पाठ्यक्रम अभिकल्प (डिजाइन) के स्त्रोत एवं आयाम - Sources and Dimensions of Curriculum Design in Hindi: पाठ्यक्रम अभिकल्प के निर्माण को समाज व व्यक्ति
पाठ्यक्रम अभिकल्प (डिजाइन) के स्त्रोत एवं आयाम - Sources and Dimensions of Curriculum Design in Hindi
पाठ्यक्रम अभिकल्प के निर्माण को समाज व व्यक्ति की सामाजिक एवं दार्शनिक विचार धाराएं प्रभावित करती हैं। सामान्यतया ये विचारधाराएं ही पाठ्यक्रम अभिकल्प के स्रोत कहलाते हैं। प्रकार दर्शन व समाज की भूमिका शिक्षा को प्रभावित करती है, उसी प्रकार पाठ्यक्रम के योजनाकारों को भी प्रभावित करती है। यदि पाठ्यक्रम में सामाजिक एवं दार्शनिक रूझान स्पष्ट नहीं होते हैं, तो पाठ्यक्रम योजना में व्यवहारिक व सैद्धान्तिक दूरियाँ भ्रम का कारण बनती हैं। रोनाल्ड डोल ने पाठ्यक्रम अभिकल्प के निर्माण के पीछे निहित चार स्त्रोतों का वर्णन किया है - विज्ञान, समाज, शाश्वत एवं दैविक इच्छा। इसी तरह टायलर के अनुसार ज्ञान, समाज तथा अधिगमकर्त्ता पाठ्यक्रम अभिकल्पन के प्रमुख स्त्रोत हैं।
पाठ्यक्रम अभिकल्प के निर्माण के मुख्य स्त्रोत ही रूझान होते हैं -
'विज्ञान' स्त्रोत के रूप में - वैज्ञानिक विधि पर विश्वास करने वाले पाठ्यक्रम निर्माता निर्माण में उन तत्वों को चयन व व्यवस्थित करेंगे जो अवलोकन तथा अंकन योग्य हों अर्थात् सत्य को खोजने के लिए वैज्ञानिक विधियों, प्रविधियों तथ्यों तथा उपकरणों पर जोर दिया जायेगा।
‘समाज’ स्त्रोत के रूप में - विद्यालय एक सामाजिक अभिकरण होने के नाते समाज की दशाओं साथ व्यवस्थाओं के विश्लेषण के द्वारा विचार प्राप्त करता है । विद्यालय के पाठ्यक्रम में भी इन सामाजिक विचारों का सम्मिलित किया जाना आवश्यक होता है, अन्यथा वह पाठ्यक्रम समाज को स्वीकार नहीं होता है। जैसे-जैसे सामाजिक ताने-बाने तथा वैचारिक परिस्थितियों में परिवर्तन होता है, पाठ्यक्रम को भी उसी के अनुरूप बदलना होता है। अतः इसे उसी के अनुरूप रखा जाना चाहिए।
‘शाश्वत व दैविक सत्य’ स्त्रोत के रूप में - कुछ पाठ्यक्रम अभिकल्पनकर्त्ताओं का मानना है कि जो परम्परागत एवं प्रकृति से परे विचार तथा दर्शन भूतकाल से चले आ रहे हैं, वे भी पाठ्यक्रम के अभिकल्प को प्रभावित करते हैं। महान व्यक्तियों के विचारों को कई बार शाश्वत सत्य की तरह विषयवस्तु के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
'ज्ञान' स्त्रोत के रूप में - विज्ञान को स्त्रोत मानने से पाठ्यक्रम अभिकल्प सीमित होना संभव है, क्योंकि इससे अन्य अध्ययन के विषय वंचित रह सकते हैं। हंकिसं के अनुसार ज्ञान वास्तव में पाठ्यक्रम अभिकल्प का एक मात्र स्त्रोत्र है, समाज एवं अधिगमकर्त्ता तो केवल उस ज्ञान में से उपयुक्त विषयवस्तु को चयनित करने में छलनी का कार्य करते हैं।
‘अधिगमकर्त्ता’ एक स्त्रोत के रूप में - कुछ लोगों का विश्वास है कि पाठ्यक्रम अभिकल्पन में अधिगमकर्त्ता के बारे में जानकारी महत्वपूर्ण स्त्रोत का कार्य करती है। अधिगमकर्त्ता कैसे सीखता है? उसकी सीखने के प्रति अभिवृति कैसे बन सकती है? और रूचि कैसे पैदा हो सकती है ? इन बातों का प्रभाव पाठ्यक्रम अभिकल्पन पर पड़ता है। अधिगमकर्त्ता केन्द्रित व अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम अभिकल्पों के लिए यह स्त्रोत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के अभिकल्पों में विषय वस्तु तथा ज्ञान को द्वितीय प्रकार का महत्व दिया जाता है।
पाठ्यक्रम अभिकल्प के आयाम (Dimensions of Curriculum Design in Hindi)
पाठ्यक्रम अभिकल्पन एक प्रकार से पाठ्यक्रम के तत्वों या घटकों के मध्य विद्यमान संबंध हैं। पाठ्यक्रम निर्माताओं को इसके अभिकल्पन से पूर्व निम्न आयामों पर ध्यान देना आवश्यक है- कार्यक्षेत्र, समन्वयन, क्रम, सांतत्य, जुड़ाव तथा संतुलन।
कार्यक्षेत्र ( Scope) - शिक्षाविदों को पाठ्यक्रम के अभिकल्प पर विचार करते समय इसकी विषय-वस्तु की लम्बाई तथा गहराई पर विचार करना आवश्यक है। अर्थात् उसके कार्यक्षेत्र पर विषय-वस्तु तथा अधिगम-अनुभवों को कौन से पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना है, यह पाठ्यक्रम के किसी सीमा तक कार्यक्षेत्र को इंगित करता है।
समन्वयन (Intergration) - पाठ्यक्रम में एक विषयवस्तु को दूसरी विषयवस्तु से तथा विषयवस्तु के साथ अधिगम अनुभवों को व गतिविधियों को किस प्रकार एक दूसरे से जोड़ा गया है, यह भी किसी पाठ्यक्रम अभिकल्प के लिए महत्वपूर्ण है।
क्रम (Sequence) - विषयवस्तु तथा अनुभवों को पाठ्यक्रम में किस क्रम में व्यवस्थित किया जाये यह पाठ्यक्रम अभिकल्प का एक महत्वपूर्ण आयाम है। सदैव इस बात पर विवाद रहा है कि पाठ्यक्रम में विषयवस्तु के तार्किक क्रम या किस प्रकार विद्यार्थी ज्ञान को सीखते हैं उस क्रम में विषयवस्तु तथा गतिविधियों को व्यवस्थित किया जाये। इस संबंध में कुछ सिद्धांत भी प्रचलित हैं, इनमें से प्रमुख हैं- सरल से जटिल अधिगम, छोटे-छोटे अंशों में अधिगम, समग्र से खण्डों का अधिगम, कालक्रम आधारित अधिगम आदि।
सांतत्य (Contiunity) - सांतत्य से तात्पर्य पाठ्यक्रम के घटकों के उर्ध्वधर व्यवस्था या पुनरावृति से है। विद्यार्थियों के ज्ञान की गहराई तथा विस्तृतता में पाठ्यक्रम की लम्बाई के साथ-साथ वृद्धि आवश्यक होती है। इसी कारण शिक्षाविद् मुख्य विचारों तथा कौशलों को पाठ्यक्रम में पुनः शामिल करने को महत्व देते हैं। यही सांतत्य कहलाता है। किसी भी पाठ्यक्रम के अभिकल्पन में यह आयाम भी आवश्यक है।
जुड़ाव तथा संतुलन (Articulation and Balance) - जुड़ाव से तात्पर्य पाठ्यक्रम के विभिन्न पक्षों के मध्य अन्तः सम्बद्धता से है। अर्थात् पाठ्यक्रम के अलग-अलग पक्ष किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हैं, यह भी पाठ्यक्रम अभिकल्प का महत्वपूर्ण आयाम है। इसी प्रकार इन पक्षों में संतुलन या बहुलता भी पाठ्यक्रम अभिकल्प को प्रभावित करती है।
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