दशहरा अथवा विजयादशमी पर बड़ा निबंध : विजयादशमी शक्ति पर्व है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की नवरात्रि पूजन के पश्चात आश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन मधुरेण समापयेत् के कारण दशहरा नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार नवरात्र पाद पक्षालन और आत्म-शक्ति संचय कर आत्म-विजय प्राप्ति के लिए शक्ति पूजन का पर्व है। दशमी उस अनुष्ठान की सफलतापूर्वक समाप्ति की उपासना का प्रतीक है आत्म विजय का द्योतक है।
दशहरा अथवा विजयादशमी पर बड़ा निबंध
विजयादशमी शक्ति पर्व है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा
के नौ स्वरूपों की नवरात्रि पूजन के पश्चात आश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन
मधुरेण समापयेत् के कारण दशहरा नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार नवरात्र पाद पक्षालन
और आत्म-शक्ति संचय कर आत्म-विजय प्राप्ति के लिए शक्ति पूजन का पर्व है। दशमी उस
अनुष्ठान की सफलतापूर्वक समाप्ति की उपासना का प्रतीक है आत्म विजय का द्योतक है।
डॉक्टर सीताराम झा का मानना है जैसे वैदिक अनुष्ठान तीन (त्रिक) की प्रधानता है
वैसे ही आदि शक्ति की उपासना में 10 संख्याओं का महत्व अधिक है। इसी से दशहरा नाम से यह अनुष्ठान विख्यात है।
निम्न विवरण से या बात और अधिक स्पष्ट हो
जाएगी-
तत्वतः दसों दिशाओं ऊर्ध्व, अधः, पूर्व, पश्चिम, उत्तर,
दक्षिण, अग्निकोण, ईशानकोम, वायुकोण और नैऋत्यकोण में आदिशक्ति का ही प्राबल्य है।
इसके अतिरिक्त शक्ति- उपासना के क्रम में दस महाविद्याओं-काली, तारा, षोडशी,
भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका का ध्यान
सिद् में परम सहायक होता है। इनमें से किसी एक रूप की आराधना से ही दसों प्रकार के
पाप- कायरता, भीरूता, दारिद्र्य, शैथिल्य,
स्वार्थपरता, निष्क्रियता, असावधानी, असमर्थता एवं वंचकता का तत्काल नाश हो
जाता है। दस मस्तक वाले रावण का संहार भगवान राम ने शक्ति की महकती साधना से ही
किया था। इसी प्रकार दस इंद्रियां-आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, हाथ, पैर, जीभ, गुदा, उपस्थ (कर्मइंद्रियो) को वश में करना भी शक्ति अर्चना से ही
संभव होता है। दसमी की विजय यात्रा दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी,
चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी नवम सिद्धिदात्री
की आराधना के पश्चात आयोजित की जाती है। उनमें महान
संकटों को दूर करने के उपायों का शाश्वत निर्देश है।
विजयदशमी के पावन के देवराज इंद्र ने महादानव वृत्रासुर पर
विजय प्राप्त की। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राक्षस संस्कृति के प्रतीक लंका
नरेश रावण से युद्ध के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। (श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी यह धारणा अब समाप्त हो रही है क्योंकि वाल्मीकि रामायण में इसका कहीं
उल्लेख नहीं है।) इसीदिन पांडवों ने अज्ञातवास की अवधि समाप्त कर द्रौपदी का हरण
किया था। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन आरंभ हुआ था।
कृषि प्रधान भारत में खेतों में नवधान्य प्राप्ति रूपी विजय के रूप में भी मनाया
जाता है कारण क्वारी या आश्विन की फसल इन ही दिनों काटी जाती है।
उत्तर भारत में विजय दशमी नौरते टांगने का पर्व भी है।
बहिनें भाइयों के टीका कर नौरते कानों में टांगती हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई यह
कहना कठिन है परंतु इसकी पृष्ठभूमि में नवरात्र पूजन की सफलता और कृषि उपज की विजय-श्री
का भाव लगता है। बहनें नवरात्र पूजन को विधि विधान से संपन्न करने के उपलक्ष्य में
अपने भाइयों को बधाई रूप में नवरात्र में जौ के अंकुरित रूप को कानों में टांगती
हैं, कुमकुम का तिलक करती हैं। दुर्गा पूजा की प्रसादी रूप में पाती हैं मुद्रा।
शक्ति के प्रतीक शस्त्रों का शास्त्रीय विधि से पूजन विजय
दशमी का अंग है। प्राचीन काल में वर्षा काल में युद्ध का निषेध था। अतः वर्षा के चातुर्मास में शस्त्र शस्त्रागारों में सुरक्षित रख दिए जाते
थे। विजय दशमी पर उन्हें शस्त्रागारों से निकाल कर उन का पूजन होता था। शस्त्र पूजन के पश्चात
शत्रु पर आक्रमण और युद्ध किया जाता था। इसी दिन क्षत्रिय राजा सीमोल्लंघन भी करते
थे।
कालांतर में सीमोल्लंघन का रूप बदल गया। महाराष्ट्र में
विजयादशमी सिलंगन अर्थात सीमोल्लंघन रूप में मनाई जाती है। सायं काल गांव के लोग नव-वस्त्रों से सुसज्जित
होकर गांव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में सोना लूटकर गांव लौटते
हैं और उस सोने का आदान प्रदान करते हैं। शमी वृक्ष में ऋषियों का तपस्तेज माना
जाता है।
बंगाली विजयादशमी का रूप दुर्गा पूजा का है। वहां
अनास्थावादी, नास्तिक तथा नक्सलवादी भी दुर्गा मां की कृपा और आशीष चाहते हैं।
बंगालियों की धारणा है कि आसुरी शक्तियों का संहार कर दशमी के दिन मां दुर्गा
कैलाश पर्वत को प्रस्थान करती है अतः वे दशहरे के दिन दुर्गा की प्रतिमा की बड़ी
धूमधाम से शोभायात्रा निकालते हुए पवित्र नदी, सरोवर अथवा किसी महान नदी में
विसर्जित कर देते हैं।
हिंदी भाषी प्रांतों में नवरात्र में रामलीला मंचन की प्रथा
है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से मंचन आरंभ कर दशमी के दिन रावण वध करके पर्व मनाया
जाता है। भव्य शोभायात्रा रामलीला मंचन का विशिष्ट आकर्षण होता है। लाखों लोग
श्रद्धा और भक्ति भाव से रामलीला का आनंद लेते हैं।
विजयदशमी के दिन ही सन 1925 में भारत राष्ट्र की हिंदू राष्ट्रीय अस्मिता, उसके
अस्तित्व, उसकी पहचान और उसके गौरवशाली अतीत से प्रेरित एक परम वैभवशाली राष्ट्र
के पुनर्निर्माण हेतु परम पूज्य डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
विजयदशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म शुद्धि का पर्व है। पूजा,
अर्चना, आराधना और तपोमय जीवन साधना उसके अंग हैं। राष्ट्रीय दृष्टि से सैन्य
शक्ति संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शास्त्रों की संख्या लेखा-जोखा तथा परीक्षण का त्यौहार है।
आत्मा को आराधना और तप से उन्नत करें, राष्ट्र को शस्त्र और सैन्य बल से सुदृढ़
करें यही विजयदशमी का संदेश है।
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