पण्डित जवाहर लाल नेहरू की जीवनी - Jawaharlal Nehru Biography in Hindi

पण्डित जवाहर लाल नेहरू की जीवनी - Jawaharlal Nehru BiographyJjivni in Hindi : पण्डित जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में 14 नवम्बर सन् 1889 ई0 को हुआ। इनके पिता मोतीलाल नेहरू प्रसिद्ध वकील थे। माता स्वरूपरानी उदार विचारों वाली महिला थीं। नेहरू जी की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए नेहरू जी को विलायत (इंग्लैण्ड) भेजा गया। वहाँ रहकर उन्होंने अनेक विषयों की पुस्तकों का गहन अध्ययन किया। वकालत की शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौट आए और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। इसी समय उनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई। इस मुलाकात ने उनकी जीवनधारा ही बदल दी। उस समय देश में जगह-जगह अंग्रेजों का विरोध लोग अपने-अपने तरीकों से कर रहे थे। 1919 ई0 में जलियावाला बाग में अंग्रेज अफसर जनरल डायर द्वारा स्वतन्त्रता सेनानियों की नृशंस हत्या की गयी। इससे पूरे देश में क्रोध की ज्वाला धधक उठी। 1920 ई0 में गांधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन चलाया गया।

पण्डित जवाहर लाल नेहरू की जीवनी - Jawaharlal Nehru Biography in Hindi 

नाम
पण्डित जवाहर लाल नेहरू
जन्म तिथि
14 नवम्बर 1889 
माता
स्वरूपरानी
पिता
मोतीलाल नेहरू
पत्नी
कमला कौल
पुत्री
श्रीमती इंदिरा गाँधी
रचनाएं
मेरी कहानी, विश्व इतिहास की झलक, भारत की खोज
पेशा
बैरिस्टर, लेखक, राजनीतिज्ञ
पुरष्कार
भारत रत्न (1955)
मृत्यु
27 मई 1964
पण्डित नेहरू एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ उच्च कोटि के विचारक थे। उनकी राजनीति स्वच्छ और सौहार्दपूर्ण थी। स्वतन्त्रता संग्राम के दिनों में उन्होंने कारावास में रहकर अनेक पुस्तकों की रचना की। ’मेरी कहानी’, ’विश्व इतिहास की झलक’, ’भारत की खोज’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है। राजनीति एवं प्रशासन की समस्याओं से घिरे रहने के बावजूद वे खेल, संगीत, कला आदि के लिए समय निकाल लेते थे। बच्चों को तो वे अति प्रिय थे। आज भी वे बच्चों के बीच ‘चाचा नेहरू’ के नाम से लोकप्रिय हैं। उनके जन्मदिन 14 नवम्बर को हमारा देश ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाता है।
Jawaharlal Nehru Biography in Hindi
Jawaharlal Nehru
जीवन परिचय : पण्डित जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में 14 नवम्बर सन् 1889 ई0 को हुआ। इनके पिता मोतीलाल नेहरू प्रसिद्ध वकील थे। माता स्वरूपरानी उदार विचारों वाली महिला थीं। नेहरू जी की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। अपने शिक्षकों में एक एफ. टी. ब्रुम्स के सानिध्य में रहकर जहाँ इन्होंने अंग्रेजी साहित्य और विज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया वहीं मुंशी मुबारक अली ने इनके मन में इतिहास और स्वतन्त्रता संग्राम के प्रति जिज्ञासा पैदा कर दी। यही कारण है कि बचपन से ही उनके मन में दासता के प्रति विद्रोह की भावना भर उठी।

उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए नेहरू जी को विलायत (इंग्लैण्ड) भेजा गया। वहाँ रहकर उन्होंने अनेक विषयों की पुस्तकों का गहन अध्ययन किया। वकालत की शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौट आए और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। वकालत में उनका मन न लगा। उनके मन में तो देश को स्वतंत्र कराने की इच्छा बलवती हो रही थी। इसी समय उनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई। इस मुलाकात ने उनकी जीवनधारा ही बदल दी।

उस समय देश में जगह-जगह अंग्रेजों का विरोध लोग अपने-अपने तरीकों से कर रहे थे। 1919 ई0 में जलियावाला बाग में अंग्रेज अफसर जनरल डायर द्वारा स्वतन्त्रता सेनानियों की नृशंस हत्या की गयी। इससे पूरे देश में क्रोध की ज्वाला धधक उठी। 1920 ई0 में गांधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन चलाया गया। जवाहर लाल नेहरू भी पूर्ण मनोयोग से स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े।

