महात्मा बुद्ध की जीवनी। Mahatma Buddha Biography in Hindi : बहुत समय पहले नेपाल की तराई में शुद्धोधन नाम के प्रसिद्ध राजा थे। उनके पुत्र का नाम सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) था। सिद्धार्थ सात दिन के ही थे जब उनकी माता महामाया का देहान्त हो गया। उनका लालन-पालन उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) को विद्वान द्वारा सभी प्रकार की शिक्षा दी गई। गौतम बुद्ध कहते थे कि दूसरों की भलाई करो। परोपकारी से मित्रता करो। दया, स्नेह और करूणा अपनाओ। स्नेहपूर्ण हृदय सबसे बड़ा धन है।
महात्मा बुद्ध की जीवनी। Mahatma Buddha Biography in Hindi
जन्म
|
ईसवी पूर्व 563;
लुंबिनी, नेपाल
|
पिता
|
शुद्धोधन
|
माता
|
मायादेवी
|
पत्नी
|
यशोधरा
|
धर्म
|
बौद्ध धर्म
|
बहुत समय पहले नेपाल की तराई में शुद्धोधन नाम के प्रसिद्ध राजा थे। उनकी राजधानी कपिलवस्तु थी। उनके पुत्र का नाम सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) था। सिद्धार्थ सात दिन के ही थे जब उनकी माता महामाया का देहान्त हो गया। उनका लालन-पालन उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) को विद्वान द्वारा सभी प्रकार की शिक्षा दी गई। वे तीक्ष्णबुद्धि के थे, जो पढ़ते याद हो जाता। वे क्षत्रिय थे और राजा के पुत्र भी। अतः उन्हें युद्ध के सभी कौशल सिखाए गए। अभ्यास हेतु, उन्हें शिकार के लिए वन भी भेजा जाता था। वे बड़े संवेदनशील थे- शिकार करने के बजाय वे सोचते- कि क्या पशु-पक्षियों को मारना ठीक है? पशु-पक्षी तो बोल भी नहीं सकते। उनका विचार था, कि ‘जिसे मैं जीवन नहीं दे सकता उसका जीवन लेने का मुझे क्या अधिकार है?’ वे बिना शिकार किए ही लौट आते।
एक बार उन्होंने एक हिरन की ओर निशाना साधा। सहसा उनकी दृष्टि पास खड़ी उसकी माँ पर पड़ गई। माँ की बड़ी-बड़ी आँखों में तैरते दया याचना के भावों ने उनकी आत्मा को द्रवित कर दिया। वे तीर नहीं चला सके और लौट आए।
बालक सिद्धार्थ जिज्ञासु प्रकृति के थे। उनके व्यवहार में अनोखापन था। विद्वानों ने भविष्यवाणी की थी कि वे एक दिन अपना घर-बार त्याग कर संन्यासी हो जाएंगे। वे संसार को मानवता की शिक्षा देंगे। वे संन्यासी न हो जाएं इसलिए उनके पिता ने यशोधरा नाम की एक सुन्दर कन्या से उनका विवाह कर दिया। सिद्धार्थ ने इसे बन्धन माना। पुत्र राहुल हुआ जिसे उन्होंने बन्ध कसाव समझा। पिता ने बहुत प्रयत्न किया कि गृहस्थ जीवन में उनका मन लगे परन्तु सिद्धार्थ का मन कभी भी परिवार और राजकाज में नहीं लगा।
एक दिन सिद्धार्थ नगर-भ्रमण के लिए जा रहा था। मार्ग में उन्हें एक वृद्ध मिला उसकी आँखें धँसी थीं। चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ी थीं। वह लाठी के सहारे चल रहा था। मनुष्य की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। पूछने पर उन्हें सारथी ने बताया कि वृद्ध होने पर सब की यही दशा होती है। उन्हें बहुत दुःख हुआ। एक दिन शिकार पर जाते समय उन्होंने देखा कि चार लोग एक मृत व्यक्ति को ले जा रहे हैं, फिर उन्हें बताया गया कि वह व्यक्ति मर गया है। सबको एक दिन मरना है। सिद्धार्थ ने ऐसी घटनाएँ देखीं कि उनका मन न घर में लगता न वन-उपवन में। वे सोचते रहते मनुष्य को इतने कष्ट क्यों भोगने पड़ते हैं ? क्या इनसे छुटकारा मिल सकता है ?
