भारत का वैश्विक मंच पर उदय पर निबंध: जिस देश ने दुनिया को शून्य, योग और अहिंसा का दर्शन दिया, वह आज फिर विश्वपटल पर अपने ज्ञान, शक्ति और आत्मबल से नये
भारत का वैश्विक मंच पर उदय पर निबंध (Bharat ka Vaishvik Manch par Uday par Nibandh)
प्रस्तावना: "जिस देश ने दुनिया को शून्य, योग और अहिंसा का दर्शन दिया, वह आज फिर विश्वपटल पर अपने ज्ञान, शक्ति और आत्मबल से नये युग की पटकथा लिख रहा है।" भारत, जो कभी "सोने की चिड़िया" कहलाता था और फिर उपनिवेशवाद के अंधकार में दब गया था, आज पुनः अपने स्वाभिमान और सामर्थ्य के साथ वैश्विक मंच पर उभर रहा है। यह उदय केवल आर्थिक या सैन्य दृष्टि से नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक, कूटनीतिक, वैज्ञानिक और वैचारिक स्तर पर भी भारत अब एक निर्णायक शक्ति बन चुका है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संघर्ष से स्वावलंबन तक
भारत की आज़ादी के बाद की यात्रा कठिन और संघर्षपूर्ण रही। देश को विभाजन, अकाल, गरीबी और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ा। एक नवजात गणराज्य के रूप में भारत को नई राह बनानी थी, और वह राह आत्मनिर्भरता के संकल्प से होकर गुजरती थी। कभी खाद्यान्न के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर रहने वाला भारत अब कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है। एक समय था जब भारत वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक के क्षेत्र में अन्य देशों पर निर्भर था, लेकिन आज वही भारत चंद्रमा और मंगल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। इस विकास के पीछे एक दीर्घकालिक योजना, नेतृत्व की स्थिरता और जनमानस की आकांक्षा जुड़ी हुई है, जिसने भारत को पुनः एक उभरती वैश्विक शक्ति में परिवर्तित कर दिया।
आर्थिक क्षेत्र में भारत का उत्कर्ष
बीते दो दशकों में भारत ने आर्थिक मोर्चे पर जिस प्रकार से प्रगति की है, वह अनुकरणीय है। आज भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। उसकी यह उपलब्धि केवल जीडीपी की दृष्टि से नहीं, बल्कि नवाचार, स्टार्टअप और डिजिटल क्रांति के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। डिजिटल भुगतान प्रणाली जैसे यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने भारत को विश्व में तकनीकी नेतृत्व देने वाले देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। 'मेक इन इंडिया', 'स्टार्टअप इंडिया', और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसे अभियानों ने न केवल विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है, बल्कि युवाओं के लिए नए अवसर भी खोले हैं। इन पहलों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि भारत केवल उपभोक्ता नहीं, निर्माता राष्ट्र भी बनने की क्षमता रखता है।
विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नेतृत्व
भारत विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी अब केवल अनुसरण करने वाला देश नहीं, बल्कि नेतृत्व करने वाला राष्ट्र बन चुका है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान और मंगलयान जैसे अभियानों को कम लागत में सफल बनाकर दुनिया को चौंका दिया है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत ने टीका निर्माण में अपनी विशेषज्ञता सिद्ध की है। विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने 'वैक्सीन मैत्री' के माध्यम से अनेक देशों को जीवनरक्षक टीके भेजकर यह दिखाया कि वह न केवल विज्ञान में समर्थ है, बल्कि मानवीयता में भी अग्रणी है। इस समन्वय ने भारत को केवल एक तकनीकी महाशक्ति नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में स्थापित किया।
वैश्विक कूटनीति में भारत की भूमिका
भारत की विदेश नीति में अब एक नया आत्मविश्वास झलकता है। पहले जहाँ भारत गुटनिरपेक्षता की नीति के अंतर्गत एक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता था, वहीं आज वह एक सक्रिय भागीदार और निर्णायक भूमिका निभाने वाला देश बन चुका है। G-20, BRICS और SCO जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका न केवल निर्णायक रही है, बल्कि कई बार वह नेतृत्वकर्ता भी बना है। चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध की बात हो या जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन — भारत का दृष्टिकोण संतुलित, दूरदर्शी और व्यवहारिक रहा है। अब भारत की बात केवल सुनी नहीं जाती, उसे माना भी जाता है। यह बदलाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक परिपक्वता का संकेत है।
सांस्कृतिक और वैचारिक प्रभाव
भारत की ताकत केवल उसकी जनसंख्या, सेना या अर्थव्यवस्था में नहीं है, बल्कि उसकी सांस्कृतिक गहराई और वैचारिक संपन्नता में भी है। योग, आयुर्वेद, भारतीय संगीत, सिनेमा और साहित्य अब केवल भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहल का प्रत्यक्ष प्रमाण है। भारतीय मूल के नागरिक आज अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों की राजनीति और प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं, जिससे भारत की संस्कृति, मूल्य और दृष्टिकोण विश्व समुदाय में और भी गहराई से पैठ बना रहे हैं। यह भारत के उस 'सॉफ्ट पावर' का प्रमाण है, जो बिना हथियार उठाए दुनिया को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
चुनौतियाँ और आगे का मार्ग
भारत का यह उत्कर्ष प्रशंसनीय है, परंतु इसमें अनेक चुनौतियाँ भी समाहित हैं। अत्यधिक जनसंख्या, पर्यावरणीय संकट, बेरोज़गारी, शिक्षा की गुणवत्ता और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएँ अभी भी भारत के समक्ष गंभीर रूप में उपस्थित हैं। इसके अतिरिक्त वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ती जा रही है, जहाँ केवल आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि नैतिक नेतृत्व और वैश्विक दृष्टि की भी आवश्यकता होती है। भारत को यदि सतत रूप से अग्रणी बनना है तो उसे अपने आंतरिक ढांचे को सशक्त बनाना होगा — शासन, न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में पारदर्शिता, गुणवत्ता और समानता सुनिश्चित करनी होगी।
निष्कर्ष: भारत का वैश्विक मंच पर उदय केवल आकस्मिक घटनाओं का परिणाम नहीं, बल्कि वर्षों के सतत प्रयास, नीतिगत निर्णय और जनमानस की सामूहिक चेतना का फल है। आज भारत केवल एक भूगोल नहीं, एक विचार बन चुका है — एक ऐसा विचार जो विश्व को 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के सिद्धांत से जोड़ता है। आने वाले वर्षों में भारत का यह उदय केवल आर्थिक या सैन्य दृष्टि से नहीं, बल्कि नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नेतृत्व के रूप में भी मानवता को नई दिशा दे सकता है। भारत का समय आ गया है — अब वह न केवल विश्व मंच पर उपस्थित है, बल्कि उसकी धुरी बनने की दिशा में अग्रसर है।
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