पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया को संक्षेप में समझाइए (Polymerase Chain Reaction in Hindi Notes): पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया में छोटे-छोटे रासायनिक संश्ल
पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया को संक्षेप में समझाइए (Polymerase Chain Reaction in Hindi Notes)
पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR): पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया में छोटे-छोटे रासायनिक संश्लेषित अल्पन्यूक्लियोटाइड, (जो DNA के पूरक होते हैं) के दो समुच्चयों एवं DNA पॉलीमरेज एन्जाइम की सहायता से इन विट्रो (पात्रे ) विधि द्वारा उपयोगी जीन की कई प्रतिलिपियाँ बनायी जाती हैं। इस तकनीक की खोज कैरी मुलिस ने 1983 ई. में की थी, जिसके लिए सन् 1993 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (Polymerase Chain Reaction-PCR) में प्रत्येक चक्र में तीन चरण होते हैं-
(1) निष्क्रियकरण (Denaturation )— DNA द्विरज्जुक को हेलीकेज एन्जाइम से पृथक् किया जाता है। यह प्रक्रिया स्वस्थाने (In vivo) में की जाती है, जबकि स्व पात्रे (n vitro) में DNA रज्जुकों को 95° C ताप पर 1-2 मिनट के लिए गर्म करके अलग किया जाता है।
(2) उपक्रामक तापानुशीलन (Annealing)— छोटे-छोटे अल्पन्यूक्लियोटाइडों को 40° C ताप पर ठण्डा करते हैं, ताकि DNA द्विगुणन के समय निर्मित प्रारम्भक अपने पृथक् DNA रज्जुकों पर पूरक अनुक्रमों को ठण्डा कर सकें। इस प्रक्रिया को प्रारम्भिक बंधन कहा जाता है ।
(3) उपक्रामकों का प्रसार— पॉलीमरेज (DNA पॉलीमरेज़) एन्जाइम टैक पॉलीमरेज़ प्रारम्भक को प्रसारित करता है एवं DNA द्विगुणन की प्रक्रिया पूर्ण होती है।
प्रत्येक DNA अणु द्विगुणित प्रतिकृतिकरण द्वारा दो अणुओं का निर्माण होता है। चक्र में चरण से पुनरावृत्ति के फलस्वरूप हर बार DNA अणुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है। यह एक शीघ्र प्रक्रिया होती है। कुछ ही समय में DNA के एक लघु अणु से लाखों बार दीर्घीकरण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त DNA अणुओं को क्लोनिंग, फॉरेंसिक जन्तु जाँच के परिरक्षित शरीर से DNA की प्रतिलिपियाँ बनाने में आदि के उपयोग में किया जाता है।
PCR प्रक्रिया के लिए प्रयुक्त एन्जाइम थर्मोफिल्स (थर्मस एक्वेटिक्स से उच्च ताप पर संसाधित करके प्राप्त किया जाता है।
पीसीआर का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:
- अनुक्रमण के लिए डीएनए प्रसंस्करण के शुरुआती चरणों में
- संक्रमण के दौरान रोगजनकों की पहचान करने में मदद करने के लिए
- जीन की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाने के लिए
- डीएनए के छोटे नमूनों से फोरेंसिक डीएनए प्रोफ़ाइल तैयार करते समय
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