सुभद्राकुमारी चौहान का जीवन परिचय कृतियाँ व साहित्यिक परिचय
सुभद्राकुमारी चौहान को स्वतंत्रता-संग्राम की सक्रिय सेनानी, राष्ट्रीय चेतना की अमर गायिका तथा
वीर रस की एकमात्र हिंदी कवयित्री कहा
जाता है। इनकी कविताओं में सच्ची वीरांगना का ओज एवं शौर्य प्रकट होता है। सुभद्रा
जी एकमात्र ऐसी कवयित्री हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से
भारतीय युवा वर्ग को युग-युग की अकर्मण्य उदासी को त्यागकर स्वतंत्रता संग्राम में स्वयं को पूर्णत: समर्पित कर देने के
लिए प्रेरित किया। डॉ़ राजेंद्र प्रसाद ने सुभद्राकुमारी चौहान एवं उनके काव्य की प्रशंसा में लिखा है, ‘‘आधुनिक कालीन कवयित्रियों में सुभद्रा जी का प्रमुख स्थान है। उनकी ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक कविता सर्वाधिक लोकप्रिय है और उसे जो प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह अनेक बड़े-बड़े महाकाव्यों को भी प्राप्त न हो सकी।’’
जीवन परिचय : राष्ट्र-प्रेमी सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म उत्तर प्रदेश के
इलाहाबाद जनपद के निहालपुर नामक ग्राम में सन् 1904 ई. में हुआ था।
इनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा क्रॉस्थवेट गर्ल्स
कॉलेज में हुई। इनकी बचपन से ही हिंदी काव्य में
अत्यधिक रुचि थी। मात्र पंद्रह वर्ष की आयु में इनका विवाह मध्य प्रदेश के खंडक नामक स्थान के निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ संपन्न हुआ।
विवाह के पश्चात् इनका जीवन पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया। विवाह के पश्चात् गाँधी जी के संपर्क में आने पर
ये उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुईं और इन्होंने अपने अध्ययन कार्य को भी त्याग दिया तथा देश-सेवा के लिए
तत्पर हो गईं। इसके पश्चात् इन्होंनें अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया और इसी कारण इन्हें अनेक बार
जेल की यात्रा भी करनी पड़ी। उसी समय सुभद्रा जी की भेंट पं. माखनलाल चतुर्वेदी से हुई। चतुर्वेदी जी के
प्रोत्साहन के फलस्वरूप इन्होंने काव्य रचना प्रारंभ की। देशभक्ति भाव से युक्त इनकी कविताएँ सहज ही प्रत्येक व्यक्ति को
ओजस्विता से युक्त कर देती थीं। सुभद्रा जी की ‘झाँसी की रानी’ और ‘वीरों का वैसा हो वसंत’ शीर्षक कविताएँ आज भी लाखों युवकों के
हृदय में वीरता की ज्वाला उत्पन्न कर देती हैं। इसी कारण इन्हें ‘राष्ट्र चेतना की अमर गायिका’ भी कहा जाता है। सन् 1948 ई. में एक मोटर-दुर्घटना में सुभद्रा जी की असामयिक मृत्यु हो गई।
साहित्यिक एवं काव्यगत सौंदर्य : राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित काव्य के
सृजन के साथ ही सुभद्रा जी ने वात्सल्य भाव पर आधारित कविताओं की भी रचना की। इन
कविताओं में सुभद्रा जी का नारी-सुलभ मातृ-भाव दर्शनीय है। इनकी राष्ट्रीय भावनाओं
पर आधारित कविताओं में देशभक्ति, अपूर्व साहस तथा आत्मोसर्ग की भावना चित्रित होती है। इनके द्वारा
रचित कविताओं के माध्यम से ऐसा प्रतीत होता है, कि इन्हें जेल-जीवन की संपूर्ण
यातनाओं को हँसते-खेलते, सुखपूर्वक सहन करने में आनंद प्राप्त होता था।
कृतियाँ : सुभद्राकुमारी जी ने हिंदी साहित्य में लेखन का कार्य कवयित्री के
रूप में प्रारंभ किया, किंतु इन्होंने अपने प्रौढ़ गद्य-लेखन द्वारा हिंदी भाषा को
सजाने-संँवारने तथा अर्थ-गाम्भीर्य प्रदान करने में जो प्रयत्न किया है, वह भी प्रशंसनीय है। सुभद्रा जी
द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
(अ) काव्य-संग्रह : मुकुल, त्रिधारा
(ब) कहानी-संग्रह : सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती, उन्मादिनी आदि
सुभद्रा जी को ‘मुकुल’ काव्य-संग्रह एवं ‘बिखरे मोती’ कहानी-संग्रह पर ‘सेकसरिया पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
भाषागत विशेषताएँ : सुभद्राकुमारी जी ने अपनी रचनाओं में
मुख्य रूप से शुद्ध, साहित्यिक खड़ीबोली भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने विषय के अनुसार
अनेक स्थानों पर तद्भव शब्दों का भी प्रयोग किया है तथा कुछ स्थानों पर मुहावरों
एवं लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया गया है। इनकी रचनाओं में किसी भी वाक्य में
अस्पष्टता के दर्शन नहीं होते हैं। इनकी रचना-शैली में ओज, प्रसाद और माधुर्य भाव से युक्त गुणों
का समन्वित रूप देखने को मिलता है। राष्ट्रीयता पर आधारित इनकी कविताओं में सजीव
एवं ओजपूर्ण संगीतात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। सुभद्रा जी की रचनाएँ उनके द्वारा
विषय के अनुरूप भाषा एवं शैली का प्रयोग करने के कारण ही पाठकों पर प्रभाव उत्पन्न
करने में सक्षम रही हैं। इन्होंने अपनी काव्य-रचनाओं में मुख्यत: वीर एवं वात्सल्य
रस का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में अलंकारों का प्रयोग बहुत कम देखने को मिलता
है। छंद के रूप में सुभद्रा जी ने तुकांत मुक्त-छंदों का प्रयोग किया है।