निरक्षरता एक अभिशाप पर निबंध: मानव-समाज में जो व्यक्ति अक्षरज्ञान तथा बौद्धिक विकास से रहित होता है, उसे निरक्षर कहते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि वह
निरक्षरता एक अभिशाप पर निबंध - Niraksharta Ek Abhishap par Nibandh
निरक्षरता एक अभिशाप पर निबंध: मानव-समाज में जो व्यक्ति अक्षरज्ञान तथा बौद्धिक विकास से रहित होता है, उसे निरक्षर कहते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि वह व्यक्ति पढ़ा-लिखा नहीं होता है, और उसके लिए 'काला अक्षर भैंस बराबर' की कहावत चरितार्थ होती है। ऐसे व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का उचित विकास नहीं कर पाते, क्योंकि ज्ञान के अभाव में उनकी सोच और समझ सीमित रह जाती है। साथ ही, वे सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास में भी अपना उचित सहयोग नहीं दे पाते, जिससे समाज और राष्ट्र दोनों की प्रगति बाधित होती है। इसीलिए निरक्षरता को व्यक्ति और समाज दोनों के लिए एक गंभीर अभिशाप माना गया है।
निरक्षरता का दुष्प्रभाव: हमारे देश में पराधीनता के लंबे काल में शिक्षण-सुविधाओं का नितांत अभाव था, जिसके कारण निरक्षरता एक विकराल समस्या बन गई थी। उस समय निरक्षरता के कारण ही बंधुआ-मजदूरी, जमींदारी शोषण-उत्पीड़न, आर्थिक विषमता, अंधविश्वासों और रूढ़ियों की अधिकता थी। देश का गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रहना भी कहीं न कहीं इसी व्यापक निरक्षरता का ही परिणाम था, क्योंकि अशिक्षित जनता अपने अधिकारों और शोषण के प्रति जागरूक नहीं हो पाती थी। वर्तमान में भी, स्त्रियों, अनुसूचित जातियों, आदिवासियों और समाज के वंचित वर्गों में निरक्षरता का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है। राजस्थान जैसे राज्यों में भी जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का निरक्षर होना, निरक्षरता के अनेक दुष्प्रभावों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है, जैसे स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता की कमी, छोटे परिवार की अवधारणा को न समझना, और आधुनिक कृषि पद्धतियों को न अपना पाना।
निरक्षरता निवारण अभियान: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत सरकार ने निरक्षरता को दूर करने के लिए गंभीर और सतत प्रयास किए हैं। इस दिशा में शिक्षण संस्थाओं का व्यापक विस्तार किया गया, और राष्ट्रीय स्तर पर प्रौढ़ शिक्षा की नीति घोषित की गई। इस नीति के अनुसार, अनेक स्तरों पर साक्षरता कार्यक्रम चलाए जाने लगे, जिनका उद्देश्य वयस्कों को शिक्षित करना था। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक विद्यालय खोले गए और प्राथमिक शिक्षा का खूब प्रसार किया गया ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। गाँवों में शिक्षित बेरोजगार युवकों को पंचायत स्तर पर साक्षरता अभियान में लगाया गया, और समाज कल्याण विभाग के सहयोग से इस अभियान को आगे बढ़ाया गया। आज 'सर्वशिक्षा अभियान' और 'पढ़े भारत बढ़े भारत' जैसे कार्यक्रमों के द्वारा साक्षरता का प्रतिशत निरंतर बढ़ रहा है, जो एक सकारात्मक बदलाव की ओर इशारा करता है।
निरक्षरता निवारण के लिए सुझाव: हमारे देश से निरक्षरता का कलंक तभी पूरी तरह मिट सकता है, जब प्राथमिक शिक्षा को पूरे देश में अनिवार्य कर दिया जाए और बालकों को अशिक्षित रखना कानूनी अपराध माना जाए। इसके लिए हर जगह पर्याप्त संख्या में विद्यालय खोले जाने चाहिए और गरीब तथा वंचित वर्ग के बच्चों को हर तरह की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए, ताकि कोई भी बच्चा आर्थिक या सामाजिक बाधाओं के कारण शिक्षा से वंचित न रहे। सरकार को भी इस दिशा में अधिक से अधिक धन व्यय करने का प्रावधान रखना चाहिए और शिक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना चाहिए। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित सर्वशिक्षा अभियान और अन्य साक्षरता कार्यक्रमों को अधिक प्रभावशाली बनाया जाना चाहिए, और इसके लिए प्रचार-साधनों का पूरा उपयोग किया जाना चाहिए ताकि हर व्यक्ति शिक्षा के महत्व को समझे और उसे अपनाने के लिए प्रेरित हो।
उपसंहार: निरक्षरता समाज में अज्ञान और अंधकार का प्रतीक है। जो समाज और राष्ट्र निरक्षर नागरिकों से भरा होता है, वह कभी भी वास्तविक अर्थों में उन्नत नहीं माना जा सकता। निरक्षरता मानवता के लिए एक अभिशाप है। और इस अभिशाप से मुक्ति पाना अत्यंत आवश्यक है, और यह कार्य केवल साक्षरता के आलोक से ही संभव हो सकता है। जब प्रत्येक नागरिक शिक्षित होगा, तभी हमारा समाज जागरूक, सशक्त और प्रगतिशील बनेगा। साक्षरता ही वह नींव है जिस पर एक मजबूत, समृद्ध और विकसित राष्ट्र का निर्माण होता है।
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