प्रथम जेल यात्रा : 1921 ई0 में इंग्लैण्ड के राजकुमार ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ के भारत आने पर अंग्रेज शासकों द्वारा राजकुमार के स्वागत का व्यापक स्तर पर विरोध किया गया। इलाहाबाद में विरोध का नेतृत्व पण्डित नेहरू को सौंपा गया। इनके साथ पिता मोतीलाल नेहरू भी थे। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। यह जवाहर की प्रथम जेल यात्रा थी। इसके बाद उन्हें नौ बार जेल यात्रा करनी पड़ी, किन्तु वे विचलित नहीं हुए।

भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री : लम्बे संघर्ष के बाद अन्ततः 15 अगस्त 1947 ई0 को देश आजाद हुआ। जब भावी प्रधानमन्त्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो तो सरदार पटेल को सर्वाधिक मत मिले। उसके बाद सर्वाधिक मत आचार्य कृपलानी को मिले थे। किन्तु गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमन्त्री बनाया गया। लम्बी अवधि की परतन्त्रता के बाद देश की आर्थिक स्थिति अत्यन्त जर्जर हो चुकी थी। अपनी दूरदर्शिता और कर्मठता से नेहरू ने कृषि और उद्योगों के विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाओं की आधारशिला रखी। आज देश में जो बड़े-बड़े कारखाने, वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ और विशाल बाँध आदि दिखाई पड़ते हैं, इन्हीं पंचवर्षीय योजनाओं की देन हैं। 

‘‘सामने के पुलिस अफसर को गिरा कर खुद घोडे़ पर चढ़ जाऊँ, यह कितना आसान था। मगर लम्बे अर्से की शिक्षा और अनुशासन ने मेरा साथ दिया और मैंने अपने सिर को मार से बचाने के सिवाय हाथ तक नहीं उठाया’’  -जवाहरलाल नेहरू
(लखनऊ में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए पुलिस की बर्बर पिटाई के समय उनके मन के विचार)

मनुष्य का सबसे बड़ा तीर्थ, मंदिर, मस्जिद, और गुरुद्वारा वहीं है, जहाँ इंसान की भलाई के लिए काम होता है।
नेहरू जी ने देश के चहुँमुखी विकास हेतु अनेक कार्य किए। वे जानते थे कि बिना अणुशक्ति के देश शक्ति सम्पन्न नहीं हो सकता, अतः उन्होंने परमाणु आयोग की स्थापना की। वे परमाणु ऊर्जा को सदैव विकास के कार्योें में लगाने के पक्षधर थे। ट्राम्बे के परमाणु संस्थान में उन्होंने एक बार कहा था-
"चाहे जो भी हो, हम किसी भी हालत में अणुक्ति का प्रयोग विनाकारी कार्यों के लिए नहीं करेंगे।"
जवाहर लाल नेहरू बिना थके प्रतिदिन अठारह से बीस घण्टे कार्य करते थे। महान कवि राबर्ट फ्रास्ट की निम्नलिखित पंक्तियाँ उनका आदर्श थीं-
वन है सुन्दर और सघन पर मुझको वचन निभाना है
नींद सताए इसके पहले कोसों जाना है,
मुझको कोसों जाना है।
पण्डित जवाहर लाल नेहरू की चर्चिल से मुलाकात : भारत के प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू इंग्लैण्ड गए। वहाँ उनकी मुलाकात ब्रिटेन के पूर्व प्रद्दानमंत्री चर्चिल से हुई। पिछली बातों को याद कर चर्चिल ने पूछा-आपने अंग्रेजों के शासन में कितने वर्ष जेल में बिताए थे? ’’लगभग दस वर्ष’’- नेहरू ने कहा। तब अपने साथ किये गए व्यवहार के प्रति आपको हमसे घृणा करनी चाहिए।’’ चर्चिल ने सवालिया अंदाज में पूछा। नेहरु जी ने उत्तर दिया- ’’बात ऐसी नहीं है। हमने ऐसे नेता के अधीन काम किया है जिसने हमें दो बातें सिखायी हैं’’- एक तो यह कि किसी से डरो मत और दूसरी, किसी से घृणा मत करो। हम उस समय आपसे डरते नहीं थे, इसलिए अब घृणा भी नहीं करते।’’


मृत्यु : नेहरू जी ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण देश सेवा में लगाया। वे स्वतन्त्रता संग्राम में देश के लिए लड़े और देश को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में समर्थ बनाया। पचहत्तर वर्ष की आयु में 27 मई 1964 ई0 को अस्वस्थ होने के कारण उनका निधन हो गया। उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी कि मृत्यु के बाद उनकी चिता की भस्म खेतों में बिखेर दी जाय। नेहरू जी की इस इच्छा का पूरा सम्मान किया गया।
देश के इस महान सपूत के कार्य और विचार आज भी हमारा पथ प्रशस्त कर रहे हैं।
जवाहरलाल नेहरु पर संस्कृत निबंध

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