रेलगाड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध। Autobiography of Train in Hindi
मेरा नाम रेलगाड़ी है। जॉर्ज स्टीफेंसन मेरे आविष्कारक थे। यूरोप मेरी जन्मभूमि है। मैं लौह पथ गामिनी हूं। अनेक दशकों तक केवल कोयला ही मेरा भोजन था, पानी मेरे प्राण तथा भांप मेरी सकती थी। वैज्ञानिक अनुसंधानों की प्रगति ने मेरी शक्ति के साधन बदले। मैं डीजल और बिजली द्वारा भी जीवन शक्ति ग्रहण करने लगी हूं।
भारत में मेरा आगमन 16 अप्रैल 1853 को हुआ। इस शुभ दिन में 400 यात्रियों को लेकर मुंबई से थाना के लिए चली थी। आज 147 वर्ष बाद मेरा यौवन विकसित हुआ है। भाप, डीजल तथा बिजली तीनों की सहायता लेकर में यात्रियों की सेवा कर रही हूं। भारत में ना केवल मेरा तेजी से विस्तार हुआ है अपितु मेरी प्रौद्योगिकी में भी उल्लेखनीय विकास हुआ है। आज लगभग मेरे 10800 प्रति रूट 7 लाख से अधिक यात्रियों और 5.5 लाख सामान को लगभग 7 हजार रेल स्टेशनों तक पहुंचाने की सेवा में लगे हुए हैं।
मूलतः मैं लोहे से निर्मित हूं और लौह चक्रों से पथ पर चलती हूं। मेरे डिब्बे लकड़ी की कारीगरी का कौशल है। मैं विद्युत शक्ति से विभूषित हूं और गद्देदार सीटों से अलंकृत हूं।
मेरा प्रत्येक टिब्बा वैज्ञानिक तथ्यों के सदुपयोग का प्रमाण है। स्थान का सदुपयोग करना कोई मुझ से सीखे। पूरे परिवार के लिए जो कुछ अनिवार्य है, एक डिब्बे में सभी कुछ प्राप्त है बैठने के लिए बर्थ, सामान रखने अथवा विश्राम के लिए टॉड, वैंटिलेटेड विंडोज, प्रकाश के लिए बल्ब, हवा के लिए पंखे, शौचालय तथा हाथ मुंह धोने के लिए बेसिन वास। इन सब के अतिरिक्त आपातकाल में मेरी गति अवरुद्ध करने के लिए हर डिब्बे में खतरे की जंजीर भी है।
गति के अनुसार मेरे तीन रूप है पैसेंजर, मेल, सुपरफास्ट। इसी के अनुसार मेरे डिब्बों के भी तीन विभाग हैं- द्वितीय श्रेणी, प्रथम श्रेणी, वातानुकूलित। बर्थ व्यवस्था भी तीन प्रकार की है- सार्वजनिक व्यवस्था, 4 या 6 यात्रियों की सामूहिक व्यवस्था तथा एक कमरा व्यवस्था। इसी प्रकार मेरा शुल्क भी तीन रूपों में है पैसेंजर का कम, मेल का लगभग डेढ़ गुना तथा सुपरफास्ट का लगभग ढाई गुना। अब तो राजधानी एक्सप्रेस, ताज एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस जैसी तीव्रगामी और सब प्रकार की सुविधाओं से संपन्न मेरे रूप भी बन चुके हैं। इनसे यात्रियों के समय की पर्याप्त बचत हो जाती है।
भारत में मेरा रूप एशिया में सर्वाधिक विराट है तो विश्व में विराटता की दृष्टि से मेरा चौथा स्थान है। मेरे रेल पथ की लंबाई मात्र भारत में 160307 किलोमीटर है इसमें 81121 किलोमीटर बड़ी लाइन है तो 22200 किलोमीटर छोटी लाइनें हैं।
मेरी प्रस्थान करने तथा ठहरने के स्थान निश्चित है। इन्हें स्टेशन कहते हैं। स्टेशन विभिन्न प्रकार के हैं छोटे ग्रामीण स्टेशन मार्ग बड़े नगरीय स्टेशन तथा महान महानगरीय स्टेशन। ये स्टेशन मेरी व्यवस्था, सुरक्षा के लिए उत्तरदायी हैं। स्टेशनों के 4 भाग होते हैं- बाहरी प्रांगण, प्रवेश प्रांगण, प्लेटफार्म तथा पटरी। हर जंक्शन पर मेरे पहियों की देखभाल होती है, मुझे पानी दिया जाता है, हर विशिष्ट अवयव की जांच होती है।
मैं समय की पाबंद हूं। समय की पाबंदी को कोई मुझ से सीखे। मेरी गति घड़ी की सुइयों को खुले नेत्रों से देखती रहती है। आप 1 सेकंड विलंब से स्टेशन पहुंचे, में प्लेटफार्म छोड़ रही होती हैं। यात्रा करते हुए आप किसी स्टेशन पर पानी पीने या जलपान करने के लिए उतरे और आपने मेरी चेतावनी की उपेक्षा करके एक क्षण का विलंब कर दिया तो मैं आपकी प्रतीक्षा नहीं करूंगी आपको चाहे कितनी भी हानी उठानी पड़े। किसी भी स्टेशन पर अफरा-तफरी में चढ़ ना सके या गंतव्य पर उतर ना सके तो मुझे क्षमा कर देना क्योंकि मैं आपको 6 बार चेतावनी देती हूं दो बार सिटी बजाकर और दो बार हरी झंडी दिखाकर मेरा अंगरक्षक कार्ड आपको सावधान करता है तथा दो बार मैं सिटी मारती हूं। मेरे लिए टाइम की कीमत है। मैं जानती हूं कि मुंह से निकले शब्द और समय कभी वापस नहीं बुलाई जा सकते। तथा जो वक्त की जरूरतों को पूरा नहीं करते वक्त उन्हें बर्बाद कर देता है।
मैं सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष हूं। सभी जाति, धर्म, संप्रदाय तथा प्रांत के लोग मेरी सवारी करते हैं। एक साथ बैठते हैं। कोई किसी से नफरत नहीं करता। मेरी स्टेशन का सांप्रदायिकता के जीवन प्रतीक हैं। धर्म विशेष के कारण किसी को कोई रियायत नहीं, किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं।
जीवन व्यवस्था में जहां मेरा महत्वपूर्ण स्थान है वहां मैं अत्यंत शक्तिशाली भी हूं। जो मुझ से टकराता है चूर-चूर हो जाता है। मुझे कोई हानि नहीं पहुंचती। कोई भी वाहन मेरे सामने चींटी की तरह है। जीवन और जगत से निराश मानव आत्महत्या करने मेरे सामने आते हैं। कभी-कभी मेरी दो बहने रेलों की टक्कर यात्रियों का रूप विकृत कर देती हैं और उन्हें यमलोक पहुंचा देती हैं।
भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता आज के भौतिकवादी युग की सबसे बड़ी विकृतियां है। उस की काली छाया ने मेरे स्वरूप को विकृत करने में वितरित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चोरी, डकैती, हत्या मेरे सौंदर्य को बिगाड़ रहे हैं तो मेरे डिब्बों में शीशे, पंखे, गद्दे की चोरी, कोयला डीजल की चोरी मेरी काया को क्षीण कर रहे हैं। कार्य में प्रमाद करने, कार्य के प्रति उपेक्षा भाव या असावधानी के कारण रेलों की टक्कर कराने वाले अधिकारी लोग मेरी निंदा करने पर तुले हुए हैं।
0 comments: