और पुआल आदि को डाल सकते है। या छत पर सफेदी करवा सकते है। सफेद रंग की सफेदी से छत ठंडी रहती है। मुर्गियों को चारा गीला करके देना चाहिए। मुर्गिया गीला दाना अधिक से अधिक खाती है। ध्यान रखें कि गीला दाना शाम तक खत्म हो जाए नहीं तो उससे बदबू आ सकती है।
मुर्गियों चूजों में बीमारियां और उनसे बचाव
मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां पाई जाती है। जैसे पुलोराम, रानीखेत, हैजा, मैरेक्स, टाईफाइड और परजीविकृमी आदि रोग होते हैं। जिससे मुर्गीपालकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। उपचार चूजों को रखने से पहले शेड को अच्छे से साफ करें। गर्मियों में चूजों के लिए पानी के बर्तनों की संख्या को बढ़ा दें। क्योंकि गर्मियों में पानी न मिलने से हीट स्ट्रोक लगने से मुर्गियों की मौत हो जाती है। जब तेज गर्मी होती है तब शेड की खिड़कियों पर टाट को गीला करके लटका दें। लेकिन इस बात का ध्यान जरूर रखें कि टाट खिड़डियों से न चिपके। गर्मियों में पानी में गुड़ और विटामिन मिलाकर मुर्गियों को देना चाहिए। मुगियों को दाना इस तरह से दें कि वह शाम तक खत्म हो जाए। अन्यथा उसे फेंक दें। यदि मुर्गियों में गर्मी के लक्षण दिखाई दे तो आप उसे उठाकार पानी में एक डुबकी लगवा दें और उन्हें छाव में रखने के बाद शेड में रख लें। इस काम को बहुत तेजी से करें। नहीं तो मुर्गी मर भी सकती है। मुर्गियों में कैल्शियम की कमी होने लगती है ऐसे में उन्हें शैल ग्रिट, चूने का पत्थर तीन से चार प्रतिशत और चाक आदि अलग से खिलाना चाहिए।
Murgi Palan Par Nibandh - मुर्गी पालन पर निबंध
भारत में मुर्गी पालन अथवा घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की यह पद्धति प्राचीन काल से प्रचलित है। इसमें प्राय: 5-20 मुर्गियों का छोटा सा समूह एक परिवार के द्वारा पाला जाता है। मुर्गी पालन के लिए उपलब्ध 11 प्रजातियों में वनराजा, ग्रामप्रिया, कृष्णा जे, नन्दनम-ग्रामलक्ष्मी प्रमुख हैं। दुनिया भर में अरबों मुर्गियों को उनके अंडे और मांस से भोजन के अच्छे स्रोत के रूप में पाला जाता है। मुर्गी पालन के लिए मुर्गी फ़ार्म की मिट्टी समय-समय पर बदलते रहना चाहिए और जिस स्थान पर रोगी कीटाणुओं की संभावना हो वहां से मुर्गियों को हटा देना चाहिए।
लोग आम तौर पर अंडे और मांस के उत्पादन के उद्देश्य से पोल्ट्री फार्म स्थापित करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र जिसमें मुर्गी पालन एक बेहतर विकल्प है, जिसे भूमिहीन कृषक भी अपनाकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। मुर्गीपालन की अपनी निम्न विशेषताएं हैं :- (1) अल्प अवधि में संतति उत्पादन क्षमता। (2) अतिशीघ्र शारीरिक वृद्धि। (3) आहार उत्पादन परिवर्तन क्षमता।
उपरोक्त विशेषताओं के कारण ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में मुर्गी पालन स्वरोजगार का एक उत्तम विकल्प है। घर के पिछवाड़े 10 - 20 मुर्गियां रख सकते हैं। मुर्गीपालन ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में आसानी से प्राकृतिक भोजन के आधार पर किया जा सकता है। जिसमें गिरे हुए दाने, कीट, केंचुए, रसोई का अपशिष्ट व हरी घास आदि खिलाकर मुर्गीपालन किया जा सकता है। ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों के लोगों की आर्थिक व भोजन की पौष्टिकता बढाने के लिए एक अच्छा विकल्प है मुर्गीपालन।
