पोंगल त्योहार निबंध: पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है, जो हर साल 14 या 15 जनवरी को बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य
पोंगल त्योहार पर निबंध (Essay on Pongal Festival in Hindi)
पोंगल त्योहार निबंध: पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है, जो हर साल 14 या 15 जनवरी को बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से फसल कटाई के समय मनाया जाता है और किसानों के लिए इसका विशेष महत्व है। पोंगल को "शस्योत्सव" भी कहा जाता है। यह त्योहार समृद्धि, खुशी और नई फसल के स्वागत का प्रतीक है।
पोंगल का महत्व और स्वरूप
पोंगल का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता को धन्यवाद देना है, जो धरती पर जीवन के आधार हैं। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है, और हर दिन का अपना विशेष महत्व है। पोंगल शब्द का तमिल भाषा में अर्थ होता है "उबालना"।पोंगल के दौरान, तमिल लोग पारंपरिक भोजन, सजावट, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपने रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
पोंगल के चार दिन
पहला दिन: भोगी पोंगल
भोगी पोंगल त्योहार का पहला दिन है, जो भगवान इंद्र को समर्पित है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और पुरानी और अनुपयोगी चीजों को आग में जलाकर नष्ट करते हैं। यह परंपरा नकारात्मकता और बुराई को खत्म करने का प्रतीक है। इस दिन लोग सामूहिक रूप से भोगी कोट्टम (ढोल) बजाते हैं और रात भर उत्सव मनाते हैं।
दूसरा दिन: सूर्य पोंगल
दूसरा दिन सूर्य देवता को समर्पित होता है। इस दिन पोंगल नामक विशेष पकवान तैयार किया जाता है, जो चावल, दूध, और गुड़ से बनाया जाता है। इसे मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है, और पकने के दौरान "पोंगल ओ पोंगल" के जयकारे लगाए जाते हैं। यह पकवान सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है, और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। गन्ना, नारियल, और केले भी पूजा में चढ़ाए जाते हैं।
तीसरा दिन: मट्टू पोंगल
पोंगल का दिन मट्टू पोंगल पशुधन को समर्पित है, विशेष रूप से बैलों और गायों को। इस दिन किसान अपने बैलों को नहलाकर, उनके सींगों में तेल लगाते हैं और सजाते हैं। बैलों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है। बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है। तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में इस दिन "जल्लीकट्टू" का आयोजन होता है, जो एक पारंपरिक खेल है।
चौथा दिन: कन्नुम पोंगल
कन्नुम पोंगल त्योहार का अंतिम दिन है, जो सामाजिक मेलजोल और भाईचारे का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे से मिलने जाते हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, और अपने रिश्तों को मजबूत करते हैं। यह दिन परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए समर्पित होता है।
पोंगल से जुड़ी पौराणिक कथाएँ
पोंगल सूर्य देवता को समर्पित है। तमिल मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देवता के बिना फसल संभव नहीं है। इसलिए, पोंगल के दौरान सूर्य देवता को धन्यवाद दिया जाता है और उनसे समृद्धि की कामना की जाती है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शंकर ने नंदी बैल (मट्टू) को धरती पर भेजा और मानव के लिए अन्न पैदा करने का कार्य सौंपा। नंदी बैल ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मानव की कृषि कार्य में सहायता की। इस कथा के आधार पर मट्टू पोंगल पर बैलों और गायों की पूजा की जाती है।
पोंगल की परंपराएँ और विशेषताएँ
पोंगल के दौरान तमिल घरों को आम के पत्तों और नारियल की टहनियों से सजाया जाता है। महिलाएँ घर के मुख्य द्वार पर "कोलम" (रंगोली) बनाती हैं। यह रंगोली चावल के आटे और प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है।
पोंगल के दौरान पारंपरिक खेलों का आयोजन भी होता है। "जल्लीकट्टू" नामक बैलों की दौड़ एक प्रमुख आकर्षण है। हालांकि यह खेल विवादों में रहा है, लेकिन तमिल संस्कृति में इसका विशेष स्थान है।
पोंगल और अन्य त्योहारों का संबंध
14 जनवरी का दिन उत्तर भारत में मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। इसे गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण, जबकि आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पंजाब में यह त्योहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसी दिन को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
निष्कर्ष
पोंगल न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह तमिल संस्कृति का प्रतीक भी है। इस पर्व का महत्व इतना अधिक है कि तमिलनाडु के लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में इस दिन अवकाश रहता है। पोंगल का इतिहास हजारों साल पुराना है। यह तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, मलेशिया, मॉरीशस, अमेरिका, कनाडा और सिंगापुर जैसे देशों में भी तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
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