जब मैं विद्यालय देर से पहुंचा हिंदी निबंध: जब मैं विद्यालय देर से पहुंचा निबंध: बचपन से ही मैं स्कूल के मामले में बहुत पाबंद रहा हूँ। हमेशा समय से पहल
जब मैं विद्यालय देर से पहुंचा हिंदी निबंध - When I was Late for School Essay in Hindi
जब मैं विद्यालय देर से पहुंचा निबंध: बचपन से ही मैं स्कूल के मामले में बहुत पाबंद रहा हूँ। हमेशा समय से पहले उठना, जल्दी तैयार होना और स्कूल बस पकड़ना मेरी रोज़ की आदत थी। पर कभी-कभी कुछ चीज़ें हमारे हाथ में नहीं होतीं। एक ऐसा ही दिन था, रेलवे क्रासिंग बंद हो गयी और मैं विद्यालय देर से पहुंचा। यह घटना मेरे विद्यालय जीवन की सबसे यादगार घटनाओं में से एक है, जिसने मुझे समय का महत्व और धैर्य रखने का सबक सिखाया।
यह एक सामान्य सुबह थी, और मैं हमेशा की तरह समय से घर से विद्यालय जाने के लिए निकला। मगर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। रास्ते में, मुझे एक रेलवे क्रासिंग पार करनी पड़ती थी। जैसे ही मैं वहां पहुंचा, क्रासिंग बंद हो गयी। मैंने सोचा कि ट्रेन निकलने के बाद क्रासिंग का फाटक खुल जाएगा, लेकिन तभी सिग्नल लाल हो गया और रेल क्रासिंग पर ही रुक गयी। मिनट दर मिनट कट रहे थे, और मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैंने बहुत देर इंतजार किया, पर ट्रेन का कोई आसार नहीं था।
धीरे-धीरे मुझे घबराहट होने लगी। स्कूल में देर से पहुँचने पर मिलने वाली सजा के बारे में सोचकर मेरे शरीर में सिहरन पैदा हो रही थी। आखिरकार, ट्रेन निकलने के बाद क्रासिंग का फाटक खुला। में फ़टाफ़ट साइकिल दौडाते हुए विद्यालय पहुँचा, लेकिन मेरी किस्मत खराब थी। जब मैं विद्यालय पहुंचा, तो घंटी बज चुकी थी और गेट बंद कर दिए गए थे। मैं निराश होकर गेट के बाहर खड़ा हो गया।
तभी, मानो ईश्वर ने मेरी सुनी, मेरे कक्षाध्यापक उधर से निकले। उन्होंने मुझे देखा और देरी का कारण पूछा। मैंने एक ही सांस में पूरी कहानी सुना दी। मेरी बात सुनकर उन्हें थोड़ी दया आ गई और उन्होंने मुझे विद्यालय में प्रवेश करने की अनुमति दी। मैं बहुत खुश हुआ और अपने कक्षा में जाकर बैठ गया।
मेरी बेचैनी और सच्चाई उनके चेहरे पर एक समझ भरी मुस्कान ले आई। उन्होंने मुझे समझाया कि समय का पाबंद होना ज़रूरी है, लेकिन अप्रत्याशित परिस्थितियाँ भी आती हैं। उन्होंने मुझे कक्षा में जाने की अनुमति दे दी।
आज भी, जब कभी ट्रेन की सीटी सुनाई देती है, तो मुझे वह दिन याद आ जाता जय जब मै विद्यालय देरी से पहुंचा।यह घटना मेरे लिए एक सीख बन गई। समय का पाबंद होना ज़रूरी है, लेकिन कभी-कभी परिस्थितियाँ भी मायने रखती हैं। जिंदगी में कभी-कभी चीजें हमारे हाथ में नहीं होतीं, लेकिन हर परिस्थिति का सामना सकारात्मकता से करना ही सबसे बड़ी जीत है।
जब मैं स्कूल देर से पहुंचा हिंदी निबंध
विद्यार्थी जीवन की कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो जीवन भर याद रह जाती हैं। कुछ पल हंसाते हैं, तो कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। मेरे जीवन का भी एक ऐसा ही अविस्मरणीय अनुभव है, जब मैं विद्यालय देर से पहुंचा था।
हर सुबह की तरह, उस दिन भी मैं स्कूल बस का इंतज़ार कर रहा था। पीली धूप में, चिड़ियों की चहचाहट के बीच, बस का पीलापन दूर से ही नज़र आ गया। मगर जैसे ही मैं बस में चढ़ने के लिए दौड़ा, अचानक एक तेज़ धड़ाम से सड़क हिल गई। बस रुक गई।
कुछ देर की खामोशी के बाद, ड्राइवर अंकल परेशान से नीचे उतरे। उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं। उन्होंने बताया कि बस का पिछला टायर पंक्चर हो गया है और उसे बदलने के लिए मैकेनिक को बुलाया गया है. थोड़ा वक्त लगेगा। कुछ बच्चे तो खुश थे कि आज स्कूल नहीं जाना पड़ेगा, वहीं कुछ परेशान भी थे। करीब आधे घंटे बाद, एक मैकेनिक आ गया और उसने टायर बदलना शुरू कर दिया।
कुछ देर बाद बस चलें को तैयार थी। मगर इतने में भी काफी देर हो चुकी थी। स्कूल पहुंचते-पहुंचते घंटी बज चुकी थी। क्लास चल रही थी। मैं घबराते हुए क्लास में दाखिल हुआ। श्रीमती सिंह जी का सख्त चेहरा देखकर तो मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मगर इससे पहले कि वो कुछ कह पातीं, मैंने सारी कहानी बता दी।
उन्होंने कंडक्टर अंकल को फोन लगाकर सारी बातचीत करवाई। कंडक्टर अंकल ने भी स्कूल बस में देरी होने की पुष्टि की। श्रीमती सिंह जी ने मेरी बात मानी और मुझे क्लास में बैठने दिया।
COMMENTS