जगदीश चन्द्र बसु का जीवन परिचय। Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi : जगदीश चन्द्र बसु का जन्म बंगाल के मैमन सिंह जिले के फरीदपुर गाँव में 30 नवम्बर सन् 1858 को हुआ। इनके पिता भगवान चन्द्र बसु फरीदपुर के डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। बालक जगदीश को घोड़े पर सवारी करना, रोमांचकारी व साहसपूर्ण कहानियाँ सुनना अत्यन्त प्रिय था। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। वह महत्त्वपूर्ण शोध जिसके लिए जगदीश चन्द्र बसु हमेशा याद किए जायेंगे वह था-पौधों में प्राण और संवेदनशीलता का पता लगाना। इसके लिए उन्होंने-‘क्रेस्कोग्राफ’ नामक अति संवेदनशील यंत्र बनाया।
जगदीश चन्द्र बसु का जीवन परिचय। Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi
नाम
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जगदीश चन्द्र बसु
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जन्म
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30 नवम्बर सन् 1858
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पिता
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भगवान चन्द्र बसु
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माता
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श्रीमती बामा सुंदरी बोस
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राष्ट्रीयता
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ब्रिटिश भारतीय
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कार्य क्षेत्र
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भौतिकी, जीवभौतिकी,
जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान
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मृत्यु
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3 नवम्बर
1937
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क्या आपने कभी विचार किया है कि पेड़-पौधे भी हमारी तरह सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख का अनुभव करते हैं ? आपको यह बात आश्चर्यजनक लग सकती है, लेकिन है सच। पेड़-पौधे भी हमारी तरह संवेदनशील हैं। उनमें भी जीवन है। वे भी सुख-दुःख का अनुभव करते हैं। इस बात का पता सर्वप्रथम महान भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ने लगाया।
परिचय : जगदीश चन्द्र बसु का जन्म बंगाल के मैमन सिंह जिले के फरीदपुर गाँव में 30 नवम्बर सन् 1858 को हुआ। इनके पिता भगवान चन्द्र बसु फरीदपुर के डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। बालक जगदीश को घोड़े पर सवारी करना, रोमांचकारी व साहसपूर्ण कहानियाँ सुनना अत्यन्त प्रिय था। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है।
शिक्षा : ग्यारह वर्ष की आयु तक इन्होने गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। बसु की शिक्षा एक बांग्ला विद्यालय में प्रारंभ हुई। उनके पिता मानते थे कि अंग्रेजी सीखने से पहले अपनी मातृभाषा अच्छे से आनी चाहिए।
विक्रमपुर में 1915 में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए बसु ने कहा- "उस समय पर बच्चों को अंग्रेजी विद्यालयों में भेजना हैसियत की निशानी माना जाता था। मैं जिस बांग्ला विद्यालय में भेजा गया वहाँ पर मेरे दायीं तरफ मेरे पिता के मुस्लिम परिचारक का बेटा बैठा करता था और मेरी बाईं ओर एक मछुआरे का बेटा। ये ही मेरे खेल के साथी भी थे। उनकी पक्षियों, जानवरों और जलजीवों की कहानियों को मैं कान लगा कर सुनता था। शायद इन्हीं कहानियों ने मेरे मस्तिष्क में प्रकृति की संरचना पर अनुसंधान करने की गहरी रुचि जगाई।"