एक दिन जब महल के सब लोग सो रहे थे, सिद्धार्थ उठे। वे अपनी पत्नी और नन्हे मुन्ने पुत्र की ओर गए। वहाँ उन्होंने कक्ष में रखे दीपक के प्रकाश में नींद में डूबे उन चेहरों को देखा। एक क्षण को मन में कमजोरी आई परन्तु तुरन्त ही वे सँभल गए। वे कक्ष के बाहर आए। उन्होंने सेवक को साथ लिया और शीघ्र ही वे घोड़े पर सवार होकर महल से दूर निकल कर एक स्थान पर रुके। वहाँ राजसी वस्त्र उतारकर उन्होंने सेवक को दिए और सादे कपड़े पहन लिए। उन्होंने घोड़ा लेकर सेवक से वापस जाने को कहा। साथ यह भी कहला दिया कि अब मैं सत्य की खोज करके ही लौटूँगा। इस समाचार से महल में कोहराम मच गया। ऐश्वर्य का जीवन बिताने वाला राजकुमार अब लोगों के दिये हुए दानों पर जीवन बिताने लगा। क्योंकि अब वह सत्य की खोज में लगा था।
संन्यासी की भाँति सिद्धार्थ जगह-जगह घूमते रहे। कुछ दिन बाद वे बोधगया पहुँचे और ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प लेकर एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। छः वर्ष की कठिन साधना के बाद, उन्हें अनुभव हुआ कि उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया है और जीवन की समस्याओं का हल मिल गया है। अब सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ कहलाने लगे।
अब गौतम बुद्ध लोगों को उपदेश देने लगे। वे कहते कि संसार में दुःख ही दुःख है। दुःख का कारण संासारिक वस्तुओं के लिए इच्छा और कामना है। दुःख से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने ऐसी आठ बातें बतायीं जो मनुष्य को सदाचार की प्रेरणा देती हैं। गौतम बुद्ध कहते थे कि जीवन में किसी बात की अति न करो। संतुलित जीवन जियो। अहिंसा का पालन करो। किसी को सताओ नहीं। हत्या न करो। पशुओं की बलि देना ठीक नहीं है।
उन्होंने कहा कि भाई-चारे का जीवन अपनाओ। प्रेम का व्यवहार करो। पवित्रता से जीवन बिताओ। सत्य का पालन करो। घृणा को घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से जीतो। प्रेम से घृणा खत्म हो जाती है। दूसरों के दुःख को देखकर प्रसन्न होना अच्छी बात नहीं है।
गौतम बुद्ध कहते थे कि दूसरों की भलाई करो। परोपकारी से मित्रता करो। दया, स्नेह और करूणा अपनाओ। स्नेहपूर्ण हृदय सबसे बड़ा धन है। दुर्गुण बुरी चीज है। उसे पनपने न दो। अपने दुर्गुण दूर करो। उन्होंने सागर की तरह गम्भीर बनने की सीख दी। अच्छे विचारों को रत्न बताया और मन को जल के समान रखने को कहा।
उनकी शिक्षा थी कि धैर्य से काम करना चाहिए। सहनशीलता से मन काबू में रहता है। उन्होंने किसी का अपमान करने को मना किया।
उनका कहना था कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई लाभ नहीं। संतोष से बड़ा कोई धन नहीं। प्रेम से बड़ी कोई प्राप्ति नहीं है। द्वेष के समान कोई अपराध नहीं। बुद्ध ने कहा कि जाति-पाँति का भेद-भाव ठीक नहीं। बौद्ध धर्म को मानने वाले सभी वर्गों के लोग थे। भिक्षुओं के रहने के लिए विहार बनवाए गए। स्वाध्याय तथा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बौद्ध भिक्षु अपना जीवन व्यतीत करते थे।
थोड़े समय में ही गौतम बुद्ध भारत के अनेक भागों में प्रसिद्ध हो गए। उनकी शिक्षा का प्रभाव भारतीय जीवन के हर पक्ष पर पड़ा। खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, कथा-साहित्य आदि का कोई भी क्षेत्र अछूता न बचा। अजन्ता और एलोरा की गुफाओं की कलापूर्ण मूर्तियों पर, साँची तथा सारनाथ के स्तूप और कुशीनगर की मूर्ति, अशोक चक्र और जातक की कथाएँ सभी इस बात की साक्षी हैं कि बौद्ध धर्म ने जीवन के विविध पक्षों को प्रभावित किया। यही नहीं बौद्ध भिक्षु भारतीय संस्कृति को एशिया के अनेक भागों में ले गए। सम्राट अशोक भी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को सुदूर देशों में बौद्ध धर्म प्रचार के लिए भेजा था।
गौतम बुद्ध ने अपने प्रेम बन्धन में सभी को बाँध लिया।
This is Gautam Buddha Biography audiobook by Pocket FM. You can listen more of Gautam Buddha Biography clicking here.
शानदार जानकारी, धन्यवाद
ReplyDeletehttps://historyclasses.in/2023/03/mahatma-buddha-biography-in-hindi.html
ReplyDelete