पाठ्यक्रम का अर्थ परिभाषा तथा वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष बताइए: पाठ्यक्रम का अंग्रेजी रूपान्तर 'करीक्यूलम' (Curriculum) है। 'करीक्यूलस' शब्द अंग्रेजी क
पाठ्यक्रम का अर्थ परिभाषा तथा वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष बताइए
पाठ्यक्रम का अर्थ (Meaning of Curriculum) - पाठ्यक्रम का अंग्रेजी रूपान्तर 'करीक्यूलम' (Curriculum) है। 'करीक्यूलस' शब्द अंग्रेजी का न होकर 'लैटिन भाषा' का है। इसका अर्थ होता है - Curere अर्थात् दौड़ का मैदान । इस प्रकार ‘करीक्यूलम’ वह दौड़ का मैदान है जिस पर बालक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए दौड़ लगाता है।”
बालक पाठ्यक्रम को दौड़कर (सीखकर) ही शिक्षा प्राप्त करता है। अतः पाठ्यक्रम दौड़ के मैदान के समान है। बालक को उसकी शिक्षा के लिए इसे 'पार करना' आवश्यक है। पाठ्यक्रम के द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि बालक को क्या पढ़ाया जाए ?
पाठ्यक्रम की परिभाषाएं (Definition Curriculum in Hindi)
पाठ्यक्रम की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार है-
1. फ्राबेल - “पाठ्यक्रम को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान और अनुभव का सार समझा जाना चाहिए।"
2. वाल्टर सी0 - “पाठ्यक्रम में वे सभी अनुभव निहित हैं जिनको बालक विद्यालय के निर्देशन में प्राप्त करते हैं। इसमें कक्षा-कक्ष की क्रियाएँ तथा उसके बाहर के समस्त कार्य एवं खेल सम्मिलित किए जाते हैं। "
3. कनिंघम “पाठ्यक्रम शिक्षक के हाथ में एक साधन है, जिससे वह अपने विद्यालय में अपने उद्देश्य के अनुसार, अपने छात्र को कोई भी रूप दे सकता है।”
4. किलपेट्रिक - “यह पाठ्यक्रम छात्रों का उस सीमा तक सम्पूर्ण जीवन है। जिस सीमा तक विद्यालय इसे अच्छा या बुरा बनाने का उत्तरदायित्व स्वीकार करता है।”
5. जॉन ड्यूवी- “पाठ्यक्रम की योजना में वर्तमान सामुदायिक जीवन की आवश्यकताओं की अनुकूलता का ध्यान रखना चाहिए। इसका चयन इस प्रकार का हो कि हमारे सामान्य सामूहिक जीवन में सुधार हो ताकि हमारा भविष्य हमारा अतीत से अच्छा हो।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि आधुनिक पाठ्यक्रम को बहुत ही व्यापक अर्थ में देखा जाता है। अब बालक के उन अनुभवों को भी सम्मिलित किया जाता है जिसके लिए विद्यालय मार्ग प्रदर्शन करता है। अब उसके क्षेत्र में वे समस्त क्रियाएँ भी आती है जो कि पहले अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियाओं के नाम से जानी जाती थी।
वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष (Disadvantages of Curriculum in Hindi)
वर्तमान पाठ्यक्रम के निम्नलिखित दोष है -
1. संकुचित दृष्टिकोण - वर्तमान पाठ्यक्रम का दृष्टिकोण संकुचित है। पाठ्यक्रम के क्षेत्र के अन्तर्गत सीमित विषय हैं।
2. विविधता का अभाव - बालकों तथा बालिकाओं की आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं। उनके लिए पाठ्यक्रम भी अलग-अलग होना चाहिए। परन्तु वर्तमान पाठ्यक्रम उनकी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास नहीं करता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम में विविधता का अभाव है।
3. लचीलेपन का अभाव - पाठ्यक्रम को नम्यता के सिद्धान्त को लेकर नहीं बनाया गया है। इसमें लचीलेपन का अभाव है।
4. जीवन से सम्बन्ध नहीं - पाठ्यक्रम में जो विषय सम्मिलित किये गए हैं, उनका जीवन से विशेष सम्बन्ध नहीं है। यही कारण है कि बालक जिन विषयों को अपने विद्यालय में पढ़ता है, उनका वह जीवन में उपयोग नहीं कर पाता। इस प्रकार यह पाठ्यक्रम बालकों को उसके जीवन के लिए तैयार नहीं करता है।
5. सैद्धान्तिक विषय अधिक - पाठ्यक्रम में जो विषय सम्मिलित किए गये हैं, उनमें सैद्धान्तिक विषय अधिक हैं। इन विषयों को पढ़ाये जाने से रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। विषय इतने रखे गये है कि उनसे ज्ञान की वृद्धि तो होती है परन्तु उन विषयों की व्यवहारिक उपयोगिता कम रहती है। यह ज्ञान बालक को उसके पैरों पर खड़ा होने में सहायता नहीं करता है। 6. व्यावसायिक विषयों की कमी प्रचलित पाठ्यक्रम में तकनीकी तथा व्यवसायिक विषयों का अभाव है। अतः पाठ्यक्रम बालकों को उनके व्यवहारिक जीवन के लिए तैयार नहीं करता। 7. पुस्तकीय ज्ञान पर बल प्रचलित पाठ्यक्रम पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल देता है। केवल पुस्तकीय ज्ञान से बालक जीविकोपार्जन के लिए तैयार नहीं हो पाता।
8. स्थानीय आवश्यकताओं की उपेक्षा - पाठ्यक्रम में छात्रों की स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखा गया है। नगर तथा ग्रामवासियों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। परन्तु इस पाठ्यक्रम में भिन्न-भिन्न वातावरण के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था नहीं की गई है।
9. दृष्टिकोण - पाठ्यक्रम का निर्माण विशेषज्ञ अपने दृष्टिकोण से करता है न कि छात्रों के दृष्टिकोण से।
10. विषयों में सह सम्बन्ध - पाठ्यक्रम में जो विषय सम्मिलित किये गये हैं, उनमें आपस में सह- सम्बन्ध नहीं है। इन विषयों में समन्वय स्थापित करके नहीं पढ़ाया जाता है। इसके फलस्वरूप पाठ्यक्रम प्रभावहीन हो जाता है।
11. सामाजिक जीवन से असम्बन्धित - प्रचलित पाठ्यक्रम से सम्मिलित विषयों का सामाजिक जीवन से सम्बन्ध नहीं है। बालक को इसमें सामाजिक जीवन की मुख्य-मुख्य क्रियाओं से परिचय नहीं हो पाता।
12. समान पाठ्यक्रम - हमारे यहाँ बालकों तथा बालिकाओं के लिए समान पाठ्यक्रम है। माध्यमिक स्तर पर बालकों तथा बालिकाओं की आवश्यकताएँ पृथक-पृथक हो जाती हैं।
13. पाठ्यक्रम पर परीक्षाओं का नियंत्रण - हमारे पाठ्यक्रम में परीक्षाओं का अत्यधिक नियंत्रण है। परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए कौन से विषय आवश्यक हैं और उनको कैसे पढ़ाया जाए? यही पाठ्यक्रम-निर्धारण में आवश्यक समझा जाता है।
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