घर के पिछवाडे में मुर्गीपालन के लिए पशुपालक ग्रामप्रिया, वनराजा, रोड आइलेंड रेड व कडकनाथ आदि नस्लें पाली जा सकती है। उन्नत नस्लें पालने से अण्डा व मांस उत्पादन अधिक प्राप्त होता है। ग्रामप्रिया नस्ल अधिक अण्डा व मांस उत्पादन देती है तथा दिखने में देशी मुर्गी जैसी दिखती है। ग्रामप्रिया के मुर्गे तन्दूरी डिस बनाने के लिए उपयुक्त होती है। इस नस्ल में बीमारियों से लडने की अधिक क्षमता होती है, जिसके कारण घर के पिछवाडे में मुर्गीपालन के लिए उपयुक्त है। इस नस्ल का भार मध्यम होने के कारण यह जंगली जानवरों से भी आसानी से बच जाती है।
इस नस्ल के चूजों को 6 सप्ताह नर्सरी (ब्रूडर) में रखना पड़ता है, इसके बाद खुले छोड सकते हैं।
ग्रामप्रिया नस्ल के मुख्य लक्षण :
1- पंख विभिन्न रंग के होते हैं।
2- मध्यम भार की होती है।
3- (कल्गी) सनेकस बडे होते हैं।
4- अधिक अण्डा (200 - 230) उत्पादन।
5- भूरे रंग की सेल का अण्डा उत्पादन ।
6- जंगली जानवरों से कम खतरा।
बूडिंग :- मुर्गीपालन के लिए 6 सप्ताह तक ब्रूडिंग अति आवश्यक है।
बूडर :- साफ व स्वच्छ धान की पुआल, मुंगफली का छिलका, लकड़ी का बुरादा आदि का 2-3 इंच मोटाई में बिछावन (लीटर) बिछा देनी चाहिए तथा तापक्रम बनाये रखने के लिए 2 वाट/चूजा, 4 - 6 सप्ताह तक बल्ब या गैसबत्ती जलाकर रखना चाहिए। यदि वातावरण का तापमान अधिक होता है, तो चूजे तापमान स्रोत से दूर चले जाते हैं और कम होता है तो चूजें तापमान स्रोत के पास आ जाते हैं। सही तापमान होने पर चूजे आसपास घूमते रहते है।
घर के पिछवाडे में आवास प्रबन्धन :- 6 से 7 सप्ताह में चूजों का भार लगभग 400 - 500 ग्राम हो जाता है। उसके बाद उनको नर्सरी से निकालकर घर के पिछवाडे में खुला छोड़ देते है। मुर्गीपालक 10 - 20 मुर्गियाँ क्षेत्र व प्राकृतिक भोजन की उपलब्धता अनुसार रख सकते हैं। दिन में मुर्गियों को खुला छोड दे तथा रात्रि के समय में मुर्गीखाने में रखें । मुर्गीखाने से मुर्गियां छोड़ने से पहले स्वच्छ जल अवश्य दें।
आहार :- चूजों को संतुलित आहार में दाने के साथ खनिज मिश्रण, विटामिन्स, एण्टीमाइक्रोबीयल व एण्टीकोक्सीडियल की आवश्यकता होती है। मुर्गियों को खुला छोड़ने से मुर्गियाँ अपना भोजन उपलब्ध घास, सब्जी व कीटो से करती है। इससे मुर्गियाँ प्रोटीन की पूर्ति तो कर लेती हैं, लेकिन ऊर्जा की पूर्ति नही हो तो घर में उपलब्ध दाने जैसे बाजरा, मक्का, ज्वार, चावल, रागी आदि देना चाहिए। अण्डों को टूटने से बचाने के लिए कैल्शियम के कंकड 3 - 4 ग्राम प्रति पक्षी प्रतिदिन देना चाहिए। मुर्गी को अलग से संतुलित आहार देकर मांस के लिए सघन पद्धति से पालना चाहिए।
स्वास्थ्य प्रबन्धन :- मुर्गियों में स्वास्थ्य प्रबंधन का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इसलिए समय-समय पर टीकाकरण करवाना चाहिए तथा डिवर्मिंग के लिए हर 4 महीने पर कृमिनाशक दवा पिलानी चाहिए। ग्रामप्रिया नस्ल को सामान्य बीमारियों जैसे - रानीखेत, आई. बी. डी., फाऊल पोक्स आदि बीमारियों की सुरक्षा के लिए टीकाकरण की आवश्यकता होती है। इस प्रकार किसान भाई कम लागत से घर के पिछवाडे में मुर्गीपालन करके अपने भोजन में पोषक तत्वों का समावेश कर कुपोषण से बच सकते हैं, तथा अपनी आर्थिक स्थिति भी सुधार सकते हैं।
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