मंगल पांडे का जीवन परिचय व इतिहास | Mangal Pandey Biography in Hindi : मंगल पाण्डे का जन्म 19 जुलाई 1827 में बलिया जनपद में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। वे बहुत ही साधारण परिवार के थे। वे अपने माता-पिता का बहुत आदर और सम्मान करते थे। मंगल पाण्डे जैसे शान्त व सरल स्वभाव के व्यक्ति प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के प्रथम योद्धा कैसे बने, इसके पीछे एक कहानी है। एक दिन मंगल पाण्डे सेना का मार्च देखने के लिए कौतूहलवश सड़क के किनारे आकर खड़े हो गए। सैनिक अधिकारी ने इन्हें हृष्टपुष्ट और स्वस्थ देखकर सेना मेें भर्ती हो जाने का आग्रह किया और वे राजी हो गए। वे 10 मई 1849 ई0 को 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना में भर्ती हुए।
मंगल पांडे का जीवन परिचय व इतिहास | Mangal Pandey Biography in Hindi
भूमिका : कोलकाता में हुगली नदी के किनारे बैरकपुर नगर में अंग्रेज सेना की बंगाल छावनी थी। सेना की वर्दी में सिपाही परेड करते रहते थे। यहीं एक बहुत शान्त और गंभीर स्वभाव के सिपाही की भर्ती हुई थी। उन्हें केवल सात रुपये महीना वेतन मिलता था। उनके एक सिपाही मित्र ने एक दिन कहा, ’’अरे! अधिक धन कमाना है तो अपना देश छोड़कर अंग्रेज सेना में भर्ती हो जाइए।’’ उस सिपाही ने उत्तर दिया-’’नहीं, नहीं! मैं अधिक धन कमाने के लालच में अपना देश छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।’’
जब वे बंगाल छावनी में थे तब एक दिन सिपाही ने बताया कि ऐसी चर्चा है कि बंदूक में जो कारतूस भरने के लिए दी जाती हैं उसके खोल में गाय और सुअर की चर्बी लगी है। कारतूस भरने के पहले उन्हें मुँह से खींच कर खोलना पड़ता था। यह हिन्दुओं व मुसलमानों दोनों के लिए धर्म के विरुद्ध कार्य था। इस सूचना से सभी सिपाहियों के हृदय में घृणा भर गई। उसी रात बैरकपुर की कुछ इमारतों में आग की लपटें देखी गईं। वह आग किसने लगाई थी, कुछ पता न चल सका। बन्दूक की कारतूस में गाय व सुअर की चर्बी होने की बात सैनिक छावनियों तक ही सीमित नहीं रहीं बल्कि सारे उत्तर भारत में फैल गई। सभी स्थानों में इसकी चर्चा होने लगी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नीतियों को लेकर भारतीयों में असंतोष की भावना पहले से ही थी इस खबर ने आग में घी का काम किया। बैरकपुर छावनी में भारतीय सैनिकों ने संघर्ष छेड़ दिया। देश के लिए अपने निजी स्वार्थ को त्यागने वाला देशभक्त सिपाही प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के प्रथम योद्धा बने। इस सिपाही का नाम मंगल पाण्डे था।
जीवन परिचय : मंगल पाण्डे का जन्म 19 जुलाई 1827 में बलिया जनपद में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। वे बहुत ही साधारण परिवार के थे। वे अपने माता-पिता का बहुत आदर और सम्मान करते थे। मंगल पाण्डे जैसे शान्त व सरल स्वभाव के व्यक्ति प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के प्रथम योद्धा कैसे बने, इसके पीछे एक कहानी है।
एक दिन मंगल पाण्डे सेना का मार्च देखने के लिए कौतूहलवश सड़क के किनारे आकर खड़े हो गए। सैनिक अधिकारी ने इन्हें हृष्टपुष्ट और स्वस्थ देखकर सेना मेें भर्ती हो जाने का आग्रह किया और वे राजी हो गए। वे 10 मई 1849 ई0 को 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना में भर्ती हुए।
गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस की घटना: 19 नवम्बर को बैरकपुर की पलटन को नये कारतूस प्रयोग करने के लिए दिए गए। सिपाहियों ने उन्हें प्रयोग करने से इनकार कर दिया। अंग्रेज अधिकारियों ने तुरन्त ही उस पलटन के हथियार रखवा लिए और सैनिकों को बर्खास्त कर दिया। कुछ ने तो चुपचाप हथियार अर्पित कर दिए किन्तु अधिकतर सैनिक क्रान्ति के लिए तत्पर हो उठे। 29, मार्च 1857 ई0 को परेड के मैदान में मंगल पाण्डे ने खुले रूप में अपने साथियों के समक्ष क्रान्ति का आह्वान किया।
मंगल पांडे का विद्रोह : मंगल पाण्डे के क्रांति से सम्बन्धित इस आह्वान को सुनते ही अंग्रेज सार्जेण्ट मेजर ह्यूसन ने लेफ्टिनेन्ट एड्जूडेन्ट बाग को बुलाने का आदेश दिया। लेफ्टिनेन्ट बाग घोड़े पर सवार होकर घटना स्थल पर पहुँच गया। मंगल पाण्डे ने बाग पर गोली चला दी। पाण्डे की इस गोली से बाग तो बच गया किन्तु उसका घोड़ा घायल हो गया। घोडे़ के घायल होने से लेफ्टिनेन्ट बाग जमीन पर गिर गया किन्तु पलभर में ही एड्जूडेन्ट बाग तलवार निकाल कर खड़ा हो गया। इसी समय बाग की सहायता के लिए सार्जेन्ट ह्यूसन भी वहाँ पहुँच गया। मंगल पाण्डे ने भी अपनी तलवार निकाल ली। दोनो में घमासान तलवार युद्ध होने लगा। अन्त में मंगल पाण्डे की तलवार से लेफ्टिनेन्ट एड्जूडेन्ट बाग धराशायी हो गया। अंग्रेज अधिकारियों में दहशत फैैल गई। अन्त में जनरल हीयरसे ने चालाकी से मंगल पाण्डे के पीछे से आकर उसकी कनपटी पर अपनी पिस्तौल तान दी। जब उन्होंने अनुभव किया कि अंग्रेजों से बचना मुश्किल है, तब उन्होंने अंग्रेजों का कैदी बनने के बजाय स्वयं को गोली मारना बेहतर समझा और अपनी छाती पर गोली चला दी, लेकिन वे बच गए और मूर्छित होकर गिर पड़े। अन्त में घायलावस्था में उन्हें गिरफ्तार किया गया।
मंगल पाण्डे को फांसी की सजा : मंगल पाण्डे पर सैनिक अदालत में मुकदमा चला। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। 8 अप्रैल का दिन फाँसी के लिए नियत किया गया किन्तु बैरकपुर भर में कोई भी मंगल पाण्डे को फाँसी देने के लिए राजी न हुआ। अन्त में कोलकाता से चार आदमी इस काम के लिए बुलाए गए। 8 अप्रैल 1857 ई0 को अंग्रेजों ने पूरी रेजीमेण्ट के सामने मंगल पाण्डे को फाँसी दे दी।
अंग्रेज लेखक चार्ल्स बॉल और लार्ड राबर्ट्स दोनों ने लिखा है कि उसी दिन से सन् 1857-58 के समस्त क्रांतिकारी सिपाहियों को ’पाण्डे’ के नाम से पुकारा जाने लगा। मंगल पाण्डे के इस बलिदान से क्रान्ति की अग्नि और भड़क उठी। उसकी लपटें सारे देष में फैल गई।
एक अंग्रेज लेखक मार्टिन ने लिखा है.........
’’मंगल पाण्डे को जब से फाँसी दे दी गयी है तब से समस्त भारत की सैनिक छावनियों में जबर्दस्त विद्रोह प्रारम्भ हो गया है।’’
एक बड़ी क्रान्ति का शुभारम्भ : बैरकपुर के अलावा मेरठ, दिल्ली, फिरोजपुर लखनऊ, बनारस, कानपुर एवं फैजाबाद आदि स्थानों पर भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किया जो 1857 ई0 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्रान्ति का नेतृत्व बहादुरशाह जफर, नाना साहब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, राजा कुँवर सिंह, मौलवी लियाकत अली, बेगम जीनत महल और बेगम हजरत महल जैसे नेताओं ने अलग-अलग स्थानों पर किया। इस संग्राम का परिणाम यह हुआ कि भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन सदैव के लिए समाप्त हो गया।
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