भिक्षावृत्ति एक अभिशाप पर निबंध: सड़कों पर हाथ फैलाए खड़े लोग, मंदिरों की सीढ़ियों पर बैठी वृद्ध महिलाएँ, ट्रैफिक सिग्नल पर रोते हुए बच्चों की टोली—ये
भिक्षावृत्ति एक अभिशाप पर निबंध - Bhikshavriti Ek Abhishap par Nibandh
भिक्षावृत्ति एक अभिशाप पर निबंध: सड़कों पर हाथ फैलाए खड़े लोग, मंदिरों की सीढ़ियों पर बैठी वृद्ध महिलाएँ, ट्रैफिक सिग्नल पर रोते हुए बच्चों की टोली—ये दृश्य आज भारत के लगभग हर शहर, हर कस्बे और गाँव में आम हो चुके हैं। भिक्षावृत्ति का मतलब है—बिना काम किए दूसरों से पैसे या खाना माँगना। पहले यह किसी की मजबूरी होती थी, जैसे कोई बीमार हो गया हो, या बहुत बूढ़ा हो गया हो और काम करने में असमर्थ हो। पर अब यह कई लोगों के लिए पेशा बन चुका है। बहुत से लोग भीख माँगने को अपना रोज़गार समझते हैं। वे हर दिन सड़क पर बैठते हैं, आते-जाते लोगों से पैसे माँगते हैं, और फिर उसी पैसे से अपनी ज़िंदगी चलाते हैं।
भिक्षावृत्ति के पीछे अनेक कारण छिपे हैं। गरीबी और बेरोजगारी निःसंदेह सबसे प्रमुख कारक हैं। जब लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं होता, तो वे जीवित रहने के लिए भिक्षा मांगने को मजबूर हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सामाजिक सुरक्षा का अभाव भी एक बड़ा कारण है। वृद्ध, बीमार, विकलांग और बेघर लोग, जिनके पास देखभाल करने वाला कोई नहीं होता, अक्सर इस दलदल में फंस जाते हैं। शिक्षा की कमी और जागरूकता का अभाव उन्हें वैकल्पिक रास्तों से अनभिज्ञ रखता है।
भारत में भिक्षावृत्ति से जुड़ा कोई सटीक आंकड़ा नहीं है, लेकिन 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 4 लाख से ज़्यादा लोग देश में भीख माँगते हैं। यह संख्या आज कहीं ज़्यादा हो सकती है क्योंकि हर चौराहे, हर रेलवे स्टेशन, हर मंदिर में भिखारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कई लोग तो एक शहर से दूसरे शहर भीख माँगने के लिए घूमते हैं।
सरकार ने इस पर काबू पाने की कोशिश की है। कुछ राज्यों ने भिक्षावृत्ति विरोधी कानून भी बनाए हैं, जैसे महाराष्ट्र में ‘बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959’। इस कानून के अनुसार, सार्वजनिक स्थान पर भीख माँगना अपराध माना गया है और दोषी पाए जाने पर सज़ा भी हो सकती है। इसके अलावा सरकार ने कई योजनाएँ भी शुरू की हैं, जैसे बेघर लोगों के लिए रैन बसेरे, गरीबों के लिए पेंशन योजनाएँ, बच्चों के लिए शिक्षा अभियान और रोजगार से जुड़ी योजनाएँ।
लेकिन फिर भी ज़मीनी हकीकत यह है कि भिक्षावृत्ति में कमी नहीं आई है। इसके कई कारण हैं। पहला, कुछ लोग मेहनत करना नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि भीख माँगना ज़्यादा आसान है। दूसरा, समाज में अभी भी यह सोच है कि किसी को भीख देना पुण्य का काम है। लोग बिना सोचे-समझे पैसे दे देते हैं, चाहे सामने वाला असली ज़रूरतमंद हो या नहीं। तीसरा, कई बार असली ज़रूरतमंद लोग सरकारी योजनाओं तक पहुँच ही नहीं पाते क्योंकि उन्हें जानकारी नहीं होती या वे पढ़े-लिखे नहीं होते।
समस्या का हल यह नहीं कि हम हर भिखारी को जेल भेज दें या हर जगह पुलिस लगा दें। इससे समस्या खत्म नहीं होगी। ज़रूरत है कि हम लोगों को जागरूक करें—उन्हें समझाएँ कि भीख देना किसी की मदद नहीं, बल्कि उसे आलसी बनाना है। अगर कोई सच में ज़रूरतमंद है, तो उसे किसी पुनर्वास केंद्र, NGO या सरकारी योजना से जोड़ना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा, रोज़गार और पुनर्वास को और मज़बूत करे। भिक्षावृत्ति के पीछे जो असली कारण हैं, जैसे गरीबी, अशिक्षा और बेघर होना—उन्हें दूर करना ज़्यादा ज़रूरी है। समाज को भी चाहिए कि वह ऐसे लोगों को समझाए, उन्हें काम सिखाए और आत्मनिर्भर बनने में मदद करे।
निष्कर्षतः भिक्षावृत्ति एक ऐसा सामाजिक कलंक है जिसे समाप्त करना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है। यह सिर्फ सरकारों का काम नहीं, बल्कि प्रत्येक जागरूक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इस समस्या को समझे और इसके समाधान में अपना योगदान दे।
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