वह जीव-जन्तु, पेड़-पौधों में विशेष रुचि लेने लगे। वे पौधों की जड़ें उखाड़कर देखते रहते। तरह-तरह के फल-फूल के पौधे उगाते। विद्यार्थी जीवन में ही उनका मन स्वाभाविक रूप से पेड़-पौधों की दुनिया में पूरी तरह रम गया। वह यह जानने को उत्सुक रहने लगे कि क्या पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जीवन है ? इस बात का पता लगाने के लिए वे जी-जान से जुट गए।
उच्च शिक्षा हेतु विदेश गमन : सेंट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बसु आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड चले गए। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से 1884 में भौतिकी, रसायन और वनस्पति विज्ञान में विशेष शिक्षा ली तथा बी0 एस0 सी0 की उपाधि प्राप्त की।
भारत वापसी तथा अंग्रेजी नीतियों का विरोध : सन् 1885 में भारत लौटने पर उनकी नियुक्ति कोलकाता के प्रेसिडेन्सी कॉलेज में प्राध्यापक पद पर हो गई। वहाँ उन्हें अंग्रेज प्राध्यापकों की अपेक्षा आधा वेतन देने की बात कही गई। बसु ने पद तो स्वीकार कर लिया, किन्तु विरोध स्वरूप आधा वेतन लेने से इनकार कर दिया। अन्ततः अंग्रेजों ने उनकी योग्यता और परिश्रम को देखते हुए पूरा वेतन देना स्वीकार कर लिया। यह कार्य के प्रति उनकी निष्ठा और स्वाभिमान का द्योतक है।
पेड़-पौधों में भी जीवन होता है : वह महत्त्वपूर्ण शोध जिसके लिए जगदीश चन्द्र बसु हमेशा याद किए जायेंगे वह था-पौधों में प्राण और संवेदनशीलता का पता लगाना। इसके लिए उन्होंने-‘क्रेस्कोग्राफ’ नामक अति संवेदनशील यंत्र बनाया। इस यंत्र की सहायता से पौधों की वृद्धि और उनके किसी भाग को काटे या चोट पहुँचाए जाने पर पौधों में होने वाली सूक्ष्म प्रतिक्रियाओं का पता लगाया जा सकता है। जगदीश चन्द्र बसु की इस खोज से दुनिया आश्चर्यचकित रह गई।
अंग्रेज सरकार ने इस खोज पर उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन ने प्रोफेसर बसु के अनुसंधानों पर मुग्ध होकर कहा था, ‘‘ जगदीश चन्द्र बसु ने जो अमूल्य तथ्य संसार को भेंट किए हैं, उनमें से कोई एक भी उनकी विजय पताका फहराने के लिए पर्याप्त है।’’
जगदीश चन्द्र बसु न केवल जीव विज्ञानी थे, अपितु भौतिकी के क्षेत्र में भी उनकी गहरी पैठ थी। ‘बेतार के तार’ का आविष्कार सही अर्थों में प्रोफेसर बसु ने ही किया था क्योंकि सन् 1895 में मारकोनी द्वारा इस आविष्कार का पेटेन्ट कराने से पूर्व ही वे अपने ‘बेतार के तार’ का सफल सार्वजनिक प्रदर्शन कर चुके थे। सर नेविल्ले मोट्ट को 1977 में सॉलिड स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स में किये अपने शोधकार्य के लिए नोबल पुरस्कार मिला था। उन्होंने यह कहा था की आचार्य जगदीश चन्द्र बोस अपने समय से 60 साल आगे थे।
सम्मान तथा उपाधियाँ
- उन्होंने सन् 1896 में लंदन विश्वविद्यालय से विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
- वह सन् 1920 में रॉयल सोसायटी के फैलो चुने गए।
- इन्स्ट्यिूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स ने जगदीष चन्द्र बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया।
- वर्ष 1903 में ब्रिटिश सरकार ने बोस को Companion of the Order of the Indian Empire से सम्मानित किया।
- वर्ष 1911 में उन्हें Companion of the Order of the Star of India से विभूषित किया गया।
- 1917 में जगदीश चंद्र बोस को "नाइट बैचलर" (Knight Bachelor) की उपाधि प्रदान की गई।
प्रोफेसर बसु अपने अथक परिश्रम और अनुसंधानों के कारण विश्व के प्रख्यात वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं। उनका कहना था, ‘‘हमें अपने कार्य के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। स्वयं अपना कार्य करना चाहिए, किन्तु यह सब करने से पूर्व अपना अहंकार और घमण्ड त्याग देना चाहिए।’’
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