प्रश्न पत्र की आत्मकथा पर निबंध Autobiography of Question Paper in Hindi : परीक्षा और प्रश्न पत्र परीक्षार्थियों योगिता की कसौटी है। प्रश्न पत्र को सही हल करने वाला व्यक्ति सफल माना जाता है और प्रश्न पत्र को ना हल कर सकने वाला अयोग्य अथवा असफल घोषित कर दिया जाता है। यही कारण है कि परीक्षा प्रश्न पत्र का सामना करते हुए सब विद्यार्थी घबराते हैं अपनी घबराहट को दूर करने तथा अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करने के लिए विद्यार्थी परीक्षा से पहले पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र अवश्य देखते हैं। मुझे डी.ए.वी. कॉलेज देहरादून के प्रोफेसर गणेश शर्मा शास्त्री ने बनाया था। उन्होंने पहले मेरा एक मॉडल तैयार किया। एक कागज पर 20 प्रश्न लिखे। फिर उन्हें अनेक बार संशोधन किया। सचमुच मैं भी उस समय परीक्षा के लिए सिरदर्द बना हुआ था। अंत में मेरी रूपरेखा तैयार हो गई और मुझे एक साफ कागज पर सुंदरता के साथ लिखा गया। तक मुझे रजिस्टर्ड डाक से यूनिवर्सिटी में भेजा गया और वहां से मैं पहुंचा प्रेस में पहुंचा मेरे अन्य साथी भी मौजूद थे।
परीक्षा और प्रश्न पत्र परीक्षार्थियों योगिता की कसौटी है। प्रश्न पत्र को सही हल करने वाला व्यक्ति सफल माना जाता है और प्रश्न पत्र को ना हल कर सकने वाला अयोग्य अथवा असफल घोषित कर दिया जाता है। वास्तव में अनेक बार तो यह भी देखा जाता है कि एक साधारण योग्यता का व्यक्ति अपने अनुकूल प्रश्न पूछे जाने के कारण प्रश्न पत्र को पूरी तरह हल कर लेता है और एक अत्यंत योग्य व्यक्ति उसी प्रश्न पत्र को नहीं हल कर पाता है या आंशिक रूप से हल कर पाता है। यही कारण है कि परीक्षा प्रश्न पत्र का सामना करते हुए सब विद्यार्थी घबराते हैं अपनी घबराहट को दूर करने तथा अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करने के लिए विद्यार्थी परीक्षा से पहले पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र अवश्य देखते हैं।
परीक्षा की तैयारी में लगे हुए परीक्षार्थी पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र देख रहे थे। उन्हें एक प्रश्न बहुत कठिन मालूम हुआ। वे उसकी आलोचना करने लगे और गालियां देने लगे। एक परीक्षार्थी ने परीक्षा प्रश्न पत्र को उठाकर फेंक दिया। कुछ परीक्षार्थी फिर पढ़ने में लग गए तभी उस दिशा से प्रश्न पत्र फेंका गया था आवाज सुनाई देने लगी। परीक्षार्थी ने देखा, मालूम हुआ जैसे प्रश्नपत्र कुछ कह रहा है। वे ध्यान से सुनने लगे। प्रश्नपत्र कह रहा था-
प्यारे परीक्षार्थियों। कितना आश्चर्य है कि कठिन होने के कारण तुम मुझे गालियां दे रहे हो। जरा सोचो इसमें मेरा क्या दोष है? मैं तो वही हूं जो परीक्षक ने बना दिया था। तक तुम मेरे बजाय परीक्षक को क्यों नहीं कोसते? शायद तुम मेरी कहानी सुनकर आगे इस बात का ध्यान रख सको। इसलिए मैं तुम्हें अपनी आत्मकथा सुनाता हूं।
मुझे डी.ए.वी. कॉलेज देहरादून के प्रोफेसर गणेश शर्मा शास्त्री ने बनाया था। उन्होंने पहले मेरा एक मॉडल तैयार किया। एक कागज पर 20 प्रश्न लिखे। फिर उन्हें अनेक बार संशोधन किया। सचमुच मैं भी उस समय परीक्षा के लिए सिरदर्द बना हुआ था। अंत में मेरी रूपरेखा तैयार हो गई और मुझे एक साफ कागज पर सुंदरता के साथ लिखा गया। तक मुझे रजिस्टर्ड डाक से यूनिवर्सिटी में भेजा गया और वहां से मैं पहुंचा प्रेस में पहुंचा मेरे अन्य साथी भी मौजूद थे। हमें पाकर प्रेश के कर्मचारी बहुत गर्व का अनुभव कर रहे थे। वे सोचते थे कि यदि हमारे प्रश्नों को बाहर बता दे अर्थात आउट कर दें तो हजारों परीक्षार्थियों की किस्मत बदल सकती है और वे भी बहुत धन कमा सकते हैं किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया कारण वे इसे पाप समझते थे।
प्रेस में मुझे अन्य साथियों सहित बड़ी सावधानी एवं गोपनीयता के साथ रखा गया। यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है कि परीक्षा के दिन से पहले तक मुझे गुप्त रखा जाता है। मेरे संबंध में पूरी जानकारी मेरा निर्माण करने वाले परीक्षक के अतिरिक्त और किसी को नहीं होती। जिस प्रेस में हमें जहां छापा जाता है उसके कर्मचारियों को इस बात के लिए वचनबद्ध किया जाता है कि वह मेरे बारे में कोई बात बाहर नहीं निकलने देंगे। प्रेस में मैंने एक और बात अनुभव की और वह यह कि मुझे मुद्रित रूप देते हुए भी बहुत सावधानी बरती गई। दो व्यक्तियों ने मेरी प्रूफ की त्रुटियां दूर की। यह दोनों यही कहते थे कि प्रश्नपत्र में कोई अशुद्धि नहीं रहनी चाहिए क्योंकि प्रश्नपत्र की एक अशुद्धि हजारों परीक्षार्थियों का अहित कर सकती है।
अब मैं छप कर तैयार हो गया था। मेरे साथ मेरे ही जैसे हजारों साथी और भी तैयार किए गए। हमें बंडलों में बांधकर फिर यूनिवर्सिटी भेज दिया गया जहां से हम समय पर परीक्षा केंद्रों में पहुंचाए गए। यहां बंद बंडल में मेरा दम घुट रहा था। एक दिन हमारे बंडल खुलने की बारी आई और मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जब परीक्षा भवन के व्यवस्थापक ने निरीक्षकों के सामने हमारा बंडल खोला तो बहुत दिनों के बाद मुझे खुली हवा में सांस लेने का अवसर मिला। मैंने इसके लिए भगवान को धन्यवाद दिया।
अब हमें परीक्षा विद्यार्थियों में बांटा जाने लगा। आपस में बिछड़ने का हमें बड़ा दुख हो रहा था किंतु हम भी क्या कर सकते थे? मैं एक मंत्री महोदय की सुपुत्री के हाथ में गया। भाग्य की बात है कि वह लड़की प्रश्नों को तैयार करके आई थी जो परीक्षा में पूछे गए थे। लड़की ने मुझे पढ़ा वह खुशी से झूम उठी और उसने मुझे चूमा, वह मेरी मन-ही-मन प्रशंसा कर रही थी।
विद्यार्थियों अब तुम सोच रही होगी कि हम भी प्रश्न पत्र क्यों नहीं बन गए किंतु ऐसा नहीं सोचना चाहिए। यह तो भाग्य की बात है मेरे दूसरे साथी जो उन परीक्षार्थियों के हाथ में गए जिनकी तैयारी नहीं थी और प्रश्न पत्र को कठिन समझ रहे थे, उनके साथ क्या बीती होगी इसका भी अनुमान करो। उनमें से कुछ को तो खूब निरादर का सामना करना पड़ा होगा, गालियां सुननी पड़ी होगी और कुछ तो शायद टुकड़े टुकड़े करके फाड़ डाले गए होंगे। सोचो जिनकी यह दुर्दशा हुई होगी उन्हें कितना दुख हुआ होगा।
हां तो उक्त लड़की ने खुशी-खुशी सारे प्रश्नों के उत्तर लिखें। समय समाप्त होने पर परीक्षा भवन से बाहर आई और उछलती कूदती घर पहुंची। आज वह खुशी के मारे पागल हो रही थी। उसके शिक्षक ने उसका प्रश्न पत्र देखा तो वे भी प्रसन्न हुए। लड़की ने एक बार फिर मेरा गुणगान किया और पुस्तकों में रख दिया।
प्यारे विद्यार्थियों। पुस्तकों के ढेर में से आज मैं तुम्हारे हाथ लगा और अपमानित हुआ। आगे भी मुझे मान और अपमान मिलते रहेंगे किंतु मैं समझता हूं कि मेरा मान अपमान मेरी अपेक्षा विद्यार्थी के ज्ञान पर अधिक निर्भर करता है